(एनडीपीएस एक्ट) सह-अभियुक्तों के बीच हुई कॉल, वह भी जिसकी ट्रांसक्रिप्ट न हो, पर्याप्त सबूतों के अभाव में पुष्टिकारक सामग्री नहीं: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-04-11 14:57 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पाया है कि सह-अभियुक्तों के बीच हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्‍ट के बिना, केवल कॉल डिटेल को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक एक्ट के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ वास्तविक सामग्री के अभाव में पुष्टि के लिए आवश्यक सामग्री नहीं माना जाएगा।

जस्टिस विकास बहल की खंडपीठ ने यश जयेशभाई चंपकलाल शाह बनाम गुजरात राज्य 2022 लाइव लॉ (गुजरात) 66 के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर भरोसा करते हुए उक्‍त टिप्‍पणी की।

उक्त मामले में यह निर्धारित किया गया था कि एनडीपीएस मामलों में अभियुक्तों के खिलाफ प्राप्त मूल सामग्री के अभाव में सह-अभियुक्तों के साथ केवल संपर्क को एक पुष्टि सामग्री नहीं माना जा सकता है।

मामला

दरअसल, अदालत एनडीपीएस एक्ट के आरोपियों [विक्रांत सिंह, सुभाष चंदर @ बिट्टू, और दविंदर सिंह] की ओर से दायर जमानत याचिकाओं का निस्तारण कर रही थी, जिन्होंने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि उनसे कोई बरामदगी नहीं की गई थी, और दो अन्य व्यक्ति/सह-अभियुक्त से कथित बरामदगी की गई थी।

उनकी ओर से पेश वकीलों ने यह प्रस्तुत किया था कि याचिकाकर्ताओं को मामले में केवल सह-आरोपी (राकेश शर्मा और रवदीप सिंह उर्फ ​​शेरू) के डिस्‍क्लोज़र स्टेटमेंट के आधार पर फंसाया गया था और डिस्‍क्लोज़र स्टेटमेंट के बाद भी याचिकाकर्ताओं से कोई बरामदगी नहीं की गई थी।

अंत में उन्होंने यह तर्क दिया कि वे किसी अन्य मामले में शामिल नहीं हैं और वे 06.11.2020 (विक्रांत सिंह), 05.12.2020 (सुभाष चंदर) और 23.04.2021 (दविंदर सिंह) से हिरासत में हैं। मामले की जांच पूरी हो चुकी है और चालान पेश किया जा चुका है। 32 गवाह हैं, जिनमें से एक गवाह का आंशिक परीक्षण किया गया है, इस प्रकार, मुकदमे में समय लगने की संभावना है।

दूसरी ओर, राज्य ने नियमित जमानत के लिए याचिकाकर्ताओं की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि तीन याचिकाकर्ताओं और दो सह-आरोपियों के बीच बातचीत के कॉल डिटेल हैं।

इस तर्क के जवाब में, याचिकाकर्ता के वकीलों ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने अपने आरोप पत्र में कोई विवरण नहीं दिया था कि किस तारीख को कथित कॉलों का आदान-प्रदान किया गया था, और उक्त कॉल डिटेल की कोई ट्रांसक्रिप्ट भी पेश नहीं की गई है।

आदेश

शुरुआत में, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने उन तारीखों का विवरण नहीं दिया था, जिन पर कथित तौर पर सह-आरोपी द्वारा याचिकाकर्ताओं को या याचिकाकर्ताओं द्वारा सह-आरोपी को कॉल किए गए थे। इसके अलावा, उक्त बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट भी धारा 173 सीआरपीसी के तहत रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं था।

इसे देखते हुए यश जयेशभाई चंपकलाल शाह (सुप्रा) के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की याचिका को स्वीकार कर लिया और उन्हें संबंधित ट्रायल कोर्ट/ड्यूटी मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के लिए जमानत/जमानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

केस शीर्षक - विक्रांत सिंह बनाम पंजाब राज्य और जुड़े मामले

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