पुलिस सर्विस की प्रकृति की तुलना किसी अन्य सर्विस से नहीं की जा सकती; दोषी व्यक्ति पुलिस में सेवा करने के योग्य नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक पुलिस अधिकारी की सेवा की प्रकृति की तुलना किसी अन्य सेवा की प्रकृति के साथ नहीं की जा सकती है और एक व्यक्ति जिसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है, वह निश्चित रूप से पुलिस अधिकारी के रूप में सेवा करने के लिए उपयुक्त नहीं है।
जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत याचिकाकर्ता को जिला रामबन के विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) के रोल से हटा दिया गया था।
बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देने के अलावा याचिकाकर्ता ने परमादेश की एक रिट के लिए भी प्रार्थना की थी, जिसमें सभी परिणामी लाभों के साथ पूर्वव्यापी प्रभाव से कांस्टेबल के रूप में नियुक्ति के लिए निर्देश मांगे गए थे।
याचिकाकर्ता ने आगे निषेध की एक रिट की मांग की, जिससे प्रतिवादियों को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, गूल द्वारा पारित 6 जून, 2018 के फैसले पर ध्यान नहीं देने के लिए कहा जाए।
याचिकाकर्ता ने मुख्य रूप से इस आधार पर बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी थी कि जम्मू-कश्मीर पुलिस अधिनियम की धारा 19 के तहत, जिसके तहत याचिकाकर्ता को एसपीओ के रूप में नियुक्त किया गया था, पुलिस के सामान्य अधिकारियों के समान अधिकार, विशेषाधिकार और सुरक्षा प्राप्त है। इस आधार पर यह आग्रह किया गया कि बिना जांच किए और याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना उसे सेवा से मुक्त नहीं किया जा सकता था।
याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि चूंकि उनके साथ सह-आरोपी को उनकी संबंधित सेवाओं में फिर से बहाल किया गया था, इसलिए उन्हें भी बहाल किया जाना चाहिए। अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया कि याचिकाकर्ता और सह-अभियुक्तों को मजिस्ट्रेट द्वारा दोषसिद्धि पर प्रोबेशन का लाभ दिया गया था।
मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस अधिनियम की धारा 18 के तहत कार्यरत एक एसपीओ को उसकी सेवा की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए किसी भी सुनवाई या पूछताछ का अधिकार नहीं प्रदान किया गया है और इसलिए प्रतिवादी एसपीओ के रूप में उसकी सेवाओं को समाप्त करने से पहले जांच करने या याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के लिए बाध्य नहीं हैं।
कानून की उक्त स्थिति के समर्थन में बेंच ने जम्मू-कश्मीर राज्य बनाम मोहम्मद इकाल मल्लाह (LPA No 153 of 2012, 05.06.2014 ) में जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के खंडपीठ के फैसले पर भरोसा रखा।
याचिकाकर्ता के दूसरे तर्क पर विचार करते हुए पीठ ने कहा,
"एक बार जब याचिकाकर्ता को आपराधिक आरोप का दोषी ठहराया गया है तो भले ही उसे प्रोबेशन का लाभ दिया गया हो्र उत्तरदाताओं के पास उसे सेवा में वापस लेने से इनकार करने का विकल्प है, क्योंकि पुलिस विभाग की सेवा किसी अन्य विभाग की सेवा की तरह नहीं है।
एक व्यक्ति, जिसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है, निश्चित रूप से पुलिस अधिकारी के रूप में सेवा करने के लिए उपयुक्त नहीं है, यहां तक कि एक एसपीओ के रूप में भी नहीं"।
जस्टिस धर ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की यह दलील कि सिर्फ इसलिए कि आपराधिक न्यायालय द्वारा निर्णय पारित करने के बाद सह-अभियुक्तों को उनकी संबंधित सेवाओं में फिर से बहाल कर दिया गया था और इस तरह, उन्हें भी फिर से बहाल किया जाना चाहिए, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। एक पुलिस अधिकारी की सेवा की प्रकृति की तुलना किसी अन्य सेवा की प्रकृति से नहीं की जा सकती। इस प्रकार, याचिकाकर्ता के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया है।
तदनुसार, पीठ ने याचिका को बिना किसी योग्यता के पाया और उसे खारिज कर दिया।
केस टाइटल: बशीर अहमद बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 174