COVID 19 ड्यूटी पर मौजूद पुलिसपर हमले के आरोपी चार युवकोंं को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 5 हज़ार रुपए जमा करवाने की शर्त पर ज़मानत दी

Update: 2020-06-16 07:56 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में COVID 19 ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले पर हमला करने का आरोप झेल रहे चार युवकों को ज़मानत देने के बदले मुख्यमंत्री राहत कोष में रिहा होने के तुरंत बाद ₹5000 जमा कराने को कहा।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ गौस मोहम्मद शेख़ और तीन अन्य युवकों की ज़मानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इन चारों के ख़िलाफ़ मुंबई के शिवाजी नगर पुलिस थाने में आईपीसी की विभिन्न धाराओं और जन संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने से रोकने संबंधी अधिनियम की कुछ धाराओं के साथ साथ महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम के तहत भी मामले दर्ज हैं।

अभियोजन के अनुसार, 26 अप्रैल 2020 को गोवंदी क्षेत्र में 25-30 लोगों की भीड़ ने उस समय कोरोना ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों पर हमला कर दिया, जब पुलिस वाले इस क्षेत्र में फेरी वालों को फ़ुटपाथ से हटा रहे थे।

एपीपी एचजे डेधिया ने कहा कि भीड़ ने पुलिस वालों को अपनी ड्यूटी करने से रोका, उन पर पत्थरों से हमला किया और पुलिस वैन को क्षति पहुंचाई।

अदालत ने ग़ौर किया कि एफआईआर में कुछ लोगों की पहचान की गई है, जिन्होंने भीड़ को उकसाया और नदीम इस्माइल शेख़ नामक युवक ने पुलिस पर पत्थर फेंके। पुलिस पर पत्थर और सरिए से हमला करने वालों में 22 से 25 साल के युवा शामिल थे।

आवेदनकर्ता के वक़ील जिगर अग्रवाल ने कहा कि उसके मुवक्किल को इसलिए गिरफ़्तार किया गया है क्योंकि ये लोग 22-25 वर्ष के हैं और इस इलाक़े में रहते हैं।

अदालत ने कहा कि इन युवाओं को सिर्फ़ 22-25 साल का होने और बिना किसी पहचान परेड और ठोस सबूत के बिना जांच एजेंसी ने गिरफ़्तार कर लिया जिसको देखते हुए आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जा सकता है।

एपीपी ने अदालत को कहा कि आरोपियों में से दो कोरोना से संक्रमित हैं और इन्हें उचित जांच के बाद भर्ती कराया गया था पर अब वे इस संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं।

₹10,00 की ज़मानत राशि पर ज़मानत का आदेश देते हुए अदालत ने एक अतिरिक्त शर्त जोड़ी।

अदालत ने कहा,

"यद्यपि आवेदकों को संदेह का लाभ दिया जा सकता है, लेकिन जब पुलिस वाले कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन को लागू करा रहे थे उस समय उन पर कथित रूप से हमले की बात को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है।

आवेदनकर्ताओं को पुलिस टीम पर हमला करने और उनके आधिकारिक ड्यूटी में अवरोध पैदा करने का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा, लेकिन आवेदकों को अनिश्चितकाल तक के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता। उन्हें 26 अप्रैल 2020 को गिरफ़्तार किया गया और अभी वे एक महीना से अधिक समय से जेल में हैं जो कि इस बात कि पर्याप्त सजा है कि वे एक ज़िम्मेदार नागरिक बनें। उन्हें ज़मानत पर छोड़े जाने का अधिकार है पर उन्हें छूटने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री राहत कोष में ₹5000 जमा कराने होंगे…अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी ज़मानत रद्द कर दी जाएगी।"

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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