मुस्लिम ससुर के पास बहू की उपस्थिति / कस्टडी की मांग करने वाली हैबियस कॉर्पस याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-06-07 06:07 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि एक मुस्लिम ससुर के पास अपनी बहू की उपस्थिति/कस्टडी की मांग करने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।

मो. हासिम ने अपनी बहू की हिरासत की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि वह 2021 से अपने माता-पिता की अवैध हिरासत में है और वे उसे ससुराल नहीं जाने दे रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि चूंकि हिरासत में लिए गए व्यक्ति का पति अपनी आजीविका कमाने के लिए कुवैत में रह रहा है, इसलिए यह संभव हो सकता है कि जब उसका पति वहां नहीं रह रहा हो तो वो खुद अपने ससुराल नहीं जाना चाहती हो।

यह कहते हुए कि मुस्लिम कानून के तहत, विवाह एक अनुबंध है और पति अपनी पत्नी की सुरक्षा, आश्रय और सभी इच्छाओं और दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाध्य है, कोर्ट ने टिप्पणी की,

“शादी के बाद पति कुवैत में रह रहा है और कमा रहा है और पत्नी अपने माता-पिता के साथ रह रही है, इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता है कि वह अवैध हिरासत में है। यह संभव हो सकता है कि जब उसका पति वहां नहीं रह रहा हो तो वो खुद अपने ससुराल नहीं जाना चाहती हो।”

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शिकायत है, तो पति के पास उपयुक्त मंच से संपर्क करने का उपाय है, लेकिन ससुर के पास नहीं।

याचिकाकर्ता के वकील: सिकंदर जुल्करनैन खान

प्रतिवादी के वकील: जीए सुशील कुमार मिश्रा

केस टाइटल- आरफा बानो थ्रू. मो. हासिम बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और 3 अन्य [बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका संख्या – 148 ऑफ 2023]

केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 182

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