नाबालिग के होठों पर 100 रुपये का नोट रगड़ने, अपमानजनक टिप्पणी करने के मामले में मुंबई कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया, एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई
मुंबई की एक अदालत ने हाल ही में एक व्यक्ति को 16 साल की एक लड़की को बिल्ली बुलाने और उसके होठों पर 100 रुपये का नोट रगड़ने के मामले में यौन उत्पीड़न और एक बच्चे की लज्जा भंग करने का दोषी ठहराया है।
नोट रगड़ते समय इस व्यक्ति ने कहा था, ‘‘मैं तुझे लाइक करता हूं और तू इतना भाव क्यों भाव खा रही है?’’
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012(पाॅक्सो) के तहत विशेष न्यायाधीश, एससी जाधव ने कहा,
‘‘पीड़िता के होठों पर 100 रुपये का नोट रगड़ा और फिर कहा कि ‘‘तू ऐसा क्यों कर रही है तू इतना भाव क्यों खा रही है’’ इन शब्दों के उच्चारण से पता चलता है कि अभियुक्त ने किसी अन्य कारण से यह कार्य नहीं किया था, बल्कि केवल यौन हमला करने के लिए यौन इरादे से ऐसा किया था और इस प्रकार, अभियुक्त अनुमान का खंडन करने में विफल रहा।’’
इस प्रकार न्यायालय ने आरोपी को एक वर्ष के कठोर कारावास व 3000 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है।
अभियोजन पक्ष के अनुसार वर्ष 2017 में जब लड़की अपनी पड़ोसी के साथ बाजार में सब्जियां खरीद रही थी, तो आरोपी ने उसका पीछा किया और उसके होठों पर 100 रुपये का नोट लगाया और उक्त शब्द कहे। उसने घर जाकर अपनी मां को इसके बारे में बताया। वे आरोपी के घर गए लेकिन उसने उनके साथ गाली-गलौज की। तब मां ने जाकर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।
आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल), 354-डी (पीछा करना) और पॉक्सो एक्ट की धारा 12 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत मुकदमा चलाया गया था।
गवाहों की गवाही के साथ-साथ लड़की के जन्म प्रमाण पत्र से, जिसे बचाव पक्ष ने चुनौती नहीं दी थी, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि वह घटना के दिन नाबालिग थी।
लड़की ने यह भी गवाही दी कि आरोपी कॉलेज जाते समय उसका पीछा करता था, सीटी बजाता था और भद्दे कमेंट्स करता था। उसने उसके पिता को भी धमकाया। उसने यह भी बताया कि उसने धमकी दी थी कि वह उसे और उसकी मां को चाकू से मार देगा।
मामले के दूसरे गवाह उसके पड़ोसी ने बाजार की घटना के संबंध में उसकी गवाही की पुष्टि की।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने स्वतंत्र गवाहों के बयान दर्ज नहीं करवाए, हालांकि किशोरी ने आरोपी द्वारा किए गए कृत्य के बारे में स्पष्ट रूप से गवाही दी और इसकी पुष्टि उसकी मां और उसके पड़ोसी ने की।
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चलता हो कि पीड़िता और आरोपी के बीच किसी तरह की पुरानी दुश्मनी थी, जिससे उसे झूठा फंसाया जा सके। इसके अलावा, ऐसा भी कुछ नहीं है कि उसे किसी भी तरह से बहलाया या फुसलाया गया था। इसलिए, उसके बयान को खारिज करने या उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है।
मौके का पंचनामा भी घटना स्थल के संबंध में लड़की की गवाही की पुष्टि करता है।
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की एकमात्र गवाही आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है। “आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पीड़ित की एकमात्र गवाही पर्याप्त है। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने स्वतंत्र गवाहों के बयान दर्ज नहीं करवाए, यह अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक साबित नहीं होगा। पीड़िता भी एक सक्षम गवाह है।’’
अदालत ने कहा कि कोई भी मां झूठे आरोप लगाकर अपने बच्चे का भविष्य दांव पर नहीं लगाएगी। “इसके अलावा, कोई भी मां अपने बच्चे का उपयोग नहीं करेगी, खासतौर पर एक लड़की का और इस तरह के झूठे आरोप लगाकर उसकी अखंडता, चरित्र और भविष्य को दांव पर नहीं लगाएगी। इसलिए, उसकी गवाही विश्वसनीय और स्वीकार्य है।”
पाॅक्सो एक्ट की धारा 30 आपराधिक मानसिक स्थिति के अनुमान के बारे में बताती है जिसका अभियुक्त को उचित संदेह से परे खंडन करना होता है। अदालत ने कहा कि आरोपी के कृत्य से पता चलता है कि उसने केवल यौन मंशा से इसे अंजाम दिया था।
इस प्रकार, अदालत ने माना कि आरोपी आईपीसी की धारा 354 और पाॅक्सो एक्ट की धारा 12 के तहत दोषी है। चूंकि आईपीसी की धारा 354 धारा 354डी के तहत अपराध का गंभीर रूप है, इसलिए धारा 354डी के लिए अलग से किसी निष्कर्ष की आवश्यकता नहीं है।
पाॅक्सो एक्ट की धारा 42 के तहत, अधिनियम के साथ-साथ आईपीसी की धारा 354-डी के तहत दोषी व्यक्ति किसी भी कानून के तहत सजा के लिए उत्तरदायी है, जो भी अधिक सजा प्रदान करता है।
अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 354 में अधिक से अधिक सजा का प्रावधान है और इसलिए पॉक्सो एक्ट के तहत अलग से किसी सजा की आवश्यकता नहीं है।
सजा सुनाते समय, अदालत ने अभियुक्त पर उसके परिवार की निर्भरता के साथ-साथ मां के कैंसर रोगी होने जैसे तथ्य को सजा कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़िता को मुआवजा देना जरूरी नहीं है।
अदालत ने कहा कि दोषी सीआरपीसी की धारा 428 के तहत सेट ऑफ करने का हकदार है। अदालत ने कहा, ‘‘आरोपी संतोष जोतिराम तालेकर को दी गई मूल सजा की अवधि पहले ही पूरी हो चुकी है क्योंकि वह जांच और मुकदमे के दौरान हिरासत में रहा है, इसलिए उसके लिए मूल सजा काटने की कोई आवश्यकता नहीं है।’’
विशेष लोक अभियोजक वीणा शेलार ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया जबकि एडवोकेट डी जी गुजराल ने आरोपी का प्रतिनिधित्व किया।
मामला संख्या- पाॅक्सो स्पेशल केस नंबर 431/2017
केस टाइटल- देवनार पुलिस स्टेशन के माध्यम से महाराष्ट्र राज्य बनाम संतोष जोतीराम तालेकर
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