मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विधि आयोग से पॉक्सो एक्ट में संशोधन का सुझाव देने का आग्रह किया, कहा- विवाह जैसे मामलों में जेल की सजा के बजाय सुधारात्मक उपायों की अनुमति दी जाए

Update: 2023-04-12 14:49 GMT

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) के तहत एक अभियुक्त की जमानत अर्जी पर निर्णय करते हुए भारत के विधि आयोग से अनुरोध किया कि वह अधिनियम में उपयुक्त संशोधन का सुझाव दे ताकि विशेष पॉक्सो जज दोषियों को कारावास की सजा के बजाय सुधारात्मक तरीके लागू कर सकें, खासकर तब जब अभियुक्त और पीड़िता ने शादी कर ली हो।

जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अधिनियम 'बलात्कार' (सहमति के बिना) और 'वैधानिक बलात्कार' (सहमति के साथ किया गया रेप, लेकिन वह दंडनीय हो, क्योंकि पीड़िता अठारह वर्ष से कम उम्र की है) के बीच अंतर नहीं करता है। कोर्ट ने जहां तक सजा देने का संबंध है, ऐसे मामलों में ट्रायल जजों की लाचारी को उजागर किया।

न्यायालय ने 'बलात्कार' और 'वैधानिक बलात्कार' के बीच अंतर साफ किया। कोर्ट ने कहा, बलात्कार एक अपराध है, सभी सभ्य समाजों में एक दंडनीय बुराई है, लेकिन वैधानिक बलात्कार एक अपराध है, जो अन्यथा मानव विवेक के लिए प्रतिकूल नहीं है, लेकिन जो कानून द्वारा समकालीन सामाजिक प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए निषिद्ध है।

न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पॉक्सो अपराध लिंग तटस्थ हैं और "बच्चे" शब्द को धारा 2 (डी) में "अठारह वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति" के रूप में परिभाषित किया गया है।

न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान, जो कि पेनिट्रेटिव सेक्सुअल, एग्रावेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (रेप), सेक्सुअल असॉल्ट, एग्रावेटेड सेक्‍सुअन असॉल्ट और बच्चे के यौन उत्पीड़न से संबंधित हैं, जहां अपराधी है वयस्क और वास्तविक सहमति अनुपस्थित है, वे उचित हैं। ।

इसलिए, अशिक्षा और गरीबी से प्रभावित समाज के हाशिए के वर्गों पर इसके आवेदन में पॉक्सो अधिनियम के उपरोक्त "दमन" को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने इसे भारत के विधि आयोग के ध्यान में लाना आवश्यक समझा।

इसलिए, कोर्ट ने भारत के विधि आयोग से निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करने और पॉक्सो अधिनियम में उपयुक्त संशोधनों का सुझाव देने का अनुरोध किया:

(ए) जहां अभियोजिका सहमति की उम्र से कम है लेकिन वास्तविक सहमति स्पष्ट है, न्यूनतम सजा ना हो और इसके बजाय, विशेष न्यायालय (जो एक वरिष्ठ सत्र न्यायाधीश है, आमतौर पर बीस साल से अधिक न्यायिक अनुभव है) को विवेक दिया जाए कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार सजा दें, जिसे बीस साल तक बढ़ाया जा सकता है; और

(बी) जहां अभियोजिका सहमति की उम्र से कम है और संबंध शादी (बच्चों के साथ या बिना) में परिणत हो गया है, वहां कारावास की सजा नहीं होनी चाहिए और इसके बजाय विशेष न्यायालय को सामुदायिक सेवा आदि जैसे वैकल्पिक सुधारात्मक तरीकों को लागू करने का अधिकार होना चाहिए।


केस टाइटल: वीकेश कलावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य

केस नंबर: मिस्लेनिअस क्रिमिनल केस नंबर 4521 ऑफ 2023

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