मोटर वाहन अधिनियम : अनाधिकारिक या गैर-अनाधिकारिक दावाकर्ता अधिनियम के प्रावधानों के तहत बीमाकर्ता पर देयता का दावा नहीं कर सकता: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि मालवाहन/मालगाड़ी से यात्रा कर रहे माल मालिक का अपवाद छोड़कर यात्रा कर रहे किसी अन्य व्यक्ति (भले ही वह 'मुफ्त यात्रा कर रहा हो या पैसे देकर') की मौत या दिव्यांगता से संबंधित दावे में मोटर वाहन अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों के इस्तेमाल के जरिये बीमाकर्ता को देयता के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस एम ए चौधरी की एक पीठ उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता-बीमा कंपनी ने एक दावा याचिका में विद्वान एमएसीटी, श्रीनगर द्वारा पारित पुरस्कार को चुनौती दी थी, जिसमें अपीलकर्ता बीमा कंपनी को प्रतिवादियों/दावेदारों के पक्ष में मुआवजे के तौर पर 3,27,864/- की राशि दावा याचिका की तारीख से छह फीसदी प्रति वर्ष की ब्याज दर के साथ देने का आदेश दिया गया था।
अपीलकर्ताओं ने अपनी अपील में प्राथमिक रूप से इस आधार पर अधिनिर्णय को चुनौती दी है कि अपीलकर्ता कंपनी दावेदारों को मुआवजे के भुगतान के दायित्व से हतप्रभ है, क्योंकि वह इस मुआवजे के भुगतान के लिए जिम्मेदार नहीं है। बीमाकर्ता कंपनी का कहना है कि जिन मृतकों के लिए मुआवजे देने का आदेश दिया गया है, उनका कानूनी हक नहीं बनता है, क्योंकि वे लोग प्रतिवादी संख्या 6 और 7 के मालिकाना और बीमा कंपनी द्वारा बीमित ऑयल टैंकर पर 'मुफ्त सवारी' के तौर पर सवार थे। अपीलकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन एक यात्री वाहन नहीं था और मृतक, जिसे एक पुलिस अधिकारी बताया गया था, ने उक्त वाहन से एक नि:शुल्क यात्री के रूप में यात्रा की थी और बीमा कंपनी मृतक को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं थी।
अपील में खंडपीठ के समक्ष न्यायनिर्णयन के लिए जो विवादास्पद प्रश्न था, वह यह था कि क्या अपीलकर्ता कंपनी, बीमाकर्ता के रूप में, दावेदारों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए संबंधित वाहन के बीमाधारक मालिकों को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी नहीं थी।
मामले पर फैसला सुनाते हुए बेंच ने 'नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम बलजीत कौर और अन्य (2004)' में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया है :-
"इसलिए, हमारी राय है कि यदि अपीलकर्ता को दावेदार के पक्ष में दिये गये आदेश की राशि का भुगतान करने को कहा जाता है (यदि भुगतान नहीं हुआ है) और वाहन के मालिक से इसे वसूल करने का निर्देश दिया जाता है, तो न्याय के हित में काम होगा। इस तरह की वसूली के प्रयोजन के लिए, बीमाकर्ता के लिए एक अलग मुकदमा दायर करना आवश्यक नहीं होगा, बल्कि वह निष्पादन कोर्ट के समक्ष उस संबंध में कार्यवाही शुरू कर सकता है जो बीमा दावा ट्रिब्यूनल के समक्ष बीमाकर्ता और मालिक के बीच निर्धारण का विषय था। और मामले का निर्णय वाहन मालिक के विरुद्ध तथा बीमाकर्ता के पक्ष में किया जाता है।"
मामले का निर्धारण करते हुए बेंच ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने इस मामले में गलत निर्धारण किया है कि मृतक को किराये के भुगतान पर गैर-अनाधिकारिक यात्री होने के कारण, बीमाकर्ता बीमाधारक को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी था। बेंच ने कहा कि ट्रिब्यूनल के फैसले के विपरीत, सुप्रीम कोर्ट के इस विषय में दिये गये विभिन्न फैसलों के मद्देनजर बीमाकर्ता की देयता तब भी नहीं होगी, यदि मृतक मालवाहक वाहन में गैर-अनाधिकारिक यात्रा कर रहा होता।
कानून की इस पुख्ता स्थिति को लागू करते हुए बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता-बीमाकर्ता पर दायित्व की सीमा तक हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है और तदनुसार आक्षेपित निर्णय को संशोधित करने का आदेश दिया जाता है कि अपीलकर्ता-बीमाकर्ता संबंधित वाहन के बीमाधारक-मालिकों की देयता की क्षतिपूर्ति का उत्तरदायी नहीं था।
बेंच ने निष्कर्ष दिया कि इस पृष्ठभूमि में, यह निर्देशित किया जाता है कि अपीलकर्ता आदेश के तहत जारी राशि का भुगतान दावेदारों को छह प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज के साथ करेगा और अपीलकर्ता को यह अधिकार होगा कि वह यह राशि संबंधित वाहन के मालिकों -प्रतिवादी संख्या 6 और 7- से कानून के दायरे में वसूलेगा।
केस शीर्षक: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी बनाम मेहरा बेगम
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 129
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