मोटर दुर्घटना का दावा : बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन मदों को दोहराया जिनके तहत ''व्यक्तिगत चोट'' के मामलों में मुआवजा दिया जा सकता है
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही के एक फैसले में एक मोटर दुर्घटना पीड़ित को दिए गए मुआवजे की मात्रा की निष्पक्षता पर विचार किया है। पीड़ित को 24 साल की उम्र में गंभीर शारीरिक चोटें और कई फ्रैक्चर हुए थे और उसे नियमित रूप से कई तरह का उपचार करवाना पड़ा था।
जस्टिस भारती डांगरे की एकल पीठ ने उन विभिन्न मदों पर विचार किया,जिनके तहत मुआवजा दिया जा सकता है। पीठ ने राजकुमार बनाम अजय कुमार 2011 (1) एससीसी 343 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें न्यायालय ने मोटर दुर्घटना के कारण हुई विकलांगता के मामलों में मुआवजा देने के लिए संक्षेप में विभिन्न हेड को निर्धारित किया है।
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत चोट के मामलों में मुआवजे से संबंधित सामान्य सिद्धांत यह स्पष्ट करते हैं कि अवार्ड (मुआवजा) न्यायसंगत होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि मुआवजा, जहां तक संभव हो, दावेदार को दुर्घटना से पहले की स्थिति में ''पूरी तरह से और पर्याप्त रूप से बहाल'' कर दे।
''मुआवजा देने का उद्देश्य, जहां तक पैसा ऐसा कर सकता है, गलत तरीके से किए गए नुकसान को उचित, यथोचित और न्यायसंगत तरीके से पूरा करना है। अदालत या ट्रिब्यूनल को निष्पक्ष रूप से नुकसान का आकलन करना होगा और किसी भी अटकल या कल्पना को अपने विचार से बाहर करना होगा, हालांकि विकलांगता की प्रकृति और उसके परिणामों के संदर्भ में कुछ अनुमान अनिवार्य हैं। एक व्यक्ति को न केवल शारीरिक चोट के लिए, बल्कि इस तरह की चोट के परिणामस्वरूप हुए नुकसान के लिए भी मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि उसे एक पूर्ण जीवन जीने में असमर्थता, उन सामान्य सुविधाओं का आनंद लेने में असमर्थता,जिनका वह आनंद लेता था, के लिए तो मुआवजा दिया ही जाना चाहिए, परंतु उन चोटों के लिए और जितना वह कमाता था या कमा सकता था, उतना कमाने में असमर्थता के लिए भी भुगतान किया जाना चाहिए।''
अदालत ने दोहराया कि व्यक्तिगत चोट के मामलों में जिन मदों/हेड के तहत मुआवजा दिया जा सकता है, वे इस प्रकार हैंः
आर्थिक नुकसान (विशेष नुकसान)
(1) उपचार, अस्पताल में भर्ती, दवां, परिवहन, पौष्टिक भोजन और विविध खर्चों से संबंधित व्यय।
(2) कमाई की हानि (और अन्य लाभ) जो घायल कमाता, अगर वह घायल न होता, जिसमें शामिल हैंः (ए) उपचार की अवधि के दौरान कमाई की हानि; (बी) विकलांगता के कारण भविष्य की कमाई का नुकसान।
(3) भविष्य के चिकित्सा खर्च,गैर-आर्थिक क्षति (सामान्य हर्जाना)
(4) चोटों के कारण हुए दर्द, पीड़ा और आघात के लिए हर्जाना।
(5) सुविधाओं का नुकसान (और/या शादी की संभावनाओं का नुकसान)।
(6) जीवन की उम्मीद का नुकसान (सामान्य दीर्घायु का छोटा होना)।
कोर्ट ने कहा कि सामान्य व्यक्तिगत चोट के मामलों में, मुआवजा केवल हेड 1, 2 (ए) और 4 के तहत दिया जाएगा, लेकिन चोट के गंभीर मामलों में जहां विशिष्ट चिकित्सा साक्ष्य दावेदार के साक्ष्य की पुष्टि करते हैं, वहां मुआवजा स्थायी विकलांगता के कारण भविष्य की आय के नुकसान, भविष्य के चिकित्सा व्यय, सुविधाओं की हानि (और/या शादी की संभावनाओं का नुकसान) और जीवन की उम्मीद के नुकसान से संबंधित हेड (2)(बी), (3), (5) और (6) के तहत दिया जाएगा।
वर्तमान मामले में अदालत ने ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे की मात्रा में वृद्धि की है, जिसमें दावेदार की उम्र, आय, भविष्य की संभावनाओं और जीवन की उम्मीद के नुकसान के लिए दिए जाने वाले मुआवजे को शामिल किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि,
''जब एक दावेदार इस तरह की चोटों के परिणामस्वरूप विकलांगता का शिकार होता है और यह सुनिश्चित करने पर कि विकलांगता स्थायी प्रकृति की है, तो 'भविष्य की कमाई की हानि' मद के तहत मुआवजे का आकलन, इस तरह की स्थायी विकलांगता का उसकी कमाई की क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव व परिणाम पर निर्भर करेगा। यह अपेक्षा की जाती है कि स्थायी विकलांगता के प्रतिशत के आधार पर अर्जन क्षमता के नुकसान की गणना के यांत्रिक सूत्रों को लागू नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर मामलों में स्थायी विकलांगता के कारण हुए आर्थिक नुकसान का प्रतिशत यानी कमाई की क्षमता के नुकसान का प्रतिशत, स्थायी विकलांगता के प्रतिशत से भिन्न होता है।''
केस का शीर्षकः प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम श्री नीलेश सुरेश भंडारी व अन्य
निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें