2000 से अधिक ट्रांस कम्युनिटी के सदस्यों ने केंद्र सरकार से लॉकडाउन के दौरान एक विशेष पैकेज की मांग की

Update: 2020-04-29 04:30 GMT

पूरे देश के ट्रांसजेंडर समुदाय के 2000 से अधिक सदस्यों ने एक विशेष पैकेज के लिए गृह, वित्त और सामाजिक न्याय मंत्रालय से अपील की है। ताकि यह सुनिश्चित हो सकें कि COVID-19 महामारी के मद्देनजर लगाए गए लॉकडाउन के दौरान देशभर के ट्रांसजेंडर लोगों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित न हो पाए।

इस पत्र में नोवल कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के एक उपाय के रूप में  सामाजिक दूरी के महत्व पर जोर दिया गया है। पत्र में कहा गया है कि यह सभी को पता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के काम में सार्वजनिक उपस्थिति और सामाजिक संपर्क प्रमुख घटक हैं। जो मुख्य तौर पर गरीबी व सामाजिक बहिष्कार की स्थितियों में रहते हैं। जो भीख मांगकर और सेक्स वर्क के माध्यम से अपनी आजीविका कमाते हैं।

''सामाजिक दूरी को आवश्यक कर दिए जाने के कारण (और वायरस को रोकने के लिए सही है) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को उनके काम के एकमात्र स्रोत से दूर कर दिया गया है। उनके पास आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं है। इसलिए हमारी स्थिति दैनिक वेतनभोगियों की तरह बहुत खराब है।''

यह भी कहा गया है कि हाल ही में इंदौर के एक ट्रांस व्यक्ति की मौत ने समुदाय को बहुत चिंतित कर दिया है। जिसने खाद्य और पोषण सुरक्षा, आवास, स्थिर आय, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, स्वच्छता सुविधाओं आदि की कमी के कारण ट्रांस व्यक्तियों की अरक्षितता या वल्नरबिलिटी को सबके सामने ला दिया है।

''अक्सर समुदाय से जुड़े लोग जीवन के शुरुआती दिनों में घरों से दूर चले जाते हैं। गरीब स्वास्थ्यकर परिस्थितियों में रहने वाले समुदाय के लोगों को कई बार बड़े स्वास्थ्य जोखिम का भी सामना करना पड़ता है।''

पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आधार कार्ड, राशन कार्ड, चुनाव कार्ड, बैंक खातों जैसे बुनियादी दस्तावेजों की कमी के कारण अधिकांश ट्रांस समुदाय के सदस्य सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे से बाहर रहते हैं। जो ऐसे कठिन समय के दौरान उनके जीवन के अस्तित्व को असंभव बना देता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहा है कि उपयुक्त आईडी कार्ड की अनुपलब्धता एक ''प्रणालीगत अंतर'' है और जिसका उपयोग ट्रांस समुदाय को कल्याणकारी लाभ देने से मना करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस (एनआईएसडी) द्वारा लगभग 4,500 ट्रांस व्यक्तियों के लिए 1500-1500 रुपये के प्रावधान की अंतरिम व्यवस्था को स्वीकार करते हुए इस पत्र में कहा गया है कि यह सहायता अपर्याप्त है। चूंकि इस व्यवस्था का लाभ पूरी ट्रांस आबादी के केवल एक प्रतिशत लोगों को मिला है। जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के एक रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार समुदाय की अखिल भारतीय जनसंख्या कम से कम 4.48 लाख है।

यह भी कहा गया है कि नालसा बनाम भारत संघ (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले के परिणामस्वरूप, स्व-पहचान वाले व्यक्तियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड में इन सभी को दर्शाया या प्रतिबिंबित नहीं किया गया है।

पत्र में कहा गया है कि ट्रांस समुदाय का एक निश्चित ''अदृश्यकरण'' है। चूंकि केरल सरकार द्वारा किए राशन किट के प्रावधान व एनआईएसडी द्वारा दी गई सीमित सहायता के अलावा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कोई उपाय नहीं किया है। जबकि भारत सरकार को सौंपे गए ज्ञापन के आधार पर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का लाभ मत्स्य श्रमिकों को भी दे दिया गया है। परंतु ट्रांस कम्युनिटी के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं बनाया गया।

कल्याणकारी राज्य के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए, पत्र में लिखा गया है कि-

''हम जोर देकर यह अपील करते हैं कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए भी इसी के समान एक विशेष पैकेज की घोषणा तुरंत की जानी चाहिए। एक कल्याणकारी राज्य में, यह महत्वपूर्ण है कि कमजोर आबादी को 'संख्यात्मक रूप से प्रभावशाली वोट निर्वाचन क्षेत्र' के चश्मे से नहीं देखा जाता है। परंतु हमारी सहायता की जानी चाहिए क्योंकि हम इस देश के नागरिक और कर दाता होने के कारण, समान अधिकारों और योजनाओं में हिस्सेदारी के हकदार हैं।

इस प्रकार हम लॉकडाउन (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत घोषित) के कारण घोषित विशेष वित्तीय पैकेज में अपना उचित हिस्सा चाहते हैं।''

पत्र के अंत में अनुरोध किया गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के अनुसार राज्य के दायित्वों और नालसा निर्णय की भावना को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित उपायों को लागू किया जाए-

1. जब तक महामारी पूर्ण नियंत्रण में नहीं होती और स्थिति सामान्य नहीं हो जाती है,तब तक देश भर में प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को कम से कम 3,000 रुपये प्रति माह की सुनिश्चित निर्वाह आय प्रदान की जाए। इस तथ्य पर विचार करना बहुत आवश्यक है कि अधिकांश ट्रांस व्यक्तियों के पास राशन कार्ड नहीं हैं और अधिकांश राज्यों में उन्हें कोई पेंशन प्रदान नहीं की जाती है। वहीं काफी सारे ट्रांसजेंडर व्यक्ति किराए के आवास में रहते हैं।

2. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों सहित सभी जरूरतमंद नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाया जाए और उनको मासिक राशन किट देना सुनिश्चित किया जाए(जिसमें 15 किलोग्राम चावल/आटा, 3 किलोग्राम दाल, 1 लीटर खाना पकाने का तेल, 1 किलो नमक, 1 किलो चीनी, मसाला पाउडर, अंडे, प्रतिरक्षा निर्माण खाद्य पदार्थ आदि शामिल किए जाएं)

3. यह आदेश जारी किया जाए कि लाॅकडाउन की अवधि के दौरान किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति पर किराया देने का दबाव न बनाया जाए या किराया न देने पर उसके मकान मालिक द्वारा उसे घर से न निकाला जाए।

4. एआरटी दवाओं, तपेदिक देखभाल और उपचार, हार्मोन थेरेपी और अन्य लिंग-पुष्टि प्रक्रियाओं सहित ट्रांस व्यक्तियों के लिए सभी आवश्यक दवा की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।  

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