रेप केस:पटना हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव की जमानत याचिका खारिज की

Update: 2022-05-24 11:53 GMT

पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने नाबालिग के साथ रेप मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव की जमानत याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह तथा जस्टिस हरीश कुमार की खंडपीठ ने आदेश दिया,

"अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी राजबल्लभ यादव को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।"

आरोपी राजबल्लभ यादव को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 4 और 8 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है और दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास और 50,000/- रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई है।और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 8 के तहत दंडनीय अपराध के लिए पांच साल के कठोर कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माना की सजा सुनाई गई है।

अभियोजन का मामला पीड़ित द्वारा प्रस्तुत लिखित रिपोर्ट पर आधारित है। अपनी लिखित रिपोर्ट में उसने कहा है कि वह अपनी दो बड़ी बहनों और छोटे भाई के साथ गढ़पार (प्रोफेसर कॉलोनी) में किराए पर बिसुन्दिओ कुमार के घर में रह रही थी। सुलेखा देवी भी उसी मोहल्ले में रहती थीं जिससे उसके अच्छे संबंध हैं।

06.02.2016 को शाम 4 बजे, सुलेखा देवी ने उसे भारो चौक के पास एक जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने का अनुरोध किया। उसने अपनी बड़ी बहन से अनुमति ली और सुलेखा देवी और उसकी बेटी छोटी के साथ चली गई। वे उसे पहले रामचंद्रपुर बस स्टैंड पर ले गए और वहां से उन्होंने बख्तियारपुर की बस ली। जब उसने पूछा कि वे कहां जा रहे हैं, तो सुलेखा देवी ने उससे कहा कि वह अपनी मां को भी जन्मदिन की पार्टी में शामिल करने के लिए लेने जा रहा है। इसके बाद वे बख्तियारपुर पहुंचे जहां पहले से एक बोलेरो गाड़ी खड़ी थी। कुछ देर वहां रहने के बाद वह सुलेखा देवी और अपनी मां के साथ बोलेरो गाड़ी में बैठ गईं। वे 11.30 से 11.30 बजे के बीच गिर्याक पहुंचे। अंधेरा होने के कारण वह उस इमारत में रहने वाली का नाम नहीं पढ़ पा रही थी जिसमें उसे ले जाया गया था।

कुछ देर बाद करीब 40-50 साल का एक व्यक्ति वहां आया और सुलेखा देवी के साथ शराब पीने लगा। उसे भी पीने की पेशकश की गई, लेकिन उसने मना कर दिया। उक्त घर की रखवाली करने वाले 4-5 व्यक्ति थे। शराब पीने के बाद सुलेखा देवी ने उसे नंगा किया, उसे बिस्तर पर धकेला, उसका हाथ पकड़ा, उसके मुंह में कपड़ा डाला और शराब पीए हिए व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद सुलेखा देवी उसे दूसरे कमरे में ले गई और सुबह उसे अपने घर छोड़ गई। उसने कहा कि उसने देखा कि सुलेखा देवी को उस व्यक्ति ने 30,000 रुपये दिए थे, जिसने उसके साथ बलात्कार किया था।

पीड़िता के घर वापस आने के बाद, उसने घटना के बारे में अपनी बड़ी बहन को बताया, जिसने अपने पिता को सूचित किया। घटना की जानकारी होने पर उसके पिता आए और उसे थाने ले गए जहां उसने अपनी लिखित रिपोर्ट सौंपी थी।

उसने आरोप लगाया कि वह उस व्यक्ति की पहचान करेगी जिसने उसके साथ बलात्कार किया।

उपरोक्त लिखित रिपोर्ट के आधार पर नालंदा महिला पुलिस स्टेशन ने औपचारिक प्रथम सूचना रिपोर्ट तैयार की थी।

अपीलकर्ता और पांच व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 366A, 376, 370, 370A, 212, 420, 109, 120B और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम की धारा 4, 8 और 17 और धारा 4, 5 के तहत चार्जशीट दाखिल की गई थी।

अभियोजन पक्ष ने अपने मामले के समर्थन में बीस गवाहों का परीक्षण किया था। अभियोजन पक्ष ने आरोपों के समर्थन में दस्तावेजी और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के साथ-साथ सामग्री प्रदर्शन भी साबित किया।

बचाव पक्ष ने आरोपी व्यक्तियों को बेगुनाह साबित करने के लिए कई दस्तावेज भी साबित किए।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित एडवोकेट संजीव सहगल ने प्रस्तुत किया कि विशेष न्यायाधीश, सांसद, विधायक एवं एमएलसी न्यायालय द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि आक्षेपित निर्णय दृष्टिकोण की विकृति से ग्रस्त है। मामले की जांच अधूरी रह है। जांच अधिकारियों ने अभियोक्ता को घटना के स्थान को इंगित करने के लिए नहीं कहा जहां वास्तव में कथित घटना हुई थी।

आगे प्रस्तुत किया कि यह सत्यापित करने का प्रयास नहीं किया गया कि अभियोक्ता को किस वाहन से घटना स्थल पर ले जाया गया था और किस वाहन में उसे उसके घर पर छोड़ा गया था।

उन्होंने तर्क दिया कि चिकित्सा परीक्षण में, अभियोक्ता के निजी भाग पर कोई चोट का पता नहीं चला था और अभियोक्ता के निजी हिस्से का स्वाब लिया गया था और जांच की गई थी जिसमें शुक्राणु नहीं पाए गए थे।

उन्होंने तर्क दिया कि चिकित्सक द्वारा कथित घटना के 60 घंटे के भीतर अभियोक्ता की चिकित्सकीय जांच की गई और चिकित्सक को अभियोक्ता के शरीर के बाहरी हिस्से या निजी हिस्से पर कोई चोट नहीं मिली बल्कि यह पाया गया कि उसे संभोग की आदत थी।

यह भी तर्क दिया कि सुनवाई के दौरान जिन गवाहों से पूछताछ की गई, वे सुसंगत नहीं हैं।

उन्होंने अंतिम रूप से तर्क दिया कि अब तक अपीलकर्ता छह साल से अधिक समय से हिरासत में है और अपील पर निकट भविष्य में सुनवाई की संभावना नहीं है।

राज्य की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट श्यामेश्वर दयाल ने जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि विचारण के दौरान, अपीलकर्ता को इस न्यायालय द्वारा दिनांक 30.09.2016 के आदेश द्वारा जमानत प्रदान की गई थी। हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को राज्य द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 2016 की आपराधिक अपील संख्या 1141 के अनुरूप विशेष अनुमति याचिका और दिनांक 24.11.20116 के आदेश के तहत चुनौती दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता को जमानत देने के हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को निरस्त कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि अपीलकर्ता एक प्रभावशाली व्यक्ति है। प्रासंगिक समय में, वह विचाराधीन क्षेत्र की विधान सभा के सदस्य थे।

उन्होंने कहा कि सुनवाई के दौरान जिन गवाहों से पूछताछ की गई, उन्होंने अभियोजन मामले का पूरा समर्थन किया। उन्होंने दलील दी कि सह-दोषी संदीप सुमन उर्फ पुष्पंजय सजा के निलंबन और पहले जमानत देने के लिए इस अदालत के समक्ष चले गए थे। सजा के निलंबन और जमानत देने की उनकी प्रार्थना को इस अदालत ने आदेश दिनांक 13.07.2021 के तहत खारिज कर दिया था। उन्होंने प्रस्तुत किया कि संदीप सुमन उर्फ पुष्पंजय अपीलकर्ता का सहयोगी था, जो मुख्य अपराधी है।

यह भी तर्क दिया गया कि कथित पीड़िता, एक नाबालिग, ने मुकदमे के दौरान अपने मामले का पूरा समर्थन किया है। अभियोजन पक्ष के गवाहों की मौखिक गवाही और रिकॉर्ड में लाए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि सुलेखा देवी उन्हें लाई थीं। पीड़िता को अपीलकर्ता के घर ले जाया गया जहां शराब पीने के बाद उसके साथ दुष्कर्म किया।

पीड़िता की ओर से प्रस्तुत किया गया कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि यदि बलात्कार के मामले में चिकित्सा साक्ष्य पीड़िता की मौखिक गवाही के विपरीत है तो मौखिक गवाही मान्य होगी। इसके अलावा, वर्तमान मामले में, पीड़िता के साथ 06.02.2016 को बलात्कार किया गया था और उसकी चिकित्सा जांच 17.02.2016 को मेडिकल बोर्ड द्वारा की गई थी। इसके अलावा डॉ. शैलेंद्र कुमार ने अपनी गवाही में कहा कि पीड़िता की उम्र 16 से 17 के बीच थी और बलात्कार से इनकार नहीं किया जा सकता था।

कोर्ट ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए आदेश दिया कि हम इस स्तर पर जमानत देने के इच्छुक नहीं हैं। अत: अपीलार्थी की जमानत अर्जी खारिज की जाती है।

केस टाइटल: राजबल्लभ यादव बनाम बिहार राज्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:




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