आधी रात को पीड़ितों को कॉल करना और उनसे मिलना, विशेषकर यौन उत्पीड़न के पीड़ितों से, उनकी निजता और गरिमा का उल्लंघन है: कलकत्ता हाईकोर्ट ने लेक पुलिस अधिकारियों की आलोचना की

Update: 2023-09-07 05:20 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक स्वत: संज्ञान मामले में सामूहिक बलात्कार पीड़िता से जुड़े मामले की जांच कर रहे लेक गार्डन और नरेंद्रपुर पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारियों के आचरण पर कड़ी निंदा व्यक्त की।

जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस गौरांग कंठ की खंडपीठ ने आधी रात को पीड़िता को फोन करने, उससे मिलने जाने और मामले को छोड़ने के लिए उसे प्रभावित करने का प्रयास करने वाले किसी व्यक्ति को जमानत देने के लिए पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई।

इसके साथ ही खंडपीठ ने कहा,

"इस अदालत ने कभी ऐसा मामला नहीं देखा, जहां 'जांच' या 'न्याय के हित' के नाम पर अभिसाक्षी हमें यह विश्वास करने के लिए प्रेरित करते हों कि पीड़ितों को, विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के अपराध की महिला पीड़ितों को आधी रात को दस्तक या व्हाट्सएप कॉल किए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की निजता और सम्मान का अधिकार, विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के शिकार व्यक्ति का अधिकार सभ्य समाज की आधारशिला है। जांच एजेंसी पीड़ित की निजता के मौलिक अधिकार को संरक्षित, सुरक्षा और गरिमापूर्ण बनाए रखने के लिए बाध्य है। मगर यहां ऐसा प्रतीत होता है कि उसने स्वयं इसका अतिक्रमण किया है। यह तथ्यात्मक पृष्ठभूमि यौन अपराध के शिकार व्यक्ति की कानून के शासन, निजता और गरिमा के प्रति निर्लज्ज उपेक्षा को दर्शाती है।"

उक्त मामले में अदालत ने सामूहिक बलात्कार के सह-अभियुक्तों में से एक की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू की थी।

उस मामले की सुनवाई करते समय अदालत को सूचित किया गया कि सत्र न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई के दौरान, पीड़िता ने ट्रायल जज को सूचित किया कि ट्रायल कोर्ट में मौजूद विशाल पेरीवाल नामक व्यक्ति ने उस पर केस छोड़ने के लिए दबाव डालने का प्रयास किया था।

कोर्ट ने कहा कि हालांकि ट्रायल जज ने पेरीवाल को हिरासत में लेने का निर्देश दिया और उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। कोर्ट ने आगे कहा कि पुलिस ने "उन कारणों से जो उन्हें सबसे अच्छी तरह से ज्ञात हैं" सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस देने पर उन्हें जमानत देते हुए हिरासत से रिहा कर दिया।

अदालत ने यह भी पाया कि 29 जून को जांच के दौरान, नरेंद्रपुर पुलिस स्टेशन (जिसके अधिकार क्षेत्र में पीड़िता रहती है) को ई-मेल भेजा गया, जिससे उसे अपना बयान दर्ज करने के लिए 5 मई को मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए सूचित किया जा सके। हालांकि, 4/5 जुलाई, 2023 की आधी रात तक पीड़ित को सूचना नहीं दी गई।

कोर्ट ने कहा,

"पीड़ित को मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए उचित समय पर नोटिस देने में आनाकानी इन तथ्यों से स्पष्ट है।"

पुलिस अधिकारियों ने ई-मेल को नजरअंदाज करने के लिए कंप्यूटर ऑपरेटर को दोषी ठहराया। हालांकि, अदालत ने कहा कि यह समझ में नहीं आ रहा है कि लेक पुलिस स्टेशन के उक्त पुलिस अधिकारियों द्वारा पीड़िता से सीधे संपर्क क्यों नहीं किया गया, बल्कि मजिस्ट्रेट द्वारा पहले बयान दर्ज करने की तारीख की सूचना देने के लिए नरेंद्रपुर पुलिस स्टेशन को ई-मेल भेजकर घुमावदार रास्ता अपनाया गया। खासकर जब उनके पास उसका टेलीफोन नंबर था।

इन "परेशान करने वाले तथ्यों" को ध्यान में रखते हुए बेंच ने जांच से जुड़े पुलिस कर्मियों के आचरण की आलोचना की और उन पर भारी जुर्माना लगाने पर विचार किया।

हालांकि, पीड़िता के वकील ने कहा कि वह इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती। इस पर अदालत ने लेक और नरेंद्रपुर पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक पीड़िता को 5,000 रुपये का मामूली मुआवजा देने का आदेश दिया।

इसके साथ ही अदालत ने कहा,

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि यौन अपराध के पीड़ित की कानून के शासन, निजता और गरिमा के प्रति निर्लज्ज उपेक्षा दर्शाती है। कोई भी पुलिस अधिकार जब तक कि पीड़िता के जीवन की सुरक्षा से संबंधित अत्यंत बाध्यकारी परिस्थितियों से सहमत न हो, आधी रात को कॉल/मुलाकात जैसे उपाय का सहारा नहीं लेगा, जो पीड़िता की उसके सामाजिक परिवेश में निजता, गरिमा और सम्मान को प्रभावित करेगा। पुलिस अधिकारियों की ये ज्यादतियां भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित निजता और गरिमा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। पीड़ित ऐसे अधिकारों की पुष्टि के लिए मुआवजे का हकदार है।

कोरम: जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस गौरांग कंठ

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