'रिपोर्टिंग में सिर्फ़ कोई त्रुटि होने की वजह से कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती' : मद्रास हाईकोर्ट ने ईटी के पत्रकार और संपादक के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि का मामला ख़ारिज किया

Update: 2020-05-10 05:45 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने को इकोनोमिक टाइम्स की पत्रकार संध्या रविशंकर और उनके पति जो इस अख़बार में संपादक और शिकायत निवारण अधिकारी हैं, उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि के मामले को समाप्त कर दिया। यह मामला तमिलनाडु के समुद्र तट से बालू की तस्करी के बारे में 2015 में ईटी मैगज़ीन में एक आलेख के प्रकाशन से जुड़ा है।

न्यायमूर्ति जीआर स्वामिनाथन की पीठ ने कहा,

"मेरा स्पष्ट विचार है कि सिर्फ़ प्रेस की स्वतंत्रता का गुणगान करने का कोई मतलब नहीं है, अगर कोई उस समय बचाने के लिए नहीं आता जब इस अधिकार पर हमले होते हैं।"

अदालत ने कहा कि जब प्रेस की स्वतंत्रता, जो कि एक मौलिक अधिकार है, उस पर ख़तरा उत्पन्न होता है, उच्च्तर न्यायपालिका को अपने निहित अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए। इस बारे में अदालत ने मद्रास राज्य बनाम वीजी राव AIR 1952 SC 196 मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता संध्या रविशंकर और उनके पति ने हाईकोर्ट में अपील कर अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि के मामले को निरस्त करने की मांग की। उनके ख़िलाफ़ यह मामला बालू का खनन करने वाली एक कंपनी ने की थी जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उनको सम्मन जारी किया था।

यह कहा गया कि यह आलेख समुद्र तट पर बालू के ग़ैरक़ानूनी खनन पर दायर जनहित याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट के नोटिस के बाद प्रकाशित हुआ। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि इस आलेख द्वारा उसके ख़िलाफ़ झूठे आरोप लगाए गए हैं और इससे उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंची है।

शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि रविशंकर के पति ने एक न्यूज़ चैनल में नौकरी के लिए आवेदन किया था जिसमें उसकी बड़ी हिस्सेदारी है और अब उसने अपने पति को नौकरी नहीं मिलने के ख़िलाफ़ बदला लेने के लिए उसने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है।

अदालत ने कहा कि इस आलेख के कंटेंट पीआईएल से प्रेरित है जिसमें समुद्र तट पर बालू के ग़ैरक़ानूनी खनन की बात की गई है।

अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील को माना कि उनका मामला आईपीसी की धारा 499 के तीसरे अपवाद के तहत आता है। इसके अनुसार, अगर कोई आलेख किसी सार्वजनिक प्रश्न पर नेक नीयत से लिखा गया है तो इसके ख़िलाफ़ आपराधिक अवमानना का मामला नहीं बनता।

अदालत ने कहा,

"तीसरे याचिकाकर्ता ने जो आलेख लिखा है उसमें ऐसा मुद्दा उठाया गया है जिससे आम लोगों का हित जुड़ा है। यह आलेख मद्रास हाईकोर्ट की प्रथम पीठ द्वारा जारी नोटिस के बाद लिखा गया है। जब अदालत ने किसी सार्वजनिक मामले से जुड़े एक मुक़दमादार की शिकायत पर नोटिस जारी करना उचित समझा तो मीडिया को इस पर स्टोरी करने का निश्चित रूप से अधिकार भी है और इस वजह से यह आईपीसी की धारा 499 के अपवाद संख्या 3 के तहत आता है।"

अदालत ने कहा एक सिर्फ़ रिपोर्टिंग में कुछ त्रुटि के कारण इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की जा सकती। इस मामले में न्यूयॉर्क टाइम्स बनाम सलिवन 376 US 254 मामले में आए फ़ैसले का हवाला भी दिया गया।

इस मामले में आए फ़ैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आर राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (1994) 6 SCC 632, में भी उद्धृत किया गया।

रविशंकर ने अपने पति को फ़ायदा पहुंचाने के लिए आलेख लिखा, इस आरोप की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसा कहना एक महिला के महत्व को नज़रंदाज़ करना है।

अदालत ने अपने निष्कर्ष में कहा,

"ऐसा नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता नंबर 2 और 3 ने आलेख का प्रकाशन कर शिकायतकर्ता की मानहानि की है…यह शिकायत अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है…मैंने यह पहले ही कहा है कि याचिकाकर्ता नंबर 1और 4 के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है…संबंधित याचिका को बंद किया जाता है।"

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