DHCBA का दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र, "वकीलों पर पड़ रहे मानसिक और आर्थिक दबाव के कारण अदालतों में प्रत्यक्ष सुनवाई जरूरी"
दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर प्रत्यक्ष अदालतों की सुनवाई फिर से शुरू करने की मांग की है।
डीएचसीबीए सचिव एडवोकेट अभिजात बल द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि "चूंकि निजी और सरकारी कार्यालयों, बाजार और शॉपिंग मॉल समेत सभी क्षेत्र, सामाजिक दूरी के मानदंडों और अन्य मानक संचालन प्रक्रियाओं के कड़ाई से पालन के साथ, धीरे-धीरे खुल रहे हैं। इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट में प्रत्यक्ष सुनवाई फिर से शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है, जो कि लगभग 120 दिनों से स्थगित है।"
प्रत्यक्ष सुनवाइयों के निरंतर स्थगन और अदालती कामकाज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होने के कारण वकीलों को हो रही मानसिक और आर्थिक परेशानियों का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया है कि प्रत्यक्ष अदालतों की सुनवाई वकीलों की रोजी-रोटी की कीमत पर स्थगित नहीं रखी जा सकती है।
"प्रत्यक्ष अदालतों के स्थगन के गंभीर मनोवैज्ञानिक और आर्थिक प्रभावों पर विचार किया जाना चाहिए और सामान्य स्थिति को बहाल करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए.... अदालतों को वकीलों के क विशाल बहुमत की आजीविका की कीमत पर स्थगित नहीं रखा जा सकता है।"
बार एसोसिएशन ने अनलॉक करने के लिए जारी किए गए दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए "हाइब्रिड सिस्टम" का विकल्प आजमाने की वकालत की है।
पत्र में कहा गया है कि अदालती कार्यवाही और न्यायिक प्रणाली को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तक सीमित करने की "अंतर्निहित सीमाएं" हैं, जिसके कारण लंबित मामलों का बैकलॉग तैयार हुआ और कई सब-ज्युडिश मामले 4 महीने से निलंबन की अवस्था में हैं।
हाईस्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी के अभाव और वकीलों की तकनीकी उन्नति जैसी कमियों को रेखांकित करते हुए डीएचसीबीए ने कहा है कि वर्चुअल सुनवाई न केवल सुनवाई को प्रभावहीन करती है, बल्कि "वकालत की कला" के साथ भी न्याय नहीं करती है।
पत्र में क्रमबद्ध तरीके से प्रत्यक्ष अदालतों को फिर से शुरू करने की दलील देते हुए डीएचसीबीए ने निम्न सुझाव दिए हैं।
1) बेंचों की सीमित संख्या के साथ अदालती कार्यवाही फिर से शुरू हो सकती है;
2) कुछ मामलों के लिए निश्चित समय-सीमा को अपनाया जाए...और कोर्ट परिसर की लॉबी / प्रतीक्षा क्षेत्रों में प्रवेश पर प्रतिबंध हो;
3) प्रति कोर्ट सीमित स्तर पर ताजा और गैर-जरूरी मामलों के साथ सुनवाई शुरू हो;
4) सोशल डिस्टेंसिंग के संबंध में एसओपी को अपनाया जाए और अदालतों में उन मानदंडों का पालन किया जाए, जिन्हें वेबसाइट के माध्यम से व्यापक रूप से प्रसारित किया जा सकता है।
डीएचसीबीए ने कहा है कि वह "सोशल मीडिया, ईमेल और एसएमएस के जरिए इन्हें प्रसारित करने में अपने सहयोग का आश्वासन देता है"।
पत्र में अतिरिक्त मानक संचालन प्रक्रिया के लिए एक अनुलग्नक संलग्न किया गया है, जिसमें केवल उन्हीं अधिवक्ताओं और क्लर्कों को न्यायालय प्रवेश की अनुमति देने का सुझाव दिया गया है, जिनके मामले उस विशेष दिन / स्लॉट में सूचीबद्ध हैं, साथ ही थर्मल स्कैनर तैनाती, सामाजिक दूरी के लिए घेरे बनाने, अदालत परिसर का नियमित स्वच्छ करने आदि सुझाव दिए गए हैं।