''माहवारी हमारे समाज में कलंकित है, माहवारी से प्रभावित महिला को अशुद्ध कहने का कोई कारण नहीं'': गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2021-03-09 15:00 GMT

गुजरात हाईकोर्ट के हालिया 15 पन्नों के आदेश में सभी निजी और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के सामाजिक बहिष्कार (उनके मासिक धर्म की स्थिति के आधार) को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव दिया है, जो समाज और सभी धर्मों द्वारा मासिक धर्म को समझने के तरीकों को तय करता है।

कोर्ट के समक्ष दलील

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति इलेश जे वोरा की खंडपीठ एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के संबंध में दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कच्छ के भील कस्बे में श्री सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट के एक छात्रावास में 60 से अधिक लड़कियों को कथित तौर पर कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया था ताकि यह ''साबित'' हो सके कि वह माहवारी या मासिक धर्म से प्रभावित नहीं हैं।

रिट आवेदक (निर्झरी मुकुल सिन्हा) ने विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ मासिक धर्म की स्थिति के आधार पर की जाने वाली बहिष्करण प्रथा से निपटने के लिए कानून के संबंध में दिशा-निर्देश देने की मांग की थी।

न्यायालय के समक्ष यह विशेष रूप से प्रस्तुत किया गया था कि महिलाओं के मासिक धर्म की स्थिति के आधार पर महिलाओं को बहिष्कृत करने की जो प्रथा चल रही है, वह महिलाओं के मानवीय, कानूनी और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, विशेष रूप से जो संविधान के आर्टिकल 14,15,17,19 व 21 के तहत निहित हैं।

कोर्ट का अवलोकन

जमीनी हकीकत को स्वीकार करते हुए, गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि मासिक धर्म हमारे समाज में कलंक है और यह कलंक मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं की अशुद्धता को लेकर चली आ रही पारंपरिक मान्यताओं और सामान्य रूप से इस पर चर्चा करने की हमारी अनिच्छा के कारण बना है।

न्यायालय ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि क्यों समाज सदियों से मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं को ''अशुद्ध'' कहता आ रहा है और सभी धर्म (सिख धर्म को छोड़कर) मासिक धर्म से गुजर रही महिला को ''अशुद्ध'' के रूप में संदर्भित करते हैं।

भारतीय संदर्भ में, न्यायालय ने कहा कि विषय का मात्र उल्लेख तक करना वर्जित रहा है और यहां तक कि आज भी सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव इस विषय पर ज्ञान की उन्नति के लिए बाधा बनते दिखाई दे रहे हैं।

कोर्ट ने इस मिथ की उत्पत्ति का भी पता लगाया यानी जो वैदिक काल से मासिक धर्म से प्रभावित महिलाओं को अशुद्ध मानती है और कहा,

''इसे अक्सर इंद्र द्वारा किए गए वृत्रा वध से जोड़ा गया है। इसके लिए, वेद में यह घोषित किया गया है कि ब्राह्मण हत्या का अपराध हर महीने मासिक धर्म के प्रवाह के रूप में प्रकट होता है, क्योंकि महिलाएं खुद को इंद्र के अपराध का हिस्सा मानती थीं।''

अदालत ने कहा कि हिंदू मान्यता के अनुसार जब तक महिलाओं को ''शुद्ध'' नहीं किया जाता है, तब तक उन्हें अपने परिवार और सामान्य दिनचर्या में वापस जाने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि,

''हालांकि, वैज्ञानिक रूप से यह ज्ञात है कि मासिक धर्म का वास्तविक कारण गर्भधारण की चूक के बाद ओव्यूलेशन होना है जिसके परिणामस्वरूप एंडोमेट्रियल वेसल से रक्तस्राव होता है और इसके बाद अगले चक्र की तैयारी होती है। इसलिए, इस धारणा के बने रहने का कोई कारण नहीं लगता है कि मासिक धर्म से गुजर रही महिलाएं ''अशुद्ध'' होती हैं।

महिलाओं को क्या करने की अनुमति नहीं है?

कोर्ट ने कहा कि लड़कियों और महिलाओं को उनके दैनिक जीवन में प्रतिबंध के अधीन किया जाता है, क्योंकि वे मासिक धर्म से गुजर रही होती हैं। इस तरह के प्रतिबंध हैंः -

-''पूजा'' कक्ष में प्रवेश न करना शहरी लड़कियों के बीच प्रमुख प्रतिबंध है, जबकि मासिक धर्म के दौरान रसोई में प्रवेश नहीं करना ग्रामीण लड़कियों के बीच मुख्य प्रतिबंध है।

-मासिक धर्म से गुजर रही लड़कियों और महिलाओं को नमाज अदा करने और पवित्र किताबों को छूने से भी प्रतिबंधित किया जाता है।

-यह माना जाता है कि मासिक धर्म वाली महिलाएं अस्वच्छ और अशुद्ध होती हैं और इसलिए वे जो भोजन तैयार करती हैं या छूती हैं वह दूषित हो सकता है।

हालांकि न्यायालय ने कहा कि जब तक सामान्य स्वच्छता के उपायों को ध्यान में रखा जाता है, तब तक किसी भी वैज्ञानिक टेस्ट ने यह नहीं दर्शाया है कि मासिक धर्म किसी भी भोजन के खराब होने का कारण है।

कोर्ट ने कहा कि,''कई समाजों में मासिक धर्म के बारे में मौजूद इस तरह की वर्जनाएँ लड़कियों और महिलाओं की भावनात्मक स्थिति, मानसिकता और जीवनशैली पर प्रभाव डालती हैं और विशेष रूप से उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। आर्थिक रूप से कम विकसित कई देशों में बड़ी संख्या में लड़कियां मासिक धर्म शुरू होने पर स्कूल जाना छोड़ देती हैं।''

अंत में, न्यायालय ने कुछ निर्देश जारी किए जिन्हें यहां विस्तार से पढ़ा जा सकता है। कुछ महत्वपूर्ण निर्देश निम्नलिखित हैंः-

-सभी स्थानों पर मासिक धर्म की स्थिति के आधार पर महिलाओं का सामाजिक बहिष्कार निषेध हो,भले वह निजी या सार्वजनिक, धार्मिक या शैक्षिक स्थान हो।

-विभिन्न माध्यमों से मासिक धर्म की स्थिति के आधार पर महिलाओं के सामाजिक बहिष्कार के बारे में नागरिकों में जागरूकता फैलाना।

-शिक्षा के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण और निर्णय लेने में उनकी भूमिका बढ़ाना भी इस संबंध में सहायता कर सकता है।

-मासिक धर्म जीव विज्ञान के बारे में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को जागरूक करना।

-निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक धन आवंटित करें

-राज्य सरकार को मासिक धर्म के आधार पर किए जाने वाले महिलाओं के सामाजिक बहिष्कार को सभी शैक्षणिक संस्थानों, छात्रावासों और महिलाओं के अध्ययन कार्य और निजी या सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंध कर देना चाहिए।

केस का शीर्षक - निर्झरी मुकुल सिन्हा बनाम भारत संघ [R/Writ Petition (PIL) No. 38 of 2020]

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