कस्टोडियल टॉर्चर के संकेत मिलने पर चिकित्सक आरोपी का आवश्यक मेडिकल टेस्ट कर सकते हैं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य निदेशक द्वारा जारी सर्कुलर अपराधियों के मामलों में हिरासत में यातना के संकेत या शिकायतों पर आरोपी का मेडिकल जांच करने वाले डॉक्टरों को उचित जांच का आदेश देने से नहीं रोकेगा।
न्यायमूर्ति पीबी सुरेश कुमार ने एक सरकारी चिकित्सक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला किया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आर गोपन पेश हुए।
सीआरपीसी की धारा 53 के तहत याचिकाकर्ता का कर्तव्य है कि वह किसी आरोपी का मेडिकल जांच करवाए। हालांकि आंतरिक चोटों का पता लगाने के लिए आरोपी पर किए जाने वाले सटीक टेस्ट के बारे में प्रावधान सही से उजागर नहीं किए गए हैं। इसलिए प्रमाण पत्र में बाहरी चोटों को नोट किया गया है, जिसे न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा।
साल 2019 में राजकुमार की हिरासत में मौत के बाद न्यायिक आयोग होने के नाते जस्टिस नारायण कुरुप 5 जनवरी 2021 को पुलिस, डॉक्टरों और जेल अधिकारियों द्वारा पालन की जाने वाली कुछ सिफारिशों के साथ आए।
इन सिफारिशों के अनुसार डॉक्टरों को छिपी हुई चोटों का पता लगाने के लिए विशिष्ट टेस्ट करने की जरूरत होती है, यह बताते हुए कि आंतरिक चोटों की रिपोर्ट करने में विफलता हिरासत में यातना और परिणामी मौतों के पीछे मुख्य कारण थी। सुझाए गए टेस्ट में गुर्दे की प्रोफ़ाइल, क्रिएटिन फॉस्फोकाइनेज, मूत्र मायोग्लोबिन, सी-रिएक्टिव प्रोटीन, पेट की अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग आदि शामिल हैं।
स्वास्थ्य निदेशक ने इन सिफारिशों के आधार पर 4 जून 2021 को एक सर्कुलर जारी किया जिसमें चिकित्सा अधिकारियों को प्रत्येक आरोपी व्यक्ति की उपरोक्त टेस्ट करने के लिए अनिवार्य किया गया था। याचिकाकर्ता के मुताबिक स्वास्थ्य निदेशक ने सिफारिशों को गलत समझा। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सिफारिश में केवल यह सुझाव दिया गया था कि इन टेस्ट को आयोजित किया जाना चाहिए यदि डॉक्टरों को प्रारंभिक चिकित्सकीय जांच के बाद आंतरिक चोट का संदेह हो।
उक्त परिपत्र के अनुसरण में कन्नूर जेल के अधीक्षक ने 12 जून को एक समान परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि आरोपी को केवल तभी भर्ती किया जाएगा जब वे यह सत्यापित कर लें कि उनके निर्धारित टेस्ट किए गए हैं।
हालांकि, स्वास्थ्य निदेशक ने इस दूसरे सर्कुलर के तुरंत बाद एक और सर्कुलर जारी कर कहा कि पहला सर्कुलर अगले निर्देश तक स्थगित रखा गया है।
याचिकाकर्ता इसके बाद इस दुविधा में आ गया कि क्या यह चिकित्सकों को जरूरी समझे जाने पर आवश्यक टेस्ट करने से रोकता है। याचिका में यह प्रारंभिक प्रश्न था। याचिकाकर्ता ने इसे स्पष्ट करने के लिए कई अभ्यावेदन दायर किए, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं दिया गया।
तदनुसार, याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि न्यायालय द्वारा इस आशय का एक निर्देश जारी किया जा सकता है जैसा कि प्रतिवादी ने कहा है कि नवीनतम परिपत्र के अनुसार आरोपी का आवश्यक मेडिकल टेस्ट करने के लिए जरूरी नहीं है जैसा कि चिकित्सा अधिकारी द्वारा उचित समझा जाता है।
सिंगल बेंच ने इस आशय का एक अंतरिम आदेश दिया कि नवीनतम परिपत्र अपराधियों के मामलों में हिरासत में यातना के संकेत या शिकायतों पर आरोपी का मेडिकल जांच करने वाले डॉक्टरों को उचित जांच का आदेश देने से नहीं रोकेगा।
केस का शीर्षक: डॉ प्रतिभा के बनाम केरल राज्य एंड अन्य