चिकित्सा लापरवाही- त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने मृतक अधिवक्ता की मां को दस लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया

Update: 2021-01-05 08:28 GMT

त्रिपुरा उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने, जिसमें चीफ जस्टिस अकिल कुरैशी और ज‌स्ट‌िस एसजी चट्टोपाध्याय शामिल थे, सोमवार को त्रिपुरा राज्य को एक अधिवक्ता भास्कर देबरॉय की मौत के मामले में दस लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया। जांच में पाया गया था कि अधिवक्ता की मौत जीबीपी अस्पताल की चिकित्सा लापरवाही के कारण हुई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

सामाजिक कार्यकर्ता पुलक साहा की ओर से दायर जनहित याचिका में चिकित्सा लापरवाही के मामले में डॉक्टरों और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। य‌ाचिका में बताया गया था कि मृतक अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। याचिकाकर्ता ने आरोपों की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष जांच दल के गठन की भी प्रार्थना की थी।

मृतक अधिवक्ता की मां की ओर से मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन भी दायर किया गया था, जिसमें 15 लाख रुपए अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने के लिए अदालत से निर्देश मांगे गए थे। भास्कर देबरॉय की मां विधवा हैं, और वह इकलौती संतान थे। 6 मार्च 2020 को एक सड़क दुर्घटना के बाद उन्हें जीबीपी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भर्ती कराए जाने के वक्त वह सचेत थे। हालांकि, उपचार के दौरान हालत बिगड़ने के कारण 7 मार्च 2020 को उनकी मृत्यु हो गई।

मेडिकल ऑडिट टीम ने क्या पाया

10 मार्च 2020 को ऑडिट टीम ने एक प्रारंभिक रिपोर्ट की थी जिसमें निम्न निष्कर्ष निकाले गए थे-

-अस्पताल प्रशासन के पास मरीज का कोई उचित इतिहास उपलब्ध नहीं था।

-जिस डॉक्टर ने पहली बार मृतक की जांच की थी, उसने पुष्टि की कि वह अस्पताल पहुंचने पर सचेत थे।

-ट्रामा सेंटर में किसी भी जांच की सलाह नहीं दी गई, न ही किसी विशेषज्ञ की मदद ली गई।

-ट्रामा सेंटर में मरीज के प्रवेश से लेकर उसे मेडिकल वार्ड तक पहुंचाए जाने तक में उचित इलाज शुरू करने में देरी हुई।

-डॉक्टर ने मृतक की व्यवस्थित रूप से जांच नहीं की और उपचार के के संबंध में दूसरी चिकित्सकीय राय प्राप्त करने में विफल रहे।

ऑडिट टीम की 12 मार्च 2020 की अंतिम रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि मृतक को बाहरी और आंतरिक, दोनों प्रकार की कुल 17 चोटें लगी थीं।

रिपोर्ट में कहा गया, "बेड हेड टिकट के साथ पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की पूरी तरह से छानबीन और तुलना करने के बाद, सभी बयानों, विशेष रूप से संबंधित डॉक्टरों के बयानों से स्पष्ट है कि ट्रामा सेंटर, आपातकालीन और चिकित्सा विभाग के ऑन-ड्यूटी डॉक्टरों ने मरीज की ठीक से जांच और परीक्षण नहीं किया और इसलिए कई गंभीर चोटों को समझने में चूक गए जो अंततः मौत का कारण बने।"

मजिस्ट्रियल जांच के निष्कर्ष

राज्य सरकार ने इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच बिठाई थी, जिसका संचालन डीएम और कलेक्टर, पश्चिम त्रिपुरा, अगरतला ने किया था। 24 अगस्त 2020 को जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि आपतकालीन वार्ड में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों ने कोई शारीरिक परीक्षण नहीं किया था।

रिपोर्ट में कहा गया था, "मैं डॉ महात्मे संदीप एन, आईएएस, मजिस्ट्रेट ने घायल मरीज भास्कर देब रॉय को मानक देखभाल और उपचार प्रदान करने में चिकित्सा लापरवाही पाई है और इस प्रकार की लापरवाही का कारण देब रॉय की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई है। मैं, डॉ देबाशीष पॉल, डॉक्टर ट्रामा केयर सेंटर, डॉ रोनित दास, डॉ सुमन नाथ, AGMC और GBP अस्पताल के इमरजेंसी ब्लॉक के ईएमओ, को पूरी चिकित्सा लापरवाही के लिए जिम्मेदार पाता हूं, जिसके कारण भास्कर देबरॉय की मृत्यु हुई है। "

पीठ का अवलोकन

मजिस्ट्रियल रिपोर्ट और ऑडिट टीम की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची कि दोनों जांच में डॉक्टर और अस्पताल की घोर लापरवाही पाई गई है। इसके मद्देनजर, न्यायालय ने मामले में मृतक के परिवार को मुआवजा देने के प्रश्न पर विचार किया।

पीठ ने लीला शम्जी और अन्य बनाम बीवाईएल नायर अस्पताल और अन्य (2019) में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें न्यायालय ने उपहार सिनेमा मामले के फैसले पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ताओं को दस लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया था।

अदालत ने मामले के तथ्यों के विश्लेषण के बाद कहा कि यह मेडिकल लापरवाही का स्पष्ट मामला था। न्यायालय ने इसलिए मृतक की मां को दस लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

बेंच के निर्देश

-त्रिपुरा राज्य और राज्य स्वास्थ्य विभाग मृतक की मां को दस लाख रुपए का मुआवजा देंगे। यह राशि 15 फरवरी 2021 तक कोर्ट रजिस्ट्री को जमा की जाएगी।

-उक्त राशि में से तीन लाख रुपए की रा‌श‌ि एक पेचके के माध्यम से मां को जारी की जाएगी, जबकि शेष राशि को 5 साल की अवधि के लिए सावधि जमा में निवेश किया जाएगा।

-मृतक की मां को सावधि जमा पर आवधिक ब्याज मिलेगा।

-मृतक की मां के पास विकल्प है कि अगर वह और मुआवजा चाहती है तो मामले में आगे की कार्यवाही के लिए बढ़े।

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