[वैवाहिक विवाद] पूरे परिवार के खिलाफ मनगढ़ंत आरोपों को अनुमति देने से कानून की प्रक्रिया का और दुरुपयोग हो सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया है कि वैवाहिक विवादों में पूरे परिवार के खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाने से कानून की प्रक्रिया का और अधिक दुरुपयोग हो सकता है।
जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा,
"यदि वैवाहिक विवादों और मतभेदों के दौरान पूरे परिवार के खिलाफ गढ़े गए सर्वव्यापी आरोपों द्वारा झूठे आरोप लगाने की अनुमति दी जाती है, तो इससे कानून की प्रक्रिया का और अधिक दुरुपयोग हो सकता है और यह गंभीर रूप धारण कर सकता है।"
कोर्ट ने आईपीसी की धारा 182, 192, 195, 203, 389, 420, 469, 470, 471, 500, 120बी और 34 के तहत दर्ज एफआईआर में एक विवाहित महिला के पिता को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की।
अभियोजन पक्ष का यह मामला था कि एक सास की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी बहू, जो उसके बड़े बेटे से विवाहित थी, उसके साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी। उससे पैसे उगाहने के लिए उसने याचिकाकर्ता पिता और उसके दोस्त सहित अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर साजिश रची।
आरोप था कि ससुराल से गायब होने की योजना को अंजाम देने के लिए उसने खुदकुशी की झूठी जानकारी दी। इसी बीच बहू के परिजनों ने अपने दामाद व परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया। इसके परिणामस्वरूप शिकायतकर्ता के बेटे को गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उसे जमानत दे दी गई।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता का बेटा अपनी पत्नी द्वारा की गई गुमशुदगी की घटना को गढ़ने के आधार पर हिरासत में रहा। यह भी नोट किया गया कि अग्रिम जमानत के लिए उसके आवेदन के लंबित रहने के दौरान पत्नी को अंतरिम संरक्षण हाईकोर्ट द्वारा पहले ही अस्वीकार कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा,
"इस स्तर पर, इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि कोमल तलन (पत्नी) उक्त अवधि के दौरान परिवार के सदस्यों के संपर्क में थी और फलस्वरूप अभिषेक कुमार (पति) हिरासत में रहे। साथ ही, यह मामला कथित सुसाइड नोट के आधार पर मीडिया में उजागर हुआ प्रतीत होता है, जिसे अभियोजन पक्ष पुनर्प्राप्त करना चाहता है।"
अदालत ने पाया कि परोक्ष मकसद के कारण प्रतिशोध के लिए, कथित आत्महत्या की घटना को गढ़ा गया था और इससे न केवल प्रतिकूल मीडिया कवरेज हुआ, जिससे शिकायतकर्ता के परिवार को दुख हुआ, बल्कि पति को अनुचित तरीके से जेल में डाल दिया गया।
"आपराधिक कार्यवाही कानून की प्रक्रिया के घोर दुरुपयोग के रूप में शुरू की गई थी। इस तरह के आचरण के निहितार्थ और परिणामों को उपरोक्त समय पर याचिकाकर्ता द्वारा पूरी तरह से कल्पना नहीं की गई हो सकती है, लेकिन अभिषेक कुमार की अकारण हिरासत ने निश्चित रूप से निस्तारण की संभावना को बर्बाद कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि लापता होने और आत्महत्या की घटना को गढ़कर कानून को ढाल के बजाय हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है।"
फैसले में आगे कहा गया है,
"मेरा मानना है कि इस तरह की घटनाओं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि तथ्यों के इस तरह के गढ़ने से सामाजिक ताना-बाना बर्बाद न हो।"
इस आधार पर अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: अनिल कुमार तलान बनाम राज्य (सरकार एनसीटी दिल्ली)
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 641