[वैवाहिक विवाद] इस आधार पर एफआईआर रद्द नहीं कर सकते कि जांच अधिकारी ने प्रारंभिक जांच नहीं की: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक जांच करना या न करना जांच अधिकारी का अधिकार क्षेत्र है। इसके आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।
जस्टिस अनिल कुमार ओझा की खंडपीठ ने पीड़िता के पति, ससुर और सास द्वारा दायर दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई की।
याचिका में शिकायतकर्ता सीमा की ओर दर्ज एफआईआर से पैदा हुई पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई। सीमा ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए, 323, 506 और डी.पी. की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज कराया।
संक्षेप में मामला
पीड़ित सीमा ने आवेदकों के खिलाफ एफआईआर में आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने दहेज की मांग की और उसे पीटा भी। यह मामला फिलहाल झांसी के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में विचाराधीन है। मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई और संज्ञान व समन आदेश भी पारित कर दिया गया।
गौरतलब है कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान में विशेष रूप से कहा कि अगस्त 2020 में उसके ससुर गौरी शंकर, सास प्रेम कुमारी और दो ननदों ने उसे पीटा और मिट्टी का तेल डालकर जान से मारने की धमकी दी।
उसने आगे कहा कि वह किसी तरह वहां से भाग निकली और अपने पिता के घर आई। बाद में उसे पता चला कि उसके पति आशीष (आवेदक नंबर एक) ने तालाबंदी के दौरान दूसरी शादी कर ली।
उधर, आवेदकों ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में छह दिन की देरी की गई। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि आवेदकों को परेशान करने के लिए गलत मकसद और दुर्भावनापूर्ण इरादे से मामला दर्ज किया गया और आवेदकों के खिलाफ केवल सामान्य आरोप हैं।
इसलिए, उन्होंने पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने शुरुआत में ही स्पष्ट किया कि जांच न करने के आधार पर वैवाहिक विवाद से संबंधित एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाही में साक्ष्य के मूल्यांकन की अनुमति नहीं है।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
"क्या पीड़िता को आवेदकों द्वारा पीटा गया और परेशान किया गया, दहेज की मांग की गई या नहीं; क्या उसके पति आशीष ने दीक्षा नाम की एक अन्य महिला के साथ दूसरी शादी कर ली, यह तथ्य का सवाल है, जिसे इस कार्यवाही में तय नहीं किया जा सकता।"
उपरोक्त के मद्देनजर, न्यायालय का विचार है कि तत्काल आवेदन में योग्यता का अभाव है और यह खारिज किए जाने योग्य है। तदनुसार, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन बर्खास्त कर दिया गया।
केस का शीर्षक - आशीष और 2 अन्य वी. स्टेट ऑफ यू.पी.और दूसरा
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 38
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