बेमेल शादी तलाक का आधार नहीं, जिससे ऐसे जोड़ों को जीवन भर कटु संबंधों के साथ जीना पड़ता हैः दिल्‍ली हाईकोर्ट

Update: 2023-09-05 12:40 GMT

Delhi High Court 

दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं।

कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम में विवाहित जोड़े के बेमेल (incompatibility) होने को तलाक के आधार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, जिससे ऐसे जोड़ों को "कटु संबंधों" के साथ जीना पड़ता है, जिसमें से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा,

"जब तक विपरीत पक्ष की गलती नहीं दिखाई जाती, चाहे वह 'व्यभिचार', 'क्रूरता', 'परित्याग' या अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत निर्दिष्ट अन्य आधार हों, तलाक नहीं दिया जा सकता है। समय के साथ यह पता चला है कि कई बार असंगति और स्वभावगत मतभेदों के कारण विवाह नहीं चल पाते हैं, जिसके लिए किसी भी पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। हालांकि, चूंकि केवल दोष सिद्धांत ही प्रचलित है, इसलिए ये पक्ष वर्षों तक एक-दूसरे से केवल इसलिए लड़ते रहते है क्योंकि उनके पास इस रिश्ते से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है।"

पीठ ने कहा कि चूंकि

"अपूरणीय विवाह विच्छेद" को तलाक के आधार के रूप में पेश नहीं किया गया है, इसलिए अदालतों के हाथ बंधे हुए हैं और वे तब तक तलाक की डिक्री नहीं दे सकते जब तक कि पति या पत्नी में से किसी एक गलती न दिखाई जाए।

मामला

पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1) (आईए) के तहत "क्रूरता" के आधार पर तलाक की मांग की थी, जिसे फैमिली कोर्ट ने अनुमति दी ‌थी। जिसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट याचिका दायर कर फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हालांकि हाईकोर्ट ने भी पत्नी की याचिका खारिज कर दी।

‌मामले में पति और पत्नी ने 2006 में शादी की थी। पत्नी ने अगले साल एक बच्चे का जन्म दिया था। हालांकि, उसने 2008 में वैवाहिक घर छोड़ दिया। पति ने दावा किया कि उसने उससे झगड़ा करने के बाद घर छोड़ा और वह उसके और उसके परिवार के सदस्यों के प्रति आक्रामक, झगड़ालू और हिंसक स्वभाव की थी।

दूसरी ओर, पत्नी का मामला था कि उसे दहेज के कारण प्रताड़ित किया गया, बेरहमी से पीटा गया और उसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया। उसने यह भी आरोप लगाया कि पति ने उसके साथ क्रूरता की।

याचिका को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि दोनों पक्ष दिसंबर 2008 से अलग-अलग रह रहे थे, और दोनों पक्षों के बीच समझौते के कारण 2011 में पत्नी ने तलाक की याचिका वापस ले ली थी, जिसका दोनों में से किसी ने भी पालन नहीं किया।

“इसके अलावा, 24 दिसंबर 2018 को धारा 125 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही में काउंसलर के हस्तक्षेप से मामला फिर से सुलझा लिया गया, जिसमें दोनों पक्ष एक अलग निवास के लिए सहमत हुए लेकिन फिर से दोनों पक्षों द्वारा समझौते पर कार्रवाई नहीं की गई।"

अदालत ने कहा, ''यह स्पष्ट है कि पार्टियों के बीच मतभेद इतने गहरे हो गए हैं और वे जहां से चले गए हैं, वहां से वापस नहीं आ रहे हैं।''

इसके अलावा, पीठ ने कहा कि अलगाव की 15 साल की अवधि बीत चुकी है और दंपति के बीच मतभेद सुलझने योग्य नहीं हैं।

अदालत ने कहा कि पति की ओर से पत्नी पर की गई क्रूरता की कोई भी घटना साबित नहीं हुई है और लंबे समय तक मतभेद रहने से पति का जीवन शांति और वैवाहिक रिश्ते से वंचित हो गया है।

कोर्ट ने कहा कि दोनों के संबंध केवल चिड़चिड़ाहट और लड़ाई पर टिके हुए हैं और पत्नी का यह आचरण पति के प्रति क्रूरता का स्रोत बन गया है।

कोर्ट ने फैसले में कहा,

“हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वर्तमान मामले में दोनों पक्ष 15 वर्षों से अलग-अलग रह रहे हैं; पार्टियों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और इतने लंबे समय तक अलगाव के कारण झूठे आरोप, पुलिस रिपोर्ट और आपराधिक मुकदमा मानसिक क्रूरता का स्रोत बन गया है और इस रिश्ते को जारी रखने या फैमिली कोर्ट के आदेश को संशोधित करने का कोई भी आग्रह दोनों पक्षों के लिए एक दूसरे के खिलाफ केवल क्रूरता पैदा करेगा।"


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