वैवाहिक बलात्कार- पति द्वारा जबरन यौन संबंध बलात्कार के रूप में लेबल नहीं हो सकता; बदतरीन हालत में भी यह यौन शोषण भरः दिल्ली हाई कोर्ट में एनजीओ की दलील
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई जारी रखी। धारा 375 का अपवाद एक पुरुष को अपनी पत्नी के साथ बलपूर्वक यौन संबंध बनाने के मामले में बलात्कार के अपराध से छूट देता है।
एनजीओ हृदय की ओर से पेश एडवोकेट आरके कपूर ने जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ के समक्ष वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के विरोध में प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया ।
कपूर ने कहा कि वैवाहिक संबंधों में एक पति और उसकी पत्नी के बीच जबरन संभोग को बलात्कार के रूप में चिन्हित नहीं किया जा सकता है और उसे बदतरीन स्थिति में भी, केवल यौन शोषण कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह तथ्य घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत परिभाषित क्रूरता की परिभाषा से स्पष्ट होता है।
इसके अलावा, कपूर ने यह भी तर्क दिया कि एक पत्नी अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग करते हुए पति के खिलाफ एक विशेष सजा निर्धारित करने के लिए संसद को मजबूर नहीं कर सकती है।
उन्होंने कहा, "यह प्रस्तुत किया गया है कि संसद इतनी बुद्धिहीन नहीं थी कि एक ओर उसने पति को अपवाद 2 के तहत छूट दी और दूसरी तरफ उसने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति को कवर किया है। "
मामले में दायर अतिरिक्त लिखित दलीलों को पढ़ते हुए, कपूर ने कहा कि यह तर्क देना सही नहीं होगा कि विवाह में यौन कृत्य एक व्यक्तिगत कृत्य है और अपवाद 2 के समाप्त होने की स्थिति में विवाह की संस्था को नुकसान नहीं होगा।
कपूर ने यह भी कहा कि उचित वर्गीकरण के आधार पर संसद द्वारा अपवाद 2 को बनाए रखने में दोष नहीं पाया जा सकता है।
कपूर ने कहा, "कि अगर पति ने तथाकथित वैवाहिक बलात्कार के मामले में जोर या धमकी का इस्तेमाल किया है तो आईपीसी और अन्य कानूनों में अन्य पर्याप्त प्रावधान हैं। वैवाहिक संबंधों में पति और पत्नी के बीच यौन संबंध को बलात्कार के रूप में लेबल नहीं किया जा सकता है और बदतरीन स्थिति में भी इसे केवल यौन शोषण कहा जा सकता है, जो घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत परिभाषित क्रूरता की परिभाषा से स्पष्ट होगा। "
उन्होंने आगे कहा, "यही कारण है कि अपवाद 2 को बरकरार रखा गया है और संसद ने इस तरह के यौन शोषण के कृत्य को क्रूरता के तहत कवर किया है, और इसे एस 375 आईपीसी के तहत परिभाषित बलात्कार के दायरे से बाहर कर दिया है, और पति को धारा 376 आईपीसी की कठोरता से छूट दी है। "
उन्होंने आगे प्रस्तुत किया कि पत्नी के पक्ष में पर्याप्त प्रावधान हैं और यह नहीं कहा जा सकता कि संसद पत्नी के अधिकारों के प्रति सचेत नहीं थी। उन्होंने कहा, "इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि संसद ने पति द्वारा यौन शोषण के कृत्य को वैध कर दिया है।"
कपूर ने यह भी तर्क दिया कि सेक्स वर्कर की तुलना वैवाहिक जीवन से नहीं की जा सकती। कपूर ने तर्क दिया कि एक सेक्स वर्कर और एक अजनबी के बीच के रिश्ते की तुलना में विवाह संस्था अलग किस्म की अवधारणा है। उन्होंने कहा कि इस तरह की तुलना विवाह संस्था का अपमान होगी।
मामले की सुनवाई 27 जनवरी को होगी।
कल, मामले में एमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने अपनी दलीलें पूरी कीं थीं। उन्होंने प्रस्तुत किया कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद दो को बरकरार रखना संवैधानिक नहीं होगा। वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ याचिकाएं गैर सरकारी संगठनों आरआईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ और दो व्यक्तियों ने दायर की हैं।
केस शीर्षक: आरआईटी फाउंडेशन बनाम यूओआई और अन्य जुड़े मामले