मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत शक्ति का प्रयोग करके अन्वेषण की निगरानी कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत शक्ति का प्रयोग करके अन्वेषण की निगरानी कर सकता है।
न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सुधीर भास्करराव तांबे बनाम हेमंत यशवंत धागे, (2016) 6 एससीसी 277 मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की।
इसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि किसी मामले में जिस तरह से जांच की जा रही है, उससे व्यथित व्यक्ति, सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर कर सकता है क्योंकि मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार है कि वह उक्त प्रावधान के तहत जांच की निगरानी कर सकता है।
गौरतलब है कि सुधीर भास्करराव तांबे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साकिरी वासु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2008) 2 एससीसी 409 के फैसले पर भरोसा किया जताया था।
इसमें यह माना गया था कि यदि किसी व्यक्ति की शिकायत है कि उसकी प्राथमिकी पुलिस द्वारा दर्ज नहीं की गई है, या दर्ज की गई है, लेकिन उचित जांच नहीं की जा रही है, तो पीड़ित व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट नहीं जाना है, बल्कि सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना चाहिए।
संक्षेप में मामला
कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की गई, जिसमें प्रतिवादी अधिकारियों को आईपीसी धारा 363, 366 के तहत एक आपराधिक मामले में निष्पक्ष जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने निजी प्रतिवादियों के खिलाफ की जा रही जांच के तरीके से क्षुब्ध होकर अदालत का रुख किया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के समक्ष आरोप लगाया कि पुलिस आरोपी व्यक्तियों के साथ मिलीभगत कर रही है और अभी तक न तो आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है और न ही आरोपियों के खिलाफ कोई आरोप पत्र दायर किया गया है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मजिस्ट्रेट की अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए कहते हुए टी.सी. थंगराज बनाम वी. एंगमाल, (2011) 12 एससीसी 328 और एम.सुब्रमण्यम एंड अन्य बनाम एस. जानकी एंड अन्य, 2020 एससीसी ऑनलाइन एस.सी. 341 मामले पर भरोसा जताया।
कोर्ट ने कहा कि सीआर.पी.सी. की धारा 156 (3) एक मजिस्ट्रेट ऐसी सभी शक्तियों को शामिल करने के लिए पर्याप्त है जो उचित जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।
कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए एम. सुब्रमण्यम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताते हुए कहा,
"यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि उचित जांच नहीं की गई है या पुलिस द्वारा नहीं की जा रही है,तो मजिस्ट्रेट में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने और उचित जांच का आदेश देने की शक्ति शामिल है।"
केस का शीर्षक - सत्यप्रकाश बनाम यूपी राज्य एंड 6 अन्य
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 20
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