मद्रास हाईकोर्ट की फुल बेंच ने चाइल्ड कस्टडी मामलों की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र के पक्ष में फैसला सुनाया

Update: 2022-09-02 10:02 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 3:2 बहुमत के फैसले में चाइल्ड कस्टडी और संरक्षकता (guardianship) मामलों की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र के पक्ष में फैसला सुनाया।

जस्टिस पीएन प्रकाश, जस्टिस आर महादेवन, जस्टिस एम सुंदर, जस्टिस आनंद वेंकटेश और जस्टिस एए नक्किरन की बेंच ने कहा,

(i) क्या चाइल्ड कस्टडी और संरक्षकता के मामलों पर अपने मूल पक्ष पर हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 8 और 20 के सपठित धारा 7(1) के स्पष्टीकरण (जी) के प्रावधानों के मद्देनजर हटा दिया गया है?

(ii) क्या मैरी थॉमस बनाम डॉ के.ई. थॉमस (AIR 1990 मद्रास 100) इस न्यायालय की फुल बेंच का निर्णय अभी भी अच्छा कानून है?

जस्टिस आर महादेवन, जस्टिस एम सुंदर और जस्टिस एए नक्किरन ने बहुमत का फैसला सुनाया और कहा कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 7(1) के स्पष्टीकरण (जी) के मद्देनजर मूल पक्ष पर हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को हटाया नहीं गया। उन्होंने आगे देखा कि मैरी थॉमस में निर्णय एक अच्छा कानून बना रहा।

जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आनंद वेंकटेश ने हालांकि हाईकोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र के खिलाफ फैसला सुनाया और कहा कि मैरी थॉमस अच्छा कानून नहीं है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समवर्ती क्षेत्राधिकार का समर्थन किया और प्रस्तुत किया कि मैरी थॉमस में निर्णय अच्छा कानून है। यह प्रस्तुत किया गया कि "जिला न्यायालय" शब्द का अर्थ नहीं है और इसका अर्थ प्रत्येक अधिनियम पर निर्भर करता है।

याचिकाकर्ताओं ने आगे प्रस्तुत किया कि मद्रास हाईकोर्ट के पास पत्र पेटेंट अधिकार क्षेत्र है और इस अधिकार क्षेत्र को निहित रूप से नहीं लिया जा सकता। इस प्रकार, भले ही पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 8 क्षेत्राधिकार से बाहर है, इसने हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को बाहर नहीं किया है। याचिकाकर्ताओं ने सामंजस्यपूर्ण निर्माण की भी वकालत की और प्रस्तुत किया कि विशिष्ट विधायिका (पत्र पेटेंट) के माध्यम से दिया गया हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र सामान्य कानून (पारिवारिक न्यायालय अधिनियम) द्वारा छीना नहीं जा सकता।

हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को हटाने का तर्क देते हुए प्रतिवादियों ने प्रस्तुत किया कि लेटर्स पेटेंट के तहत हाईकोर्ट की शक्ति विधायी अधिनियमों के अधीन है। इस प्रकार यदि कोई कानून है, जो संसद या विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किया गया है और जो लेटर्स पेटेंट में प्रदान किए गए कुछ अलग प्रदान करता है तो उसे लेटर पेटेंट पर अधिकार होगा, जैसा कि क्लॉज 44 (जो क्लॉज 17 पर लागू होगा) के तहत प्रदान किया गया है।

उत्तरदाताओं ने यह भी प्रस्तुत किया कि वैवाहिक क्षेत्राधिकार न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र नहीं है। हाईकोर्ट के अधिनियम और समवर्ती क्षेत्राधिकार के तहत विशेष अदालत एक साथ उचित नहीं होगी। उत्तरदाताओं ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट एक्ट विशेष कानून होने के कारण संसदीय मंशा केवल हाईकोर्ट को ही अधिकार देना है।

केस टाइटल: एस. अन्नपूर्णी बनाम के. विजय

मामला नंबर: आवेदन नंबर 5445/2018

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