मद्रास हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को धारा 73 सीआरपीसी के तहत फरार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया

Update: 2022-03-28 04:57 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

तिरुमंगलम आन्ट्रप्रनर (उद्यमी) एक्सटॉर्शन केस में मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों सहित फरार आरोपियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि आरोपी गिरफ्तारी से बच रहे हैं और जांच अधिकारी के पास एकमात्र उपाय सीआरपीसी की धारा 73 के तहत मजिस्ट्रेट से गैर-जमानती वारंट प्राप्त करना है।

जस्टिस एडी जगदीश चंडीरा पुलिस उपाधीक्षक, सीबीसीआईडी ​​द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें गैर-जमानती वारंट जारी करने की याचिका को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई थी।

मजिस्ट्रेट के आदेश में उल्लेख किया गया था कि "उक्त विशिष्ट प्रावधान (धारा 73 सीआरपीसी) लंबित मामलों को वारंट जारी करने के लिए है, न कि जांच के लिए वारंट जारी करने के लिए"। हाईकोर्ट ने सहायक पुलिस आयुक्त शिवकुमार, पुलिस निरीक्षक सरवनन और उप निरीक्षक पंडियाराजन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया।

इस मामले में, प्रतिवादी पुलिस अधिकारियों पर संज्ञेय और गैर-जमानती अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया है। अदालत ने सीबीआई बनाम दाऊद इब्राहिम कासकर और अन्य, 2000(10) एससीसी 43 के माध्यम से राज्य पर भरोसा किया कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 73 के तहत जांच के दरमियान आरोपी की गिरफ्तारी के लिए वैध रूप से अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

दाऊद इब्राहिम कासकर मामले में शीर्ष अदालत ने माना था कि सीआरपीसी की धारा 73 मजिस्ट्रेट को वारंट जारी करने की शक्ति प्रदान करती है और उक्त शक्ति का प्रयोग जांच के दरमियान भी किया जा सकता है।

इसे ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा, "जैसा कि ऊपर कहा गया है, मामले में आरोपी गिरफ्तारी से बच रहे हैं और जांच अधिकारी के पास उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए एकमात्र रास्ता यह है कि वह मजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा 73 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए कहे और उसके बाद ही अन्य प्रक्रियाओं जैसे उद्घोषणा और कुर्की में आगे बढ़ सकता है।

ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट के लिए सीआरपीसी की धारा 73 के तहत वैध रूप से अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए व्यक्ति को जांच के दर‌मियान गिरफ्तार करने के लिए कोई रोक नहीं है क्योंकि प्रतिवादियों पर गैर-जमानती अपराध का आरोप है और वे गिरफ्तारी से बच रहे हैं।"

जांच अधिकारी के अनुसार, प्रतिवादी/आरोपी सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के तहत समन देने के बाद भी गिरफ्तारी से बच रहे हैं। एकल पीठ के समक्ष उन्होंने प्रस्तुत किया कि आरोपी पुलिस अधिकारियों पर गंभीर अपराधों का आरोप है, जो संज्ञेय और गैर-जमानती हैं। उन्होंने कहा कि यूनिफॉर्म सर्विस से संबंधित अधिकारियों से कानून का पालन करने और जांच में सहयोग करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन वे अब तक इसके विपरीत काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिवादी ने पीड़ित के परिवार के सदस्यों को मानवाधिकार आयोग के समक्ष उसके खिलाफ शिकायत करने के लिए उकसाया।

मामले में शिकायत राजेश ने की थी, जिनका दावा था कि वह एक उद्यमी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि श्री थारुन कृष्ण प्रसाद और 9 अन्य लोगों ने पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर शिकायतकर्ता का अपहरण किया और जबरन वसूली के जर‌िए उसकी संपत्ति को स्थानांतरित कर लिया।

सीबीसीआईडी ने आईपीसी की धारा 147, 323, 347, 384 और 420 के तहत मामला दर्ज किया, जिसे बाद में आईपीसी की धारा 147, 323, 347, 384 और 420 और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम की धारा 4 में बदल दिया गया। पुलिस के मुताबिक इस अपराध में अब तक 5 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

द हिंदू के अनुसार, मामला दर्ज किया गया था क्योंकि वास्तविक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसे गलत तरीके से अपने मंगेतर और परिवार के सदस्यों के साथ रेड हिल्स के एक फार्महाउस में कैद किया गया था। आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को धमकाया, जबरन वसूली की और उसकी संपत्तियों को आंध्र प्रदेश के श्रीनिवास राव और थारुन कृष्णप्रसाद के नाम पर पंजीकृत करने के लिए मजबूर किया। पुलिसकर्मियों ने एक सिविल विवाद में हस्तक्षेप करते हुए 'अवैध समझौते' का सहारा लिया।

मजिस्ट्रेट के प्रारंभिक आदेश को रद्द करने के बाद, हाईकोर्ट ने अब सीसीबी और सीबीसीआईडी, एग्मोर, चेन्नई के लिए विशेष ट्रायल कोर्ट को गिरफ्तारी के गैर-जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया है।

केस शीर्षक: पुलिस उपाधीक्षक, सीबी सीआईडी ​​बनाम ए. शिवकुमार और अन्य द्वारा राज्य प्रतिनिधि

केस नंबर: CRL.O.P.No.6330 of 2022

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 121

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