मद्रास हाईकोर्ट ने वेतन जारी करने के लिए इंस्पेक्टर के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने में विफल रहने पर डीजीपी को फटकार लगाई
मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस इंस्पेक्टर को उसके लंबित वेतन के संबंध में राहत प्रदान करते हुए 2019 में उनके द्वारा दिए गए प्रतिनिधित्व पर विचार नहीं करने के लिए पुलिस डायरेक्टर जनरल की आलोचना की।
अदालत ने कहा,
“यह हमारे देश में नौकरशाहों के सुस्त रवैये के क्लासिक मामलों में से एक है। प्रत्येक कर्मचारी, जो अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करता है, वह नियोक्ता से बिना किसी अनुचित देरी के नियमित रूप से अपने वेतन के भुगतान की अपेक्षा करेगा। कर्मचारी को खुद जीवित रहना है और उसे अपने परिवार का भरण-पोषण करना है और उसे जो वेतन मिल रहा है, उससे अपने परिवार के सदस्यों की सभी जरूरतों का ख्याल रखना है।”
जस्टिस बट्टू देवानंद ने यह भी कहा कि डीजीपी की कार्रवाई न केवल अवैध है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले इंस्पेक्टर के जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन है।
अदालत ने कहा,
“इस प्रकार, इस न्यायालय को यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि प्रतिवादी 14.12.2019 को याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदन पर विचार करने और उचित आदेश पारित करने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहा है, जो भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 के तहत अवैध, अन्यायपूर्ण, मनमाना, तर्कहीन और उसका उल्लंघन है।“
याचिकाकर्ता एमए रंजीत ने अदालत को बताया कि वह 20 साल से सेवा में हैं और बहुत ईमानदारी से कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी ईमानदारी के कारण ही उनका लगभग 39 बार ट्रांसफर हो चुका है। उन्होंने दावा किया कि कुछ उच्च आधिकारिक दबाव और कुप्रशासन के कारण उनका वेतन लंबे समय से रुका हुआ है।
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि हालांकि उन्होंने प्रशासनिक विभाग को कई अभ्यावेदन सौंपे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। अदालत को यह भी बताया गया कि उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित है और उसे उसके मेडिकल खर्च और अपने दो बच्चों की शिक्षा का भी ध्यान रखना है।
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में हालांकि मार्च 2020 में नोटिस का आदेश दिया गया, कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया गया। अदालत ने 21 जून को सरकारी वकील को रंजीत द्वारा दायर अभ्यावेदन की स्थिति के संबंध में निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया।
ए़डिशनल एडवोकेट जनरल द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट पर गौर करने पर अदालत ने पाया कि हालांकि कुछ कारणों का उल्लेख किया गया, लेकिन ऐसा लगता है कि स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए इसका आविष्कार किया गया और डीजीपी द्वारा प्रतिनिधित्व का निपटारा नहीं किया गया।
अदालत ने कहा,
“जब पुलिस निरीक्षक कैडर का अधिकारी पुलिस डायरेक्टर जनरल, जो राज्य के पुलिस विभाग का प्रमुख होता है, उनको अभ्यावेदन प्रस्तुत करता है, यदि उक्त अभ्यावेदन पर अमल नहीं होता है और कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जाती है तो यह स्वतः ही यह साबित करता है कि याचिकाकर्ता को किस तरह परेशान किया जा रहा है। यदि प्रतिवादी को अपने अभ्यावेदन पर विचार करने और उचित आदेश पारित करने के लिए याचिकाकर्ता से किसी अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता है तो यह प्रतिवादी पर निर्भर है कि वह याचिकाकर्ता को इसकी सूचना दे। बेशक, प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता को ऐसी सूचना जारी नहीं की गई।”
कोर्ट ने याचिका मंजूर कर ली और डीजीपी को एक सप्ताह के भीतर उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा,
"वर्तमान मामले में जैसा कि याचिकाकर्ता का तर्क है कि उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित है, निश्चित रूप से उसे उसके मेडिकल खर्चों को पूरा करना होगा। चार साल से वेतन का भुगतान न करने और उसके अभ्यावेदन पर विचार न करने के कारण यानी वर्ष से 2019, याचिकाकर्ता के परिवार के सभी सदस्यों को मानसिक और आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा। जिससे, वे अपूरणीय क्षति और कठिनाइयों को झेलने के लिए मजबूर हैं।"
केस टाइटल: एमए रंजीत बनाम पुलिस डायरेक्टर जनरल
साइटेशन: लाइव लॉ (मैड) 178/2023
याचिकाकर्ता के वकील: एम मधुप्रकाश और प्रतिवादी के वकील: एम. कुमारसन एडिशनल एडवोकेट जनरल VII, पी. विजया देवी, सरकारी वकील द्वारा सहायता प्राप्त
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