प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उपहासजनक पोस्ट और वीडियो डालने के मामले में कांग्रेस कार्यकर्ता पर दर्ज FIR रद्द करने से हाईकोर्ट का इनकार
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कांग्रेस कार्यकर्ता यादवेंद्र पांडेय के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया।
बता दें, पांडेय पर आरोप है कि उन्होंने फेसबुक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंधित एक विवादास्पद वीडियो और उपहासजनक तस्वीर पोस्ट की थी। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि पांडेय ने भारतीय सशस्त्र बलों के खिलाफ 'अपमानजनक भाषा' का इस्तेमाल किया।
जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर मामले में तय दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि FIR रद्द करने के मामलों में न्यायालय का हस्तक्षेप बहुत सीमित होता है और केवल “रेयरेस्ट ऑफ द रेयर” मामलों में ही ऐसा किया जाना चाहिए, जहां प्रथम दृष्टया कोई अपराध बनता ही न हो। परंतु वर्तमान मामले में कोर्ट ने यह पाया कि अभियोजन पक्ष ने पांडेय के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किए हैं।
कोर्ट ने कहा,
“ऐसी परिस्थितियों में FIR और आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी तर्क साक्ष्यों से संबंधित हैं, जिनका परीक्षण ट्रायल कोर्ट के समक्ष किया जाना होगा। इस चरण पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि FIR में लगाए गए आरोप सत्य प्रतीत होते हैं या नहीं अथवा जिन अपराधों का आरोप है, उनके तत्व सिद्ध होते हैं या नहीं।”
कोर्ट ने यह दोहराया कि हाईकोर्ट FIR के स्तर पर साक्ष्य की सराहना करने या तथ्यों की विस्तृत जांच करने की स्थिति में नहीं है। चूंकि अभी जांच जारी है और FIR में हस्तक्षेप करने लायक कोई सामग्री नहीं है, इसलिए कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह बिना आधार की है।
प्रकरण की पृष्ठभूमि में यह आरोप है कि यादवेंद्र पांडेय, जो कि कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं, ने फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान के दबाव में हैं और उन्होंने पाकिस्तान पर हमले को वापस ले लिया है।
इसके साथ ही उन्होंने उपहासजनक फोटो भी डाली और भारतीय सेना के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। इसी आधार पर उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 352, 197 और 162 के तहत FIR दर्ज की गई।
FIR रद्द करने की मांग करते हुए पांडेय ने तर्क दिया कि उन्होंने न तो वीडियो पोस्ट किया और न ही तस्वीर। उन्होंने कहा कि वह सिंहपुर ग्राम पंचायत में उप-सर्पंच के पद पर हैं और यह शिकायत राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है, क्योंकि उन्होंने पहले विपक्षी पक्षकारों के खिलाफ जालसाज़ी की शिकायतें दर्ज कराई थीं।
उन्होंने यह भी कहा कि विरोधी पक्ष भारतीय जनता पार्टी से संबंधित हैं और उन्होंने पुलिस पर FIR दर्ज करने के लिए दबाव डाला।
पांडेय ने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य देश की छवि को नुकसान पहुँचाना नहीं था और उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है। यह पूरी कार्यवाही केवल राजनीतिक दुश्मनी के चलते की गई है।
राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि FIR में उपलब्ध सामग्री यह दिखाती है कि पांडेय प्रथम दृष्टया अपराध में शामिल हैं।
राज्य ने यह भी कहा कि जांच अभी जारी है और यदि पांडेय के खिलाफ कुछ भी नहीं पाया गया तो पुलिस अंतिम रिपोर्ट (क्लोज़र रिपोर्ट) दाखिल कर सकती है। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं होती तब तक FIR रद्द नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने अंततः कहा कि FIR को रद्द करने के लिए हस्तक्षेप केवल अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही किया जाना चाहिए जहां प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं बनता।
चूंकि इस मामले में प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध है, कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।