निर्दोष को हिरासत में रखने का मामलाः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट राज्य सरकार को 5 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया, पुलिसकर्मियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला बिना ‌उचित पहचान के निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार करने का उदाहरण है।

Update: 2020-02-12 06:58 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक दोषी के बहाने निर्दोष को हिरासत में लिए जाने और गैर-कानूनी कार्रवाई का बचाव करने के मामले में राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि-

"मौजूदा मामले में एक ऐसे व्यक्ति को, जो न आपराधिक मामले में दोषी है और न ही अंडर ट्रायल है, पुलिस ने जेल भेज दिया। उसे गांव से पकड़ा गया और मजिस्ट्रेट के सामने यह कहते हुए पेश किया गया कि वह हुस्ना है। विद्वान जज ने भी विचार किए बिना, मात्र पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर, उस व्य‌क्ति को जेल भेज दिया। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि राज्य सरकार ने भी अपने जवाब 68 साल के निर्दोष व्यक्ति को जेल भेजने की अपनी अवैध कार्रवाई का बचाव किया।"

उल्लेखनीय है कि 68 साल के अनपढ़ आदिवासी व्यक्ति के पक्ष में दायर हैबियस कॉर्पस से यह मामला जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस शैलेंद्र शुक्ला के ध्यान में लाया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया था कि 'हुस्ना', जिसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था, उसकी तब मृत्यु हो गई, जब वह पैरोल पर था। पुलिस पैरोल की अवध‌ि समाप्त होने के बाद, हुस्ना के बजाय, याचिकाकर्ता के पिता 'हुसैन' को गिरफ्तार कर लिया।

कोर्ट में हुई सुनवाई में राज्य सरकार ने अपनी सफाई में कहा कि पुलिस ने सही व्यक्ति को हिरासत में लिया है। मामले में सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (पुलिस) ने हलफनामा भी दिया। हालांकि याचिकाकर्ता के आग्रह पर कोर्ट गृह विभाग के प्रमुख सचिव को उंगलियों के निशान और अन्य सामग्रियों के आधार पर आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया।

प्रमुख सचिव की रिपोर्ट में बताया गया कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति, वह व्यक्ति नहीं है, ‌जिसे दोषी करार दिया गया था।

कोर्ट ने कहा-

"मामले में उंगलियों के निशान के आधार पर जांच की गई। प्रमुख सचिव, गृह विभाग की हस्ताक्षरित रिपोर्ट आ चुकी है और उन्होंने कहा कि जेल में बंद व्यक्ति हुस्ना नहीं है। मतलब यह कि पिछले चार महीनों से जेल में निर्दोष व्‍यक्ति को बंद किया गया है।"

कोर्ट ने कहा कि यह 'दुर्भाग्यपूर्ण' है कि मामले में द‌िए अपने जवाब में राज्य सरकार ने एक निर्दोष को अपराधी बनाने की कोश‌िश की।

"याचिकाकर्ता के आग्रह ने हमें गहन जांच का निर्देश देने के लिए मजबूर किया। हुस्ना को जब जेल में बंद किया गया था, तब लिए गए उसकी उंगलियों के निशान और जेल में वर्तमान में बंद व्य‌क्ति की उंगलियों के निशान के आधार पर, प्रमुख सचिव, गृह विभाग को रिपोर्ट देने को कहा गया। प्रमुख सचिव की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जेल में बंद व्य‌क्ति हुस्ना नहीं है, इसलिए उसे हिरासत में रखना अवैध है।"

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला बिना ‌उचित पहचान के निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार करने का उदाहरण है।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि-" गिरफ्तारी कि सभी मामलों में, अधिकारी बायो-मैट्रिक और अन्य दस्तावेज के आधार पर गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों की पहचान करें ताकि कोई निर्दोष व्यक्ति, जैसा वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के पिता हुसन के साथ हुआ, जेल न जाए।"

साथ ही कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में पारित आदेश के अनुपालन के लिए राज्य सरकार पुलिस समेत सभी अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करेगी।

कोर्ट ने हलफनामे में गलत बयान देने और निर्दोष व्यक्ति को अपराधी ठहराने की को‌शिश पर सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (पुलिस) को भी कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (पुलिस) के खिलाफ अवमानना ​​का मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

साथ ही उन सभी व्यक्तियों के खिलाफ भी, जिन्होंने रोजनामचे में यह बताते हुए प्रविष्टियां की थीं कि सही व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, के ‌खिलाफ़ भी अवमानना का मामला दर्ज करने को कहा।

कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता के पिता हुसन को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया।

मामले का विवरण:

केस टाइटल: कमलेश बनाम मप्र राज्य

केस नं .: WP No 26923/2019

कोरम: जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस शैलेंद्र शुक्ला

वकील : एडवोकेट देवेंद्र चौहान (याचिकाकर्ता के लिए); एडि‌शनल एडवोकेट जनरल आरएस छाबड़ा के साथ एडवोकेट मुदित माहेश्वरी (राज्य सरकार के लिए)

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