मध्यप्रदेश सरकार ने NLIU भोपाल के छात्र की जनहित याचिका पर महिलाओं और 12 साल से कम उम्र के बच्चो को हेलमेट पहनने की छूट देने वाले मोटरवाहन नियम को हटाया

Update: 2021-04-17 11:03 GMT

NLIU भोपाल के छात्र की एक जनहित याचिका (PIL) पर मध्य प्रदेश सरकार ने आखिरकार उस मोटरवाहन नियम को हटा दिया है, जो महिलाओं और 12 साल से कम उम्र के बच्चो को हेलमेट पहनने की छूट दे रहा था।

इस संबंध में नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (एनएलआईयू) भोपाल के चौथे वर्ष के बीएएलबी (ऑनर्स) छात्र हिमांशु दीक्षित ने एक जनहित याचिका (21761/2019) अक्टूबर 2019 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दायर की थी।

इस जनहित याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता ने 'मध्यप्रदेश मोटरवाहन नियम, 1994' के नियम 213 (2) की वैधता को चुनौती दी थी। इस नियम के चलते मध्यप्रदेश में महिला दुपहिया चालकों और पीछे सवार महिलाओं दोनों पर हेलमेट पहनने की अनिवार्यता लागू नहीं होती थी, जबकि, केंद्रीय मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 129 के तहत पूरे भारत में हेलमेट पहनना अनिवार्य होता है।

लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 1994 में केंद्र सरकार की इस धारा में इस प्रकार का परिवर्तन कर दिया था, जिससे कि हेलमेट पहनने की अनिवार्यता का प्रावधान मध्यप्रदेश में किसी भी महिला और 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर लागू ही नहीं होता था। अतएव, याचिकाकर्ता ने इस तरह इस क़ानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1) और 21 कि मंशा के विपरीत खड़ा पाया।

यह जनहित याचिका दायर करने से पहले हिमांशु के द्वारा शोध करने पर यह पाया गया था कि सरकारी सड़क आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में हर एक घंटे में सड़क दुर्घटना से मरने वाले 4 दोपहिया चालकों द्वारा हेलमेट नहीं पहना जाता था।

शोध में यह भी पता चला कि भारत की कुल सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए वाहनचालकों की संख्या मध्यप्रदेश में इतनी ज्यादा है कि मध्यप्रदेश पूरे देश में चौथे स्थान पर है। अकेले मध्यप्रदेश के लिहाज से ही बात की जाए तो वर्ष 2017 में करीब 1949 दोपहिया वाहन सवार मारे गए थे, जबकि कुल 1202 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।

इसका कारण यह था, क्योंकि वे सब दुर्घटनाओं के समय हेलमेट का इस्तेमाल ही नहीं कर रहे थे। याचिकाकर्ता द्वारा भारत सरकार के MoRTH से उपलब्ध कराए गए आरटीआई जवाब के अनुसार यह भी पता चला कि वर्ष 2015 में मध्यप्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं में 481 महिला दोपहिया वाहन सवारों की मौत हो गई थी, जबकि वर्ष 2016 में यह संख्या 457 पर थी, और वर्ष 2017 में यह मृत्यु संख्या 445 पाई गई थी।

इसके अलावा, "सड़क परिवहन वर्ष पुस्तक" के अनुसार, यह देखा जाता कि मध्य प्रदेश में एक साल में औसतन पचास लाख से अधिक ड्राइविंग लाइसेंस जारी किये जाते है, जिनमें से तकरीबन 3 लाख लाइसेंस अकेले महिलाओं के होते है। इनमे से भारी संख्या दोपहिया वाहनचालकों की होती है। अतः इससे यह पता चलता है कि याचिकाकर्ता के लिए चिंता का विषय चंद या मामूली-सी जनसंख्या तक ही सीमित नहीं था; बल्कि यह चिंता पूरे राज्य की लाखों महिलाओं से जुडी हुई थी।

याचिकाकर्ता द्वारा इस केस में कई बार जिरह के समय इस बात पर भी पुरजोर दिया गया कि पूर्व में भी भारत के कई हाईकोर्टों द्वारा और स्वयं उच्चतम न्यायालय ने यह मान रखा है कि हेलमेट पहनना दोपहिया वाहन सवारों पर एक अनिवार्य बाध्यता है। जब सड़क दुर्घटना में किसी को चोट लगती है, तब वह चोट यह नहीं देखती कि वाहनचालक का धर्म, जाती, उम्र या लिंग क्या है। इसलिए, महिलाओं या अन्य सवारों को हेलमेट न पहनने की छूट देना, एक अच्छी पॉलिसी को नहीं दर्शाता है।

इस प्रकार से याचिकाकर्ता ने उपरोक्त रिपोर्टों, निर्णयों और दस्तावेजों को आधार बनाते हुए कोर्ट में यह प्रस्तुत किया कि चूंकि हेलमेट न पहनने के कारण अपनी जान गंवाने वाले लोगों की संख्या अभूतपूर्व है, इसलिए, एमपी मोटर वाहन नियम 1994 के नियम संख्या 213 (2) को जल्द से जल्द रद्द करने की आवश्यकता है।

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