"हत्या जैसे गंभीर अपराध के मामले में लंबी कैद जमानत का आधार नहीं": जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 7 साल से अधिक समय से जेल में बंद अंडरट्रायल कैदी को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2021-06-29 12:22 GMT

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 7 साल से अधिक समय से जेल में बंद अंडरट्रायल कैदी को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार किया  कि हत्या जैसे गंभीर अपराध के मामले में केवल लंबी कैद के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती है।

कोर्ट ने इस प्रकार दिसंबर 2012 से लंबित मुकदमे में एक हत्या के आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति संजय धर की एकल पीठ ने कहा कि COVID-19 महामारी के कारण मामलों की फिजिकल सुनवाई में प्रतिबंधों के कारण ट्रायल पूरा होने में कुछ देरी हुई है, लेकिन यह एक ऐसी घटना है जो सभी के नियंत्रण से बाहर है। हत्या जैसे गंभीर अपराध के मामले में केवल लंबी कैद के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती है।

आगे कहा कि,

"ऐसे मामले में जहां किसी व्यक्ति को मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा के दंडनीय अपराध में शामिल होने का आरोप लगाया जाता है, उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है, अगर यह मानने के लिए उचित आधार है कि वह इस तरह के अपराध का दोषी हो सकता है।"

इस मामले में याचिकाकर्ता को कथित रूप से आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध करने के आरोप में 31 दिसंबर, 2012 से जेल में रखा गया था। फरवरी 2014 में ट्रायल कोर्ट में सुनवाई हुई और बाद में आरोपी के रूप में अधिक व्यक्तियों को फंसाने से संबंधित घटनाओं के कारण दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल पर रोक लगा दी थी। इस प्रकार लगभग तीन वर्षों तक मामले में मुकदमा ठप रहा।

अदालत ने कहा कि मामले में अभियोजन पक्ष के साक्ष्य अभी पूरे नहीं हुए हैं।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस ठाकुर ने कहा कि मुकदमे के पूरा होने में देरी केवल अभियोजन पक्ष के साथ-साथ शिकायतकर्ता पक्ष भी जिम्मेदार है और इसके लिए उसे बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता।

अधिवक्ता आरएस ठाकुर ने मैरिट के आधार पर जमानत की मांग करते हुए दावा किया कि अभियोजन पक्ष ने अब तक जो भी सबूत दर्ज किए हैं, वह प्रथम दृष्टया कथित अपराध में याचिकाकर्ता की संलिप्तता को भी नहीं दर्शाता है क्योंकि अब तक दर्ज किए गए सबूत विरोधाभासी और अविश्वसनीय हैं।

एएजी असीम साहनी ने तर्क दिया कि अभियोजन साक्ष्य के पूरा होने में देरी अभियोजन पक्ष के कारण नहीं हुआ है क्योंकि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के कारण मामले की सुनवाई काफी समय तक रुकी हुई थी।

कोर्ट ने कहा कि जमानत देने से पहले दोषसिद्धि के मामले में आरोप की प्रकृति और सजा की गंभीरता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने आगे कहा कि,

"अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान, जिन्हें याचिकाकर्ता के वकील द्वारा संदर्भित किया गया है, से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया उन्होंने अभियोजन मामले का समर्थन किया है। यह ऐसा मामला नहीं है जहां ये गवाह मुकर गए हैं या उन्होंने कुछ ऐसा कहा है जो अभियोजन पक्ष ने आरोप पत्र में जो आरोप लगाया है, वह बिल्कुल विपरीत है।"

आगे कहा कि,

"उपरोक्त अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों की एक सावधानीपूर्वक या विस्तृत जांच मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर उनके बयानों में विसंगतियों और विरोधाभासों को सामने ला सकती है या नहीं ला सकती है, लेकिन इस अदालत के लिए इस तरह की कवायद करने के लिए यह फारेम नहीं है क्योंकि ऐसा करना मतलब मामले के मैरिट का अनुमान लगाना होगा।"

कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि एक बात स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष द्वारा अब तक दर्ज किए गए गवाहों के बयानों और जांच के दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयानों के रूप में प्रथम दृष्टया साक्ष्य हैं, जिन्हें ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाना बाकी है कि याचिकाकर्ता प्रथम दृष्टया कथित अपराध में शामिल है। इसलिए इस न्यायालय के लिए मैरिट के आधार पर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने की कोई गुंजाइश नहीं है।"

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मुकदमे में देरी अभियोजन पक्ष की गलती के कारण नहीं बल्कि उन कारणों से हुई जिसके लिए किसी निकाय को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

बेंच ने इसके अलावा कहा कि कोर्ट के पास मामले में जमानत के सवाल पर ट्रायल कोर्ट द्वारा लिए गए निर्णय से अलग दृष्टिकोण अपनाने का कोई नया आधार नहीं पाया गया है।

केस का शीर्षक: सोहन सिंह बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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