लॉकडाउनः यदि जमानत मांगने वाले आवेदक का परिवार दिल्ली से बाहर रहता है तो उस पर वकालतनामा सहित अन्य दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने का दबाव न बनाया जाए : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2020-05-16 02:30 GMT

लॉकडाउन के कारण लगाए गए प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि जमानत मांगने के जिन मामलों में आवदेक जेल में है और/या उसका परिवार दिल्ली परिवार दिल्ली से बाहर रहता है, उन मामलों में हस्ताक्षरित /अटेस्टेड वकालतनामा, शपथ पत्र या आवेदन दाखिल करने का दबाव न बनाया जाए।

न्यायमूर्ति आशा मेनन की एकल पीठ ने यह भी आदेश दिया है कि यदि कोई व्यक्ति हिरासत में है या वह दिल्ली से बाहर रहता है, तो उन मामलों में दिल्ली के जिला न्यायालयों में स्थित कोई भी सुविधा केंद्र उस व्यक्ति से फिजिकली आकर वकालतनामा को हस्ताक्षरित और सत्यापित करने के लिए आग्रह नहीं करेगा। न ही सिर्फ इस कारण से जमानत आवेदन स्वीकार करने से मना किया जाए।

वर्तमान मामले में, द्वारका न्यायालय में स्थित सुविधा केंद्र ने दो आधारों पर ऑनलाइन दायर की गई जमानत अर्जी को खारिज कर दिया था।

पहला यह कि अभियुक्त द्वारा स्वयं या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा वकालतनामा पर हस्ताक्षर और उसका सत्यापन नहीं किया गया था। दूसरा कारण यह बताया गया था कि एप्लिकेशन को न तो बुकमार्क किया गया था और न ही वह उचित प्रारूप में थी।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि एक सत्यापित/ हस्ताक्षरित वकालतनामा प्राप्त करने में आने वाली कठिनाईयों में बारे में समझाने के बावजूद भी ऑनइलान फाइलिंग को खारिज कर दिया गया। मामले में आवेदक का वकील गुरुग्राम में रहता था और आवेदक का परिवार गाजियाबाद में रहता था, जबकि दोनों राज्यों की सीमाएं सील हैं।

यह भी दलील दी गई कि जब कोई व्यक्ति हिरासत में हो तो उसके यह असंभव है कि वह फिजिकली आकर सर्टिफिकेट को साइन करे।

राज्य की तरफ से पेश होते हुए श्री राहुल मेहरा ने दलील दी कि जिला न्यायालयों को निर्देश दिया जाए कि वह दिल्ली हाईकोर्ट की प्रैक्टिस का पालन करें। यहां तक ​​कि वकालतनामा दाखिल करने के संबंध में भी हाईकोर्ट ने दिशानिर्देश दिए हैं, जिनका उद्देश्य इन असाधारण परिस्थितियों में मुविक्कलों व वकीलों को सुविधा प्रदान करना है।

विभिन्न ट्रायल कोर्ट द्वारा ई-फाइलिंग और वकालतनामा फाइलिंग के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को ध्यान में रखने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में अनोखे तथ्य हैं। जिनको द्वारका कोर्ट स्थित सुविधा केंद्र को अधिक संवेदनशीलता के साथ संभालना चाहिए या इन पर विचार करना चाहिए था।

अदालत ने कहा कि-

'जमानत के आवेदनों को अनधिकृत रूप से दाखिल करने से रोकने के मामले में जिला न्यायालयों की चिंता थोड़ी गलत लगती है, क्योंकि जमानत की अर्जी किसी ऐसे व्यक्ति के लाभ के लिए दायर की जाती है जो जेल में है। अगर किसी मामले में जमानत की अर्जी खारिज भी हो जाती है, तो कोई भी अदालत उचित औचित्य के साथ एक नई जमानत अर्जी दाखिल करने पर रोक नहीं लगाती है। वहीं संबंधित अदालत फिर से कानून के उसका निपटारा कर देगी।'

कोर्ट ने यह भी कहा कि जब द्वारका कोर्ट स्थित सुविधा केंद्र के संज्ञान में इस मामले के अनोखे तथ्यों को ला दिया गया था तो अधिवक्ता के माध्यम से एक अंडरटेकिंग लिया जा सकता था कि लॉकडाउन खत्म होने के दो सप्ताह के अंदर वह न केवल विधिवत हस्ताक्षरित, सत्यापित और अटेस्टेड याचिका/ आवेदन की मूल कॉपी दाखिल कर देगा बल्कि विधिवत हस्ताक्षरित वकालतनामा भी दायर कर दिया जाएगा।

इसलिए हाईकोर्ट ने द्वारका कोर्ट स्थित दक्षिण-पश्चिम जिले के जिला न्यायाधीश के माध्यम से सुविधा केंद्र को वह जमानत अर्जी को स्वीकार कर लें। साथ ही वकील से यह अंडरटेकिंग ले लिया जाए कि लॉकडाउन समाप्त होने के दो सप्ताह के भीतर वह विधिवत हस्ताक्षरित वकालतनामा दायर कर देगा। साथ ही निर्देश दिया है कि बिना किसी देरी के इस जमानत अर्जी को सुनवाई के लिए ड्यूटी सेशन जज के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।

कोर्ट ने माना है कि प्रमाण पत्र पर फिजिकली हस्ताक्षर करने के बजाय एक ऐसा ई-मेल पर्याप्त होगा, जिसमें वकील को नियुक्त करने और लॉकडाउन खत्म होने के दो सप्ताह के भीतर सभी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने का अंडरटेकिंग दिया गया हो। अदालत ने यह भी कहा है कि इस तरह के ई-मेल/प्राधिकरण पत्र में आधार नंबर और फोन या मोबाइल नंबर भी लिख दिया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस तरह के ईमेल को हस्ताक्षर करने पर जोर दिए बिना स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने डिजिटल हस्ताक्षर इस मेल के साथ भेजे या स्कैन की हुई प्रति भेज सके। 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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