"अपनी मर्ज़ी से जीवन जिएं", गुजरात हाईकोर्ट ने उस जोड़े को साथ रहने की अनुमति दी, जिसे तलाक के लिए मजबूर किया गया
गुजरात उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक अंतर्जातीय जोड़े को फिर से मिलाया, जिसे साल 2017 में शादी के दो सप्ताह के भीतर तलाक के लिए इसलिए मजबूर किया गया था, क्योंकि महिला के परिवार ने उनके रिश्ते को मंजूरी नहीं दी थी।
न्यायमूर्ति आरएम छाया और न्यायमूर्ति निरजार देसाई की पीठ पेशे से डॉक्टर हितेंद्रकुमार रणछोड़जी ठाकोर की बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas Corpus) याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने 26 वर्षीय नर्स रिंकुबेन को पेश करने की मांग की थी।
कोर्ट को बताया गया कि रिंकूबेन की शादी याचिकाकर्ता ठाकोर से 2017 में हुई थी और उसके बाद, जैसा कि उक्त रिश्ते को लड़की के परिवार के सदस्यों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था, उसने एक आपसी समझौते के माध्यम से तलाक ले लिया था।
हालांकि अदालत के समक्ष पेश होकर, लड़की ने याचिकाकर्ता के साथ फिर से रहने की इच्छा व्यक्त की।
लड़की की इच्छा को ध्यान में रखते हुए और यह ध्यान में रखते हुए कि वह बालिग है, अदालत ने उसे याचिकाकर्ता के साथ रहने और अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने की अनुमति दी।
उसके द्वारा व्यक्त की गई इच्छा के अनुसार, अदालत ने प्रतिवादी अधिकारियों को लड़की को मुक्त करने और उसे याचिकाकर्ता के साथ रहने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया।
पुलिस प्रशासन को रिंकुबेन की पर्याप्त सुरक्षा करने और उसे याचिकाकर्ता के आवासीय परिसर ग्राम तेरवाड़ा, पोस्ट: कांकरेज, जिला बनासकांठा छोड़ने के लिए निर्देशित किया गया।
इसके अलावा, न्यायालय ने निर्देश दिया कि पुलिस प्राधिकरण इस कार्यवाही में विद्वान अतिरिक्त लोक अभियोजक के माध्यम से न्यायालय के समक्ष उक्त प्रभाव की रिपोर्ट दाखिल करेगा।
कोर्ट ने कहा,
"रिंकुबेन को हमारे (और) याचिका के सामने व्यक्त की गई अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने की अनुमति है।"
हाल ही में, गुजरात उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि समुदाय के सदस्यों द्वारा एक महिला से शादी करने के अधिकार को छीनने और हिंसा करने और उत्पीड़न के कारण की निंदा की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा कि एक बालिग महिला को अपनी शादी और उसके भविष्य के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है।
इसी प्रकार मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक 18 वर्षीय लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की इच्छा रखने वाले एक व्यक्ति को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वह न केवल उसकी बुनियादी जरूरतों का बल्कि लड़की की सुख-सुविधाओं का भी ध्यान रखे ताकि वह गरिमापूर्ण जीवन जी पाए।
न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति आनंद पाठक की खंडपीठ उस व्यक्ति की हैबियस कार्पस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने आरोप लगाया था कि कार्पस/ लड़की ने दिसंबर, 2020 में अपने माता-पिता का घर छोड़ दिया था क्योंकि कार्पस के पिता उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते थे।
केस का शीर्षक - हितेंद्रकुमार रणछोड़जी ठाकोर बनाम गुजरात राज्य