परिसीमन की अवधि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम के तहत दिए गए आवेदन पर लागू होती है : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2020-02-26 03:45 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत लिखित बयान देने के प्रावधान पर परिसीमन क़ानून लागू होता है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने कहा कि सीपीसी और वाणिज्यिक अदालत अधिनियम, 2015 के तहत लिखित बयान पेश करने के बारे में जो प्रावधान है वह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत दायर किए जानेवाले लिखित बयानों पर भी लागू होंगे।

यह फ़ैसला मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत आवेदन की स्वीकार्यता पर सुनवाई के दौरान दिया गया।

याचिकाकर्ता का कहना था कि धारा 8 के तहत आवेदन पर ग़ौर किया जा सकता है क्योंकि यह याचिकाकर्ता द्वारा किसी बड़े बयान को दर्ज करने से पहले दायर किया गया।

दूसरी ओर, बचाव पक्ष का यह कहना था कि पक्षों के बीच में कोई भी विवाद नहीं है क्योंकि धारा 8 के तहत बयान दाख़िल करने की अवधि समाप्त हो चुकी है।

अदालत के समक्ष मुख्य प्रश्न इस बात के निर्णय का था कि सीपीसी और वाणिज्यिक अदालत अधिनियम, 2015 के तहत लिखित बयान पेश करने के बारे में जो प्रावधान है वह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत दायर किए जानेवाले लिखित बयानों पर भी लागू होगा या नहीं।

वरिष्ठ वक़ील दर्पण वाधवा, जो इस मामले में अमिकस क्यूरी भी हैं, ने कहा कि इ सीपीसी और वाणिज्यिक अदालत अधिनियम, 2015 के तहत लिखित बयान पेश करने के बारे में जो प्रावधान है वह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत दायर किए जानेवाले लिखित बयानों पर भी लागू होते हैं या नहीं इस बारे में अलग-लग विचार हैं।

उन्होंने बूज़ ऐलन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया जिसमें कहा गया कि इस तरह की कोई सीमा अवधि नहीं है पर आवेदन जितना पहले संभव हो दायर किया जाना चाहिए।

अदालत ने इस पर कहा कि जहाँ तक इस मामले का संबंध है, यह अंतर इसकी भाषा में है "बयान देने के बाद नहीं" और "बयान देने की तिथि के बाद नहीं।"

 अदालत ने कहा कि यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल लॉ के अनुच्छेद 8 का पालन असंशोधित धारा 8 में हुआ। हालाँकि, संशोधित धारा 8 में इसमें आंतर है।

असंशोधित धारा 8 में कहा गया है कि किसी भी आपत्ति को धारा 8 में ही समावेश कर दिया जाना चाहिए और यह भी तय है कि धारा 8 के तहत आवेदन लिखित बयान के साथ ही दायर किया जा सकता है।

इसलिए अदालत के समक्ष प्रश्न यह था कि संशोधित धारा 8 में 'का तारीख़' को जोड़ना का यह मतलब क्या यह है कि किसी मामले में लिखित बयान दायर करने की तिथि को धारा 8 के तहत दिए जानेवाले आवेदन की अवधि सीमा माना जाएगा।

अदालत ने इस पर कहा, "संशोधन सोचा समझा क़दम है और इसके द्वारा धारा 8 के तहत आवेदन देने के लिए अवधि की सीमा तय की गई है।"

 अदालत ने कहा,

"पूरी इच्छा यह है कि जो पक्ष मध्यस्थता के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं उसे ऐसा शीघ्रता से करना चाहिए और अटकना नहीं चाहिए।"

अदालत ने याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, "बचाव पक्ष अपनी इच्छानुसार कभी भी धारा 8 के तहत आवेदन दायर कर संशोधन की जो मंशा है उसको पराजित नहीं कर सकता।"

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