वकील ने सीनियर एडवोकेट को डेसिग्नेट करने के सिस्टम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

Update: 2023-03-14 09:11 GMT

एनएलसी (न्यायिक पारदर्शिता और सुधार के लिए राष्ट्रीय वकीलों का अभियान) के प्रेसिडेंट और एडवोकेट मैथ्यूज जे. नेदुमपारा ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 16 और 23 (5) के तहत वकीलों को "सीनियर एडवोकेट" के रूप में नामित (Designating) करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष यह मामला आज रखा गया। सीजेआई ने इसे 20 मार्च को सूचीबद्ध किया है।

नेदुमपारा का कहना है कि इस तरह के डेसिग्नेशन ने विशेष अधिकारों वाले वकीलों का एक वर्ग बनाया है और इसे केवल न्यायाधीशों और सीनियर एडवोकेट, राजनेताओं, मंत्रियों आदि के रिश्तेदारों के लिए आरक्षित के रूप में देखा गया है, जिसके परिणामस्वरूप लीगल इंड्स्ट्री का "एकाधिकार" हो गया है।

याचिका में कहा गया कि

" विशेष अधिकारों, विशेषाधिकारों और स्थिति वाले वकीलों ओं का एक विशेष वर्ग जो सामान्य वकीलों के लिए उपलब्ध नहीं है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के जनादेश का उल्लंघन है और अनुच्छेद 19 के तहत किसी भी पेशे का अभ्यास करने के अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।"

याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस सिस्टम से न्यायालयों में भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण सामान्य जनसाधारण के रूप में मेधावी लॉ प्रैक्टिशनर की एक बड़ी संख्या पीछे रह जाती है।

यह आगे कहा गया है कि विवादित प्रावधानों के परिणामस्वरूप वादियों के सामान्य वर्ग को न्याय से वंचित किया गया है जो एक सीनियर एडवोकेट को वहन नहीं कर सकते हैं या जो अपनी पसंद के एक सीनियर एडवोकेट को हायर करना चाहते हैं जिसमें उनका विश्वास है।

याचिका में आगे कहा गया है कि अपने संबंधित मुवक्किलों के मामलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील समान और न्यायपूर्ण व्यवहार के हकदार हैं।


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