वकील को मुवक्किल के साथ पत्राचार का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, यह विशेषाधिकार प्राप्त: बॉम्बे हाईकोर्ट ने वकील को दिया गवाह सम्मन रद्द किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, वकील और मुवक्किल के बीच पत्राचार विशेषाधिकार प्राप्त है और एक वकील को मुकदमे में इस प्रकार के पत्राचार की पुष्टि करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, भले ही यह पहले से ही किसी अन्य पक्ष द्वारा ट्रायल कोर्ट को बता दिया गया हो।
उक्त टिप्पणी के साथ कोर्ट ने वकील को दिया गवाह सम्मन रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा,
"इसलिए भले ही याचिकाकर्ता और उनके मुवक्किल श्री दारा भरूचा, जो अब मृतक हैं, के बीच 11 जनवरी, 2004 के पत्राचार को पहले से ही ट्रायल कोर्ट के सामने बताया जा चुका है... साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 में स्पष्ट रोक के मद्देनजर और उक्त पत्राचार के विशेषाधिकार प्राप्त होने के कारण, सिविल सूट नंबर 1209 ऑफ 2019 में साक्ष्य के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है और न ही स्वीकार्य है। इसलिए, याचिकाकर्ता को 11 जनवरी, 2004 के पत्राचार की पुष्टि करने या उसके हस्ताक्षरों की पहचान करने के उद्देश्य से ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।"
जस्टिस अभय आहूजा सीनियर एडवोकेट अनिल अंतुरकर की उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें एक गवाह के सम्मन को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे एक सिविल सूट में सिविल जज, सीनियर डिवीजन, पुणे के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गया था।
अदालत ने कहा कि जबकि धारा 126 वकील और मुवक्किल के बीच विशेषाधिकार के अपवाद प्रदान करती है, इस तथ्य में कोई सुझाव नहीं है कि वर्तमान मामला अपवादों के अंतर्गत आता है।
अदालत ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 129 के तहत यह एक मुवक्किल का विशेषाधिकार है कि उसे अपने और अपने कानूनी पेशेवर सलाहकार के बीच किसी भी निजी संचार का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जब तक कि वह खुद को गवाह के रूप में पेश न करे।
अदालत ने कहा कि न तो गवाह सम्मन और न ही एडवोकेट एसएन चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि पत्र गोपनीय है या मुवक्किल ने संबंधित सिविल सूट सहित किसी भी मामले में खुद को गवाह के रूप में पेश किया।
अदालत ने दोहराया कि साक्ष्य उस अदालत को प्राप्त होना चाहिए जिसके पास इसे प्रस्तुत किया गया है, जब तक कि अस्वीकृति का कोई कानूनी कारण न हो। अदालत ने कहा कि तथ्यों को साक्ष्य के रूप में तब तक प्राप्त नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वे प्रासंगिक और स्वीकार्य दोनों न हों। इसलिए, अधिनियम की धारा 126 या 129 के तहत विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज, हालांकि प्रासंगिक हैं, उन्हें साक्ष्य के रूप में पेश या प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
चूंकि याचिकाकर्ता के पास पत्राचार का खुलासा करने के लिए अपने मुवक्किल से कोई सहमति नहीं है, पत्राचार एक विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज है, और याचिकाकर्ता को इस तरह के विशेषाधिकार प्राप्त संचार का खुलासा करने से प्रतिबंधित किया गया है।
कोर्ट ने कहा,
इसलिए, याचिकाकर्ता को पत्राचार की पुष्टि करने या उस पर इस हस्ताक्षर की पहचान करने के लिए मुकदमे में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
केस नंबर: रिट पिटिशन नंबर 3359 ऑफ 2015
केस टाइटलः अनिल विष्णु अंतुरकर बनाम चंद्रकुमार पोपटलाल बालदोता और अन्य।