अचानक झगड़े और अनैच्छिक नशे की स्थिति में किसी की हत्या के मामले में आरोपी सदोष हत्या, जो हत्या के बराबर न हो, का दोषी: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अभियुक्त की दोषसिद्धि में बदलाव किया और उसके दोष को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध से बदलकर आईपीसी की धारा 304 पार्ट 2 के तहत सदोष हत्या, जो हत्या के बराबर न हो, का दोषी माना। कोर्ट ने माना कि अभियोजन के रिकॉर्ड के अनुसार अपराध नशे की (अनैच्छिक) हालत में त्वरित उन्माद में किया गया था।
जस्टिस ए वेंकटेश्वर रेड्डी और जस्टिस जी अनुपमा चक्रवर्ती की पीठ ने कहा,
"सबूत और तथ्य की स्थिति एकमात्र अप्रतिरोध्य निष्कर्ष की ओर ले जाती है कि ए1 को कोई ज्ञान नहीं था और उसका खुद पर कोई नियंत्रण नहीं था, क्योंकि वह अनैच्छिक नशे की स्थिति में था, गुस्से में उसने मिट्टी का तेल डाला, लैंप गिरा दिया, जिससे मृतक जल गया... यह केवल आईपीसी की धारा 304 भाग- II के तहत दंडनीय अपराध के लिए आवश्यक अवयवों को स्थापित करना है, न कि धारा 302 आईपीसी के तहत अपराध के अवाश्यक अवयवों को.....।"
मामला
सत्र न्यायाल के फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई थी, जिसमें अभियुक्त संख्या एक को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध का दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
ए1 मृतक का बेटा था और ए2 मृतक का भाई था। मृतक और ए2 के बीच जमीन का झगड़ा था। यह कारण था कि ए2 मृतक और उसके परिवार के साथ दुश्मनी रखता था। ए2 ने ए1 को शराब का आदी बनाकर उसे अपने पिता यानि मृतक को मारने के लिए उकसाया।
एक दिन, ए1 रात 11:00 बजे घर लौटा, तब मृतक ने उसे बैलों के लिए पानी और चारा नहीं लाने के लिए डांटा। जिस पर ए1 ने मृतक के साथ यह कहते हुए झगड़ा किया कि वह उसकी बेइज्जती कर रहा है, सभी के सामने उसे डांट रहा है। ए1 ने अपने पिता को पीटा, धक्का दिया, जिससे वह गिर पड़ा। इसके बाद उसने अपने पिता पर मिट्टी का तेल डाला और उसे आग लगा दी।
मृतक के बड़े बेटे, पीडब्ल्यू 1 ने मामला दर्ज कराया और निचली अदालत ने ए1 को हत्या के अपराध का दोषी पाया।
अपीलकर्ता के वकील/ए1 ने तर्क दिया कि मृतक के मृत्युपूर्व बयान (dying declaration) के अनुसार, आरोपी नशे की हालत में था। यदि मृत्युपूर्व बयान को सत्य माना जाता है तो ए1 ने मृतक को केवल जलाया था, उसका मृतक को मारने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध नहीं बनता है और अधिक से अधिक, आईपीसी की धारा 304 भाग II के तहत सदोष हत्या, जो हत्या के बराबर न हो, का अपराध बनता है।
विश्लेषण
कोर्ट ने मृत्युपूर्व दिए बयान का विश्लेषण करने के बाद कहा कि मृतक ने ए1 से पैसे मांगे थे, जिसके बाद ए1 जो नशे की हालत में था, उसने मृतक पर मिट्टी का तेल डाला था।अभियोजन पक्ष की दलील थी कि घटना के दिन ए2 ने ए1 को शराब पीने के लिए उकसाया था। ए1 शराब पीने के बाद घर लौटा था और इसके तुरंत बाद ही यह घटना हुई थी।
अभियोजन पक्ष का यह मामला नहीं था कि ए1 का स्वेच्छा से नशे में धुत होकर मृतक की हत्या करने का इरादा था। ए1 और मृतक के बीच दुश्मनी और हत्या के कारण पर पूर्वविचार का कोई सबूत भी नहीं था। ए1 अपने होश में नहीं था और उसका खुद पर नियंत्रण नहीं था। उसे इस बात का कोई ज्ञान नहीं था कि उसके कार्य से मृत्यु हो सकती है।
अपराध आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 4 के तहत आ सकता है, यानी सदोष हत्या, जो हत्या न हो अगर यह अचानक झगड़े के बाद जुनून में किया गया है। कोर्ट ने कालू राम बनाम राजस्थान राज्य (2000) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर कोर्ट ने आपराधिक अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया और ए1 की सजा को धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध से धारा 304 भाग II आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध में बदल दिया गया।
केस टाइटल: चियाला श्रीनिवास श्रीनु बनाम आंध्र प्रदेश पीपी के माध्यम से प्रतिनिधित्व