केरल हाईकोर्ट ने केरल पुलिस के प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ एफआईआर रद्द की
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केरल पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर को रद्द किया। दरअसल, केरल पुलिस क्राइम ब्रांच ने राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और अन्य राज्य को पदाधिकारियों के खिलाफ सोने की तस्करी के मामले में आरोपियों गलत बयान देने के लिए ज़बरदस्ती करने के आरोप में दो एफआईआर दर्ज की थी।
कोर्ट ने कहा कि मामले में एफआईआर के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 195 (1) (बी) के तहत बार को आकर्षित किया गया। सीआरपीसी की धारा 195 (1) (बी) के अनुसार अदालत के समक्ष विचाराधीन किसी मामले में साक्ष्य के निर्माण से संबंधित एक अपराध का संज्ञान उस न्यायालय द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर ही लिया जा सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि पुलिस बार को देखते हुए सीआरपीसी की धारा 195(1)(b) के तहत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 193 के तहत (झूठे साक्ष्य से संबंधित अपराध) के लिए एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है। कोर्ट ने यह भी देखा कि एफआईआर में उल्लिखित अन्य अपराध धारा 193 आईपीसी के साथ अविभाज्य रूप से परस्पर जुड़े हुए हैं।
कोर्ट ने कहा कि ईडी के अधिकारियों के खिलाफ झूठे सबूत गढ़ने की शिकायत के साथ पुलिस को उचित उपाय के लिए विशेष पीएमएलए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए, जिसने ईडी की अंतिम रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है।
कोर्ट ने सोने की तस्करी के मामले में आरोपी संदीप नायर खिलाफ दर्ज एफआईआर के संबंध में कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत उसका बयान दर्ज किया गया है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि विशेष अदालत सीआरपीसी की धारा 340 के तहत प्रक्रिया द्वारा क्राइम ब्रांच द्वारा प्रक्रिया एकत्र किए गए सबूतों पर गौर करने के लिए स्वतंत्र है।
बेंच ने आदेश में कहा कि,
"पीड़ित व्यक्ति को उचित उपाय के लिए विशेष न्यायालय से संपर्क करना चाहिए था। जहां तक वर्तमान मामले का सवाल है, विशेष अदालत ने आरोपी संदीप नायर की शिकायत पहले ही प्राप्त कर ली है और क्राइम ब्रांच के आवेदन पर जेल में पूछताछ करने की अनुमति दे दी है। इसके बाद संदीप नायर के 161 स्टेटमेंट को सील कवर में मेरे समक्ष रखा गया। मेरे विचार में पुलिस को जांच जारी रखने से रोकना चाहिए और इसके साथ ही न्याय के हित में विशेष न्यायाधीश को सीआरपीसी की धारा 340 (1) के तहत याचिका के रूप में मानते हुए क्राइम ब्रांच द्वारा एकत्रित सबूकों को देखने की आवश्यकता है। फिर यह तय करना है कि क्या जांच आगे की जानी चाहिए।"
न्यायमूर्ति वीजी अरुण की खंडपीठ ने केरल पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा पंजीकृत दो प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को चुनौती देने वाली ईडी कोच्चि जोन के उप निदेशक पी राधाकृष्णन द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर फैसला सुनाया।
कोर्ट ने पहले ही निर्देश दिया था कि ईडी के अधिकारियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी और वरिष्ठ लोक अभियोजक द्वारा एक लिखित अंडरटेकिंग दिया गया कि जब तक मामला तय नहीं हो जाता तब तक आधिकारिक गवाहों को नहीं बुलाया जाएगा।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि सोने की तस्करी के आरोपियों को मुख्यमंत्री सहित राज्य सरकार के कुछ उच्च-स्तरीय सदस्यों को फंसाने के लिए सोने की तस्करी के मामले की जांच कर रही ईडी द्वार जांच के दौरान कईयों के साथ ज़बरदस्ती किया गया। पहली प्राथमिकी सोने की तस्करी के आरोपी स्वप्न सुरेश द्वारा एक कथित ऑडियो क्लिप पर आधारित है जिसमें आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री को फंसाने के लिए उसके साथ जबरदस्ती की गई थी। दूसरी प्राथमिकी में एक अन्य सोने की तस्करी के मामले में आरोपी संदीप नायर द्वारा एक पत्र लिखकर मुख्यमंत्री को फंसाने का आरोप लगाया है। दिलचस्प बात यह है कि पहली प्राथमिकी की सुनवाई के दौरान दूसरी प्राथमिकी दर्ज की गई थी और ईडी के लिए पेश हुए वकील ने कहा कि दो प्राथमिकी के तथ्य समान हैं।
जब दूसरी एफआईआर की फाइलिंग को कोर्ट के संज्ञान में लाया गया तो कोर्ट ने आदेश दिया कि दूसरी एफआईआर में जांच को स्थगित किया जाना था।
न्यायमूर्ति अरुण ने इस अवसर पर पब्लिक प्रोसिक्यूटर से कहा कि, "अदालत में कुछ आदरभाव होना चाहिए। हम दूसरे मामले की सुनवाई के बीच में हैं।"
ईडी के अधिकारियों के खिलाफ पहला एफआईआर उकसाने , साजिश रचने, चोट पहुंचाने के इरादे से गलत दस्तावेज बनाने, झूठे सबूतों को गढ़ने और आरोपी स्वप्न सुरेश को धमकी देने के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 116, 120B, 167, 192, 193, 195A के तहत दर्ज किया गया था। दूसरा एफआईआऱ साजिश रचने का अपराध और झूठे सबूतों के निर्माण के लिए सजा (आईपीसी की धारा 120 बी और 193) के तहत दर्ज किया गया था।
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू और केएम नटराज ईडी की ओर से पेश हुए। वरिष्ठ अधिवक्ता हरिन पी रावल राज्य सरकार की ओर से पेश हुए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि इस मामले में सहकारी संघवाद शामिल है और कानून ने कभी भी किसी अन्य एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों की जांच के लिए किसी दूसरी जांच एजेंसी पर विचार नहीं किया। यदि एफआईआर की अनुमति है, तो इसका मतलब यह होगा कि कोई भी केंद्रीय एजेंसी किसी राज्य में निडर होकर और स्वतंत्र रूप से जांच नहीं कर सकती है।
ईडी की ओर से पेश हुए एएसजी राजू ने एक सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि दो एफआईआर केवल काउंटर केस में मान्य है और समान एफआईआर के केस में नहीं।
एएसजी राजू ने तर्क दिया कि,
"आरोपी संदीप पहले से उपस्थित था, इसलिए किसी खोज की जरूरत नहीं, कोई अलग संस्करण नहीं है, यह एक समान बात है, एक ही शराब अलग बोतल में है। मैं समझ सकता हूं कि संदीप क्यों पहली तस्वीर में नहीं था। पहली एफआईआर में स्वप्ना और संदीप के बयान हैं। इसलिए आप संदीप को पहली एफआईआर से बाहर नहीं करके यह नहीं कह सकते हैं कि दोनों एफआईआर अलग हैं। "
विस्तृत सुनवाई में देखा गया कि क्या क्राइम ब्रांच ने सहकारी संघवाद को प्रभावित किया है और इसके साथ ही इस मामले में भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के दायरे पर विस्तृत विचार-विमर्श किया है।
सुनवाई की टाइमलाइन
पहला दिन: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू द्वारा तर्क दिया गया।
दूसरा दिन: - सॉलिसिटर जनरल की प्रस्तुतियां।
- एएसजी राजू, एएसजी केएम नटराज, वरिष्ठ अधिवक्ता हरिन रावल की प्रस्तुतियां।
तीसरा दिन : दूसरी एफआईआर के खिलाफ ईडी की याचिका
चौथा दिन : वरिष्ठ अधिवक्ता हरिन रावल द्वारा राज्य की ओर की गईं प्रस्तुतियां
पांचवा दिन : वरिष्ठ अधिवक्ता हरिन रावल ने प्रस्तुतियां दीं; एसजी, एएसजी ने इसके खिलाफ तर्क दिए; न्यायालय ने निर्णय को सुरक्षित रखा।