केरल हाईकोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान नागरिकों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई पर स्वत: संज्ञान लिया, राज्य और केंद्र को नोटिस जारी

"COVID 19 महामारी से हम सभी प्रभावित हुए हैं, लेकिन इस दौरान हमारे कानून चुप नहीं रह सकते। उन्हें हमारे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए काम करना जारी रखना चाहिए।  यह हमारे न्यायशास्त्र में अच्छी तरह से स्थापित है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार, आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है। इस न्यायालय को नागरिकों पर संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के आरोप के रूप में आए संकट के लिए सतर्क होना चाहिए।"

Update: 2020-03-31 05:15 GMT

केरल हाईकोर्ट ने कथित रूप से देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ, पुलिस की बर्बरता की कथित घटनाओं का संज्ञान लिया है।

न्यायमूर्ति ए.के. जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति शाजी पी चैली ने गैर-कानूनी पुलिस ज्यादतियों के मामले में राज्य के अधिकारियों के साथ-साथ भारत संघ को भी नोटिस जारी किए हैं।

पीठ ने माना कि कोरोना वायरस के संचरण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखना जरूरी है और इस प्रकार राज्य ने भीड़ जमा न हो, इसे प्रतिबंधित करने के लिए पुलिस बलों की तैनाती की थी। हालांकि, अदालत ने कहा कि वह मीडिया रिपोर्टों को नजरअंदाज नहीं कर सकती, जिनमें ऐसे पुलिस कर्मियों द्वारा हिंसा के उपयोग का खुलासा किया गया है।

पीठ ने कहा,

"हालांकि हम प्रिंट और सोशल मीडिया में बहुत सारी सामग्री देख चुके हैं, जो हमें विश्वास दिलाती हैं कि स्वास्थ्य अधिकारियों और पुलिस कर्मियों द्वारा अनुकरणीय कार्य किया जा रहा है। हम कुछ लोगों की ओर आंख नहीं मूंद सकते हैं।

अन्य सामग्री जो पिछले एक सप्ताह में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में प्रकाशित हुई है, जो पुलिसकर्मियों द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान की गई ज्यादतियों को इंगित करती है।" 

लॉकडाउन के दौरान लोगों के खिलाफ पुलिस क्रूरता का कोई औचित्य नहीं

अदालत ने कहा कि संकट की इस स्थिति में भी, लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

पीठ ने कहा,

"COVID 19 महामारी से हम सभी प्रभावित हुए हैं, लेकिन इस दौरान हमारे कानून चुप नहीं रह सकते। उन्हें हमारे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए काम करना जारी रखना चाहिए। 

यह हमारे न्यायशास्त्र में अच्छी तरह से स्थापित है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार, आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है। इस न्यायालय को नागरिकों पर संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के आरोप के रूप में आए संकट के लिए सतर्क होना चाहिए।"

इस प्रकार यह सुनिश्चित करने के लिए मामले का संज्ञान लिया गया कि राज्य में लॉकडाउन का कार्यान्वयन न्यायपालिका की "चौकस आंखों" के तहत किया जाए।

"हमें अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में भी नागरिकता के बीच भय को दूर करना है। हम इस विचार के हैं कि केंद्र या राज्य के अधिकारियों द्वारा इस राज्य में लॉकडाउन का कार्यान्वयन, चौकस निगाहों के तहत होना चाहिए।"

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