केरल हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के 6 दिन का वेतन रोकने के केरल सरकार के आदेश पर लगाई रोक
केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को केरल सरकार के एक निर्देश पर दो महीने के लिए रोक लगा दी। केरल सरकार ने निर्देश में COVID-19 के कारण वित्तीय संकट का हवाला देते हुए अप्रैल 2020 से पांच महीने तक के लिए सरकारी कर्मचारियों की 6 दिनों की सैलरी का भुगतान स्थगित करने को कहा था।
23 अप्रैल को जारी आदेश में वित्त विभाग ने कहा था कि 20,000 रुपये महीने से अधिक के वेतन वाले सरकारी और सरकारी स्वायत्त निकायों के सभी कर्मचारियों के मासिक वेतन के छह दिनों का भुगतान अप्रैल 2020 से अगले 5 महीने तक स्थगित किया जाता है।
सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह को सुनने के बाद जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने कहा कि यह आदेश, प्रथम दृष्टया, कानून के किसी प्रावधान द्वारा समर्थित नहीं है।
"पूरे विश्व में, राज्य सरकार के प्रयासों की प्रशंसा की जा रही है। सरकार राज्य के कोने-कोने का ध्यान रख रही है। राज्य इस पर कई करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।
हालांकि राज्य का कामकाज जितना भी सरहानीय और प्रशंसनीय हो, जब न्यायालय को नागरिकों के निहित अधिकारों को प्रभावित करने वाले मामले को तय करना होगा तो न्यायालय कानूनी ढांचे की अनदेखी नहीं कर सकता है।"
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने कहा कि किए गए काम का वेतन पाना हर व्यक्ति का निहित अधिकार है। पीठ ने राज्य सरकार के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि सैलरी स्थगन की शक्ति उसे आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और महामारी रोग अधिनियम 1897 के जरिए प्राप्त हुई है।
कोर्ट ने कहा,
"अनुच्छेद 300A के दायरे में, प्रथम दृष्टया, संपत्ति के रूप में 'वेतन' भी शामिल होगा। केरल वित्तीय संहिता केवल वेतन के भुगतान की प्रक्रिया से संबंधित है। महाधिवक्ता का तर्क कि सरकार कार्यकारी आदेश के जरिए वेतन भुगतान स्थगित कर सकती है, स्वीकार्य नहीं है।
हालांकि, मैंने उक्त आदेश को कानून के ढांचे के भीतर लाने की कोशिश की, लेकिन मैं किसी भी कानून में इस तरह के आदेश के लिए कोई आधार नहीं पा सका। न तो महामारी रोग अधिनियम में, जिसे 2020 अध्यादेश के जरिए संशोधित किया गया है और न आपदा प्रबंधन अधिनियम में।...
...वेतन भुगतान को टालने का आधार वित्तीय कठिनाई नहीं है। प्रथम दृष्टया, मुझे लगता है कि वेतन भुगतान का स्थगन, उद्देश्य जो भी हो, संपत्ति से इनकार के बराबर है। ऐसी स्थति में, मैं 2 महीने की अवधि के लिए आदेश के संचालन पर रोक लगाता हूं।"
दलीलें
सीनियर एडवोकेट केपी सथीसन ने केरल वित्तीय संहिता के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारी प्रत्येक महीने के पहले तीन दिनों के भीतर वेतन भुगतान के हकदार हैं।
केरल स्टेट फाइनेंशियल एंटरप्राइजेज लिमिटेड के कर्मचारियों की ओर से पेश एडवोकेट एल्विन पीटर ने कहा कि यह निर्देश बिना किसी कानून के दिया गया है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 300 ए का उल्लंघन है। वेतन का भुगतान स्थगित करने का कार्यकारी आदेश अनुच्छेद 300 ए के भीतर 'कानून' नहीं माना जाएगा। अनुच्छेद 300 ए के अनुसार वेतन को संपत्ति माना जाएगा।
केएसईबी कर्मचारियों के एक समूह की ओर से पेश वकील एमएस किरणलाल ने कहा कि सरकारा का निर्देश अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन किया करता है।
एडवोकेट राकेश शर्मा ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मचारियों पर कोई विचार किए बिना आदेश जारी किया गया है, जो इस समय ओवरटाइम कर रहे हैं। महामारी को नियंत्रित करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।
उन्होंने 29 मार्च को गृह मंत्रालय की ओर से जारी निर्देश का भी हवाला दिया, जिसमें सभी नियोक्ताओं को निर्देश दिया है कि वे लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों के वेतन में कटौती किए बिना पूरा भुगतान करें।
जवाब में, केरल के एडवोकेट जनरल सीपी सुधाकर प्रसाद ने कहा कि सरकार का आदेश केवल वेतन भुगतान को स्थगित करना है, और किसी को वेतन से वंचित नहीं किया जा रहा है।
एडवोकेट जनरल ने कहा कि कानून का कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें कहा गया है कि किसी विशेष दिन वेतन का भुगतान होना चाहिए। किसी विशेष दिन पर वेतन का भुगतान करने की शर्त वित्तीय संहिता में दी गई है, जो कि एक सरकारी आदेश है। जिसे एक और सरकारी आदेश से बदला जा सकता है।
उन्होंने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और महामारी रोग अधिनियम 1897 और केरल महामारी रोग अध्यादेश 2020 के प्रावधानों का उल्लेख किया कि सरकार के पास आपदा प्रबंधन के लिए धन विनियोजन के व्यापक अधिकार हैं।
एडवोकेट जनरल ने आगे कहा कि राज्य सरकार COVID-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रही है। 50% से अधिक राजस्व प्राप्तियों का उपयोग वेतन भुगतान के लिए किया जाता है। COVID-19 ने राज्य सरकार के संसाधनों पर भारी बोझ डाला है। COVID-19 के संबंध में पिछले महीने 5000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
उन्होंने कहा, "सरकारी कर्मचारी इस समय सबसे भाग्यशाली हैं, जबकि कई अन्य वर्गों को लॉकडाउन का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।"
एडवोकेट जनरल ने आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा सरकारों के इसी प्रकार के आदेशों का हवाला दिया, जिन्हें अधिक कठोर बताया गया। उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के 50% वेतन काटने का आदेश दिया है।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसे उपाय नहीं किए गए तो राज्य गहरे वित्तीय संकट में फंस जाएगा।
सीनियर एडवोकेट केपी सथीसन कहा कि महीने के पहले तीन दिनों के भीतर वेतन प्राप्त करने का अधिकार केरल सर्विस रूल का हिस्सा है। यह सभी सरकारी कर्मचारियों का निहित अधिकार है। उन्होंने कहा कि वेतन प्राप्त करने का अधिकार सरकार की सनक पर अनिश्चित दिनों के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है।
एडवोकेट एल्विन पीटर ने आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम पर आधारित एडवोकेट जनरल की दलीलों पर पलटवार करते हुए कहा,
"इन कानूनों का उद्देश्य किसी व्यक्ति के वेतन से वंचित करना नहीं है। क्या उन अधिनियमों की व्याख्या यह कहने के लिए की जा सकती है कि सरकार बिना किसी उचित प्रक्रिया के निजी संपत्ति प्राप्त कर सकती है?"