भारत के खिलाफ पाकिस्तान की टी20 जीत का जश्न मनाने के आरोप में गिरफ्तार कश्मीरी छात्रों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दी
भारत के खिलाफ एक टी 20 क्रिकेट विश्व कप मैच में पाकिस्तान की जीत के बाद पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के आरोप में अक्टूबर में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए तीन कश्मीरी छात्रों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है।
जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ ने तीन छात्रों अर्शीद यूसुफ, इनायत अल्ताफ शेख और शौकत अहमद गनई को जमानत दे दी। ये सभी आगरा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र हैं और उन्हें 27 अक्टूबर को आगरा पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
मामला
तीनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 505(1)(बी) (जनता या जनता के किसी वर्ग के बीच भय या चेतावनी पैदा करने का इरादा या पैदा करने की आशंका) और मैच के बाद कथित तौर पर "देश के खिलाफ" व्हाट्सएप संदेश भेजने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के 66-एफ के तहत मामला दर्ज किया गया था।
उल्लेखनीय है कि आवेदक ने सीधे हाईाकोर्ट में याचिका दायर की थी और आगरा कोर्ट के समक्ष कोई आवेदन नहीं किया था, क्योंकि कथित तौर पर आगरा में लायर्स एसोसिएशन ने उनकी ओर से पेश होने से से इनकार कर दिया था।
जमानत याचिका के साथ, छात्रों ने मामले की सुनवाई आगरा से मथुरा स्थानांतरित करने की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया था।
उन्होंने अपने आवेदन में कहा था,
"... ऐसे आरोपी के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत कानूनी सहायता के साथ-साथ न्यायोचित और निष्पक्ष जांच पाने का अधिकार और आगरा जजशिप का पूरा बार आवेदकों की ओर से अदालत के समक्ष पेश होने के लिए तैयार नहीं है...इस प्रकार ऐसी परिस्थिति में आवेदकों के पास अपने मामले को स्थानांतरित करने के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं है।"
[नोट: स्थानांतरण याचिका फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है, हालांकि जमानत याचिका का निस्तारण कर दिया गया। आज उसे अनुमति दी गई।]
जमानत याचिका में बयान
जमानत आवेदनों में शुरुआत में कहा गया था कि एफआईआर में आवेदकों के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए और भारत के खिलाफ नारे लगाए, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि भारत के खिलाफ किन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।
ऐसी परिस्थितियों में अगर एफआईआर में लगाए गए आरोपों को सच माना जाता है, तो इसे स्वीकार किए बिना, आईपीसी की धारा 124 ए, 153-ए, और 505 (1) (बी), और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 एफ के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है।
आवेदकों के खिलाफ 124ए आईपीसी (देशद्रोह) प्रावधान लागू करने के संबंध में, याचिका में कहा गया है-
"... भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के तहत राजद्रोह के अपराध को स्थापित करने के लिए निर्णायक कुछ ऐसे कार्य हैं जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ घृणा या अवमानना आदि करते हैं। इस मामले में, एक भी सुझाव नहीं है कि आवेदकों ने भारत सरकार या राज्य की किसी अन्य सरकार के खिलाफ कुछ भी किया और एफआईआर में आवेदक के खिलाफ लगाए आरोप में इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि आवेदकों ने सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई की है।
इसके अलावा याचिका में यह भी कहा गया कि जिला बार एसोसिएशन आगरा के अधिवक्ताओं ने एक बैठक बुलाई और निर्णय लिया कि आगरा जजशिप का कोई भी वकील आरोपी व्यक्तियों के मामले में पेश नहीं होगा और न ही उन्हें कोई कानूनी सहायता देगा।
"जब जिला बार एसोसिएशन, आगरा के अधिवक्ता आवेदकों के मामले को लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, तो सवाल उठता है कि कैसे और किन परिस्थितियों में आरोपी/आवेदक अपना मुकदमा लड़ेंगे, इसका एकमात्र उत्तर मौजूदा मामले मथुरा स्थानांतरित करना है।"
याचिका में यह प्रार्थना की गई है कि जमानत याचिका पर सीधे हाईकोर्ट द्वारा सुनवाई की जाए। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि उन्हें लगातार जान से मारने की धमकी दी जा रही है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रमेश चंद यादव व संतोष कुमार सिंह पेश हुए
केस शीर्षक - इनायत अल्ताफ शेख और 3 अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 147