कर्नाटक हाईकोर्ट ने सिविल जज की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को बरकरार रखा, उन पर ऐसी कार्यवाही के आदेश पत्रक तैयार करने का आरोप, जो हुई भी नहीं
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक पूर्व सिविल जज, जूनियर डिवीजन द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा 22 मार्च, 2021 को सेवा से अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश देने के आदेश पर सवाल उठाया गया है।
जसिटस पी एस दिनेश कुमार की एकल पीठ ने शिवानंद लक्ष्मण अंची द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा,
"यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि अदालती कार्यवाही पवित्र कार्य हैं। बेंच क्लर्क को पिछले दिन के आदेश पत्र तैयार करने और अगले दिन उन पर हस्ताक्षर करने का निर्देश देकर, याचिकाकर्ता ने अपने कर्तव्य की गंभीर अवहेलना की है।"
यह जोड़ा,
"आदेश पत्र में कार्यवाही दर्ज करना, जो वास्तव में नहीं हुई है, पवित्र न्यायालय की कार्यवाही के लिए अभिशाप है और इस तरह के आचरण को न्यायिक अधिकारी/न्यायाधीश के मामले में स्वीकार्य नहीं माना जा सकता है। यदि इसकी अनुमति है, तो कार्यवाही के लिए कोई पवित्रता नहीं होगी इसलिए जरूरी है कि सख्त कार्रवाई की जाए।"
मामले का विवरण
याचिकाकर्ता को अप्रैल 2014 में सिविल जज, जूनियर डिवीजन के रूप में नियुक्त किया गया था। 2019 में उन्हें अतिरिक्त सिविल जज, जेएमएफसी, विराजपेट के रूप में तैनात किया गया था और 22 जून, 2019 को एक अधिसूचना द्वारा, उन्हें सिविल जज और जेएमएफसी पोन्नमपेट का प्रभारी बनाया गया था। यह निर्देश दिया गया कि सप्ताह में तीन दिन, प्रत्येक सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उक्त अदालत का भ्रमण वह करें।
27 जून, 2019 को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, कोडागु, मदिकेरी ने औचक निरीक्षण किया और देखा कि याचिकाकर्ता 27 जून को पिछले दिन के आदेश पत्र पर हस्ताक्षर कर रहा था और तारीख 26 जून रख रहा था।
प्रधान जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट के आधार पर आरोप पत्र जारी किए गए। प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, कोडागु, मदिकेरी द्वारा एक विभागीय जांच की गई और उन्होंने आरोप को साबित पाया। दूसरा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और याचिकाकर्ता ने अपना जवाब प्रस्तुत किया। याचिकाकर्ता को 22 मार्च, 2021 के आदेश के तहत अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया गया था।
याचिकाकर्ता की दलीलें
एडवोकेट श्रीधर प्रभु ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता 26 जून, 2019 को पोन्नमपेट गया था। भारी बारिश और अपने पिता की अस्वस्थता के कारण वह उसी दिन विराजपेट नहीं पहुंच सका और इसलिए, वह 26 जून को अदालत की कार्यवाही का संचालन नहीं कर सका। यद्यपि वह 27 जून को आदेश पत्रक पर हस्ताक्षर कर रहे थे, आदेश पत्र में जो दर्ज किया गया था वह मामले का पिछला चरण था।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को अपने पिता की स्वास्थ्य स्थिति के कारण 26 जून की दोपहर में आधे दिन के लिए अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर था। इसलिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा घोर अनुपातहीन है।
परिणाम
पीठ ने विभाग द्वारा की गई जांच में दर्ज साक्ष्यों को देखा और कहा, "जांच रिपोर्ट में यह दर्ज है कि याचिकाकर्ता ने न तो गवाहों से जिरह की और न ही अपनी ओर से कोई सबूत पेश किया। रिकॉर्ड पर साक्ष्य की सराहना के बाद जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को साबित पाया। इस अदालत में पहले भी श्री श्रीधर प्रभु ने मुख्य रूप से आनुपातिकता के पहलू पर तर्क दिया है।"
जिसके बाद यह राय दी गई,
"उच्च स्तर की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा बनाए रखना जजों की पहचान है। वादी अत्यंत विश्वास के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं। आदेश पत्र में कार्यवाही दर्ज करना, जो वास्तव में नहीं हुई है, पवित्र न्यायालय की कार्यवाही के लिए अभिशाप है और इस तरह के आचरण को न्यायिक अधिकारी/न्यायाधीश के मामले में स्वीकार नहीं किया जा सकती है। यदि इसकी अनुमति दी जाती है तो कार्यवाही के लिए कोई पवित्रता नहीं होगी। इसलिए यह आवश्यक है कि सख्त कार्रवाई की जाए।"
तदनुसार यह कहा गया, "याचिकाकर्ता ने गवाहों से जिरह करने का विकल्प नहीं चुना है। उन्होंने जांच में कोई सबूत भी नहीं दिया है। उपरोक्त को देखते हुए, याचिकाकर्ता के लिए लगाए गए दंड की मात्रा में कोई अपवाद नहीं लिया जा सकता है।"
केस टाइटल: शिवानंद लक्ष्मण अंची बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: 2021 की रिट याचिका संख्या 16983
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 236