कर्नाटक हाईकोर्ट ने कस्टडी ऑर्डर का पालन करने में विफल रहने वाली डॉक्टर मां के खिलाफ अवमानना का मामला बंद किया, सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक डॉक्टर के खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही को तब रद्द कर दिया जब उसने बिना शर्त माफी मांगी और बेंगलुरु शहर के किसी भी सरकारी अस्पताल में छह महीने के लिए सामुदायिक सेवाओं में हर कैलेंडर महीने के एक दिन खुद को उपलब्ध करवाने की पेशकश की।
मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने महिला द्वारा दिए गए बयान को स्वीकार कर लिया और कहा,
“ हम प्रतिवादी/अभियुक्त द्वारा इस न्यायालय को दिए गए आश्वासन के रूप में दी गई बिना शर्त माफी को स्वीकार करते हैं। हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि उक्त आश्वासन/अंडरटैकिंग के अनुसार यदि प्रतिवादी/अभियुक्त को सरकारी अस्पताल से संपर्क करने पर आज से छह महीने की अवधि के लिए, महीने में एक पूरा दिन सामुदायिक सेवाएं प्रदान करने की अनुमति दी जाएगी।”
अदालत ने अगस्त में स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी, जब डॉक्टर अदालत के उस आदेश का पालन करने में विफल रही थी , जिसमें उसे नाबालिग बेटी की कस्टडी अपने पति को सौंपने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने पहले नियोक्ता को बेटी की कस्टडी सौंपे जाने तक उसका वेतन रोकने का निर्देश दिया था।
अदालत ने 14 अगस्त को महिला को नोटिस जारी किया था जिसके जवाब में महिला ने एक हलफनामा दायर किया जिसमें कहा गया कि वह बिना शर्त माफी मांग रही है और आश्वासन दे रही है कि भविष्य में वह इस तरह से कार्य करेगी कि उसके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई की नौबत नहीं आएगी।
इसे स्वीकार करते हुए अदालत ने कार्यवाही यह कहते हुए रद्द कर दी और कहा “ तदनुसार, अवमानना की इस शिकायत का निपटारा किया जाता है। ”
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