कर्नाटक हाईकोर्ट के जज ने एसीबी चीफ के खिलाफ आदेश पारित करने पर सिटिंग जज से मिली ट्रांसफर की धमकी को लिखित आदेश में दर्ज किया
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एचपी संदेश, जिन्होंने पिछले हफ्ते खुलासा किया था कि उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) प्रमुख सीमांत कुमार सिंह एडीजीपी के खिलाफ आदेश पारित करने के लिए स्थानांतरण की अप्रत्यक्ष धमकी मिली थी, उन्होंने सोमवार को एक लिखित आदेश में धमकी दर्ज की।
जस्टिस संदेश ने अपने आदेश में दर्ज किया कि एक जुलाई को पूर्व चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी को विदाई देने के लिए हाईकोर्ट की ओर से आयोजित विदाई रात्रिभोज समारोह के दरमियान उन्हें एक मौजूदा जज ने ट्रांसफर की अप्रत्यक्ष धमकी दी थी।
चार जुलाई को जज ने एक सुनवाई के दरमियान मौखिक रूप से खुलासा किया था कि एक मौजूदा जज के माध्यम से उन्हें ट्रांसफर की अप्रत्यक्ष धमकी दी गई थी, यदि वह कथित रूप से भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा की गई जांच, जिसमें उपायुक्त, बेंगलुरु (शहरी) शामिल हैं, उसकी प्रगति की निगरानी करना जारी रखते हैं।
जज के इस खुलासे के बाद काफी बवाल हुआ। आज जज ने खुलासे को अपने लिखित आदेश में शामिल किया।
आज जब मामले की सुनवाई के लिए पेश किया गया तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के वकील अशोक हरनहल्ली ने कहा कि एसीबी के खिलाफ दिए गए निर्देशों और टिप्पणियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई है और मामला कल सूचीबद्ध है। इसलिए एडवोकेट ने स्थगन की मांग की।
आज के आदेश में (जैसा कि लाइव-स्ट्रीम फीड से प्राप्त हुआ), जस्टिस संदेश ने कहा,
"जब इस मामले की सुनवाई 29-06-2022 को हुई और इस अदालत ने असली आरोपी को पकड़ने में एसीबी की ओर से निष्क्रियता पाई तो एक अवलोकन किया। वास्तविक दोषियों को लाने में एसीबी की ओर से निष्क्रियता के संबंध में और मामले को 4-7-2022 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।"
"इस बीच, सेवानिवृत्ति के कारण, इस अदालत द्वारा 01-07-2022 को माननीय चीफ जस्टिस को विदाई देने के लिए एक रात्रिभोज की व्यवस्था की गई थी। मेरे बगल में बैठे जज ने बताना शुरु किया..."उसे दिल्ली से एक कॉल आया था (नाम का खुलासा नहीं किया)। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति ने दिल्ली से फोन किया, उसने मेरे बारे में पूछताछ की और तुरंत मैंने जवाब दिया कि मैं किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हूं। जज यहीं नहीं रुके और कहा कि एडीजीपी उत्तर भारत से हैं और ताकतवर हैं. उन्होंने….(रिकॉर्डिंग स्पष्ट नहीं)…" के ट्रांसफर का एक उदाहरण भी दिया। [इस बिंदु पर लाइव-स्ट्रीम बाधित हो गया।]
आज सुनवाई के दौरान जस्टिस संदेश ने मौखिक रूप से कहा कि यह न्याय में हस्तक्षेप और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है।
उन्होंने यह भी कहा कि "मैंने पहले ही उस मौजूदा जज का नाम बता दिया है, जिसे यह सूचित किया जाना चाहिए कि मुझे खतरा है।"
आदेश में जज ने यह भी कहा कि राज्य को "दागी अधिकारियों" को "मामलों के शीर्ष" पर तैनात नहीं करना चाहिए।
जस्टिस संदेश ने कहा,
"मुख्य सचिव को निर्देश दिया जाता है कि अधिकारियों की नियुक्ति से पहले वह भी भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए स्थापित संस्था में जनहित का ध्यान रखें और भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए स्थापित संस्था के शीर्ष पर किसी भी दागी अधिकारी को तैनात न करें।"
उन्होंने कहा, अधिकारी की विश्वसनीयता होनी चाहिए और उसे बाहरी या आंतरिक प्रभाव के आधार पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। यदि अधिकारी या उसके परिवार के सदस्य एसीबी या लोकायुक्त द्वारा किसी जांच का सामना कर रहे हैं, तो ऐसे अधिकारी पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 13 जुलाई को होगी।
अदालत ने यह आदेश पीएस महेश नामक एक आरोपी, जो एक डिप्टी तहसीलदार है, उसकी ओर से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया था, जिसे कथित तौर पर भूमि विवाद मामले में डीसी कार्यालय से अनुकूल आदेश देने के संबंध में 5 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
सॉलिसिटर जनरल द्वारा मौजूदा मामले में उल्लेख किए जाने के बाद, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने सोमवार को जस्टिस संदेश के आदेशों और टिप्पणियों के खिलाफ एसीबी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को कल सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
केस शीर्षक: महेश पी एस बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: CRL.P 4909/2022