कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य को दिया निर्देश, मंगलौर में पुलिस फायरिंग के पीड़ितों द्वारा दायर शिकायतों पर की गई कार्रवाई के बारे में करें सूचित

Update: 2020-02-06 05:00 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह अगली सुनवाई पर बताए कि 19 दिसंबर, 2019 को मारे गए दोनों व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों और इस घटना के पीड़ितों द्वारा दर्ज की गई शिकायतों पर क्या कार्रवाई की गई  है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में निकाली गई रैली में पुलिस गोलीबारी की घटना हुई थी। 

मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की खंडपीठ ने सरकार को यह पता लगाने का भी निर्देश दिया है कि इस घटना के किसी व्यक्ति द्वारा कोई निजी वीडियो फुटेज रिकॉर्ड किए गए थे या नहीं। यदि ऐसी वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध है तो उसे संरक्षित किया जाना चाहिए। पीठ ने 102 वर्षीय, स्वतंत्रता सेनानी, एच.एस. डोरस्वामी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया। 

वरिष्ठ अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने याचिकाकर्ताओं के लिए तर्क दिया कि ''पीड़ितों द्वारा शिकायत के बाद भी एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया है।''

महाधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी ने अदालत को सूचित किया कि जांच स्थानीय पुलिस से सीआईडी को हस्तांतरित कर दी गई है। सभी शिकायतों को समर्थित कर दिया गया है और नई जांच एजेंसी को सौंप दिया गया है। 

महाधिवक्ता ने अदालत को यह भी बताया कि सरकार ने इस घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं जो तीन महीने के भीतर पूरी हो जाएगी। इसके शीघ्र निस्तारण करने का अनुरोध भी जिलाधिकारी को किया गया है।

यह भी कहा गया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य मानवाधिकार आयोग को इस मामले पर गौर करने के लिए कहा है, इस प्रकार अदालत को  राज्य मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट मिल सकती है। मजिस्ट्रेट जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट भी सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी गई है। 

पीठ ने कहा कि राज्य मानवाधिकार आयोग के पास राज्य सरकार को कार्रवाई या मुआवजे की सिफारिश करने की शक्तियां हैं। इस प्रकार एक रिट याचिका पर विचार किया जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि इस याचिका में एसएचआरसी और मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट पर विचार किया जा सकता है। 

याचिका के अनुसार, ''पुलिस ने मंगलौर शहर में घटना के संबंध में लगभग 32 एफआईआर दर्ज की हैं। कुछ एफआईआर दर्ज की गई हैं जो अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ है, जिनको ''अज्ञात मुस्लिम युवा''के रूप में संदर्भित किया गया हैं।''

शिकायतों को देखने के बाद पाया गया है कि पुलिस फायरिंग या लाठीचार्ज के कारण व्यक्तियों को लगी चोट के लिए पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है। हालांकि,  प्रदर्शनकारियों और दर्शकों पर अंधाधुंध प्रहार किया गया था। 

यह भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भी ऐसी ही हिंसा हुई है। उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा के मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पत्र को जनहित याचिका में बदल दिया है और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।

इसके अलावा, प्रतिवादी की कार्रवाई अवैध, मनमानी, दुर्भावनापूर्ण और गलत है, जो कि भारत के संविधान के भाग तीन(  III)  के प्रावधानों के तहत गारंटीकृत मूलभूत अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। 

संबंधित सुनवाई में पीठ ने आई.के.मोहम्मद इकबाल एलिमले और बी.उमेर की याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि वे समर्थक मुकदमेबाज नहीं थे और जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। कारण यह था कि सरकार ने अदालत को सूचित किया था कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जा रहा है। 

याचिकाकाओं के साथ उनके द्वारा दायर हलफनामे ने मामले के विवरण का खुलासा नहीं किया और न ही यह प्रतिबिंबित किया कि वे उन संगठनों से जुड़े थे, जो जनता के हितों की रक्षा के लिए काम कर रहे थे। 

इस मामले में सुनवाई के लिए अब कोर्ट ने 24 फरवरी की तारीख तय की है। 

याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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