'यह विशेषज्ञों की समिति नहीं है': ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को बचाने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को समिति को पुनर्गठित करने का आदेश दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि कर्नाटक राज्य सरकार को राज्य में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, (GIB) के विकास और उत्थान के लिए गठित सलाहकार समिति का पुनर्गठन करना होगा।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम की खंडपीठ ने 15 जनवरी को आयोजित बैठक से नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि,
"बैठक से पता चलता है कि समिति ने सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में दिए गए सुझावों के कार्यान्वयन के लिए कोई कदम उठाने की सहमत नहीं जताई है। बैठक पता चलता है कि समिति ने इस मुद्दे पर ध्यान देने की जगह दूसरे विभिन्न मुद्दों पर ध्यान देना दिया।"
कोर्ट ने कहा कि,
"समिति का पुनर्गठन किया जाए। यह समिति कुछ भी नहीं कर रही है।"
आगे कहा गया है कि,
"यह विशेषज्ञों की समिति नहीं है। विशेषज्ञों की समिति को संरक्षण के कदमों के बारे में ठोस सुझाव देने होंगे।"
बैठक में हुई चर्चा का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि,
"समय को देखने पर पता चलता है कि वे शायद ही क्षेत्र में विशेषज्ञों के रूप में काम कर रहे हैं। जिसे यह कार्य सौंपा गया है वह किसी अन्य समिति का है जो विशेषज्ञ नहीं हैं।"
कोर्ट ने संस्थान (SACON) द्वारा प्रस्तुत प्रगति रिपोर्ट का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि,
"इस परिदृश्य में GIB का कोई वैज्ञानिक जनसंख्या मूल्यांकन और गहन निगरानी नहीं की गई है। GIB पर सभी ज्ञात जानकारी अवसरवादी दृष्टि रिकॉर्ड पर आधारित है।"
इसमें आगे कहा गया है कि,
"अध्ययन क्षेत्रों में जीआईबी आबादी की सतत निगरानी जनसंख्या, संरचना, आवास के उपयोग और आबादी के लिए खतरे का आकलन करने के लिए महत्वपूर्ण है।"
इसमें यह भी कहा गया है कि,
"आप एक प्रतिष्ठित संस्थान की एक समिति की नियुक्ति करते हैं, लेकिन संस्थान के सुझावों को लागू करने के बजाय सरकार द्वारा नियुक्त यह समिति कुछ और कर रही है।"
17 जून, 2020 के आदेश द्वारा राज्य सरकार ने सलाहकार समिति का गठन किया है। समिति में उप-वन संरक्षक बल्लारी इसके अध्यक्ष के रूप में शामिल हैं। समिति के सदस्य के रूप में वीरशैव कॉलेज के प्राणि विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. मनोहर, एमबीबीएस/एमएस सर्जन डॉ अरूण, तहसिलदार, सरगुप्पा तालुक, रेंज वन अधिकारी, बल्लारी रेंज और समद कोट्टुर, व्याख्याता, सरकारी पीयू कॉलेज इत्यादि शामिल हैं।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने समिति की विशेषज्ञता पर संदेह किया था।
पीठ ने अपने आदेश में राज्य सरकार को शपथ पर स्पष्ट रुख बनाने का निर्देश दिया कि क्या राज्य सरकार SACON द्वारा की गई सिफारिश को लागू करना चाहती है। अब मामले की अगली सुनवाई 2 फरवरी को होगी।
यह निर्देश संवादी के एडवोकेट संतोष मार्टिन और अन्य द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया था। याचिका में उत्तरदाताओं के गैरकानूनी कार्यों के बारे में बताया गया था। इसमें बताया गया था कि नागरिक कार्य जैसे वॉच टॉवरों और अवैध शिकार विरोधी शिविरों का निर्माण, प्रजातियों के आवास के क्षेत्र के भीतर प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर धकेल दिया गया है जो कि वाइल्ड लाइफ (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के भाग III का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डालता था कि मौजूदा निर्माणों को सर्दियों में नवीनतम रूप से हटा दिया जाएगा ताकि जीआईबी वसंत में फिर से प्रजनन कर सकें। यदि वे दूसरे वर्ष भी कर्नाटक राज्य में प्रजनन करने से वंचित रह जाते हैं, तो कर्नाटक से उनका विलुप्त होना निश्चित है। कर्नाटक में जीआईबी की 8 से भी कम जीवित प्रजातियां बची हैं।