जस्टिस चंद्रचूड़ ने किया दिल्ली की नई वर्चुअल कोर्ट प्रणाली का उद्घाटन, कहा-न्यायपालिका को ई-गवर्नेंस अपनाना होगा
दिल्ली हाईकोर्ट की सूचना प्रौद्योगिकी समिति ने बुधवार को सीसीटीवी कैमरों के जरिए कैप्चर किए गए ट्रैफिक चालान की सुनवाई के लिए नई वर्चुअल कोर्ट प्रणाली लांच की। इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल, जस्टिस राजीव शकधर, जस्टिस संजीव सचदेवा, जस्टिस प्रथिबा एम सिंह और जस्टिस नवीन चावला मौजूद थे।
आयोजन की शुरुआत जस्टिस राजीव शकधर के भाषण से हुई, जो दिल्ली हाईकोर्ट की आईटी समिति के अध्यक्ष भी हैं। जस्टिस शकधर ने अपने भाषण में वर्चुअल कोर्ट के कामकाज पर चर्चा की, जो दिल्ली में 26 जुलाई, 2019 से काम कर रहा है।
मौजूदा दिल्ली वर्चुअल कोर्ट में ई-चालान के मामलों की सुनवाई होती है। इस प्रणाली के कारण, रोजाना 3000 से अधिक अपराधियों को आदालत में लाने की जरूरत नहीं पड़ती।
जस्टिस शकधर ने अपने भाषण में कहा,
'वर्चुंअल कोर्ट में 7,32,061 से अधिक मामलों का निस्तारण किया जा चुका है, जिसमें अपराधियों ने जुर्माना अदा किया है। अब तक 89,54,66,712 रुपए जुर्माने की राशि वसूली जा चुकी है। सभी मामलों को सिंगल जज संभाल रहा है। दिल्ली में लगभग 20 जज, जो पहले ट्रैफिक चालान के मामलों के निस्तारण में व्यस्त थे, अब अन्य मामलों को देखने के लिए स्वतंत्र हैं।'
जस्टिस प्रथिबा एम सिंह ने भी वर्चुअल कोर्ट प्रणाली के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह कोर्ट और दिल्ली पुलिस के का एक सहकारी प्रयास है। दिल्ली पुलिस के आयुक्त डीएन श्रीवास्तव ने कार्यक्रम में वर्चुअल अदालतों के कामकाज के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वर्चुअल कोर्ट प्रणाली के दूसरे चरण में विनियमन की पारदर्शिता और अनुशासन बढ़ेगा।
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने कहा कि, '...जनता को फायदा होगा क्योंकि उन्हें अब अदालत में आने की आवश्यकता नहीं होगी। आजकल, किसी के पास अदालत में आने का समय नहीं है।'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने भाषण में कहा कि मौजूदा अभूतपूर्व महामारी ने अदालतों को प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की ओर बढ़ाया है, और अब, हम इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि इस तकनीक को कैसे अपनाया जाना चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वर्चुअल कोर्ट 2.0 को लॉन्च करने के 10 मिनट के भीतर ही 95 हजार रुपये जमा हो चुके हैं। यह वर्चुअल अदालतों के कामकाज की सहज प्रकृति को दर्शाता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वर्चुअल कोर्ट की शुरुआत के बाद पुलिस अपने नियामक कर्तव्यों पर बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित कर सकती है। उन्होंने कहा, दिल्ली के उदाहरण के बाद तमिलनाडु, हरियाणा और केरल जैसे राज्य भी वर्चुअल अदालतों को अपनाने की प्रक्रिया में है।
न्यायालयों में ई-गवर्नेंस के को बढ़ाने के लिए, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 से संबंधित विवादों के निस्तारण के लिए भी प्रौद्योगिकी को अपनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चूंकि प्रत्येक मुकदमेबाज या वकील तकनीक का अच्छा जानकारी नहीं हैं, इसलिए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ई-फाइलिंग की व्यवस्था को समझाने के लिए एक वेबिनार आयोजित करेगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालयों में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग के लिए नियमों को फ्रेम करना महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट एक देशव्यापी मॉडल बनाने की दिशा में काम कर रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें दीं-
-वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग तक आसानी से पहुंच होनी चाहिए। जनता और मीडिया दोनों के जानने के अधिकार को ध्यान में रखना चाहिए।
-देश भर में ई-पुस्तकालयों की इंटरलिंकिंग होनी चाहिए।
-न्यायिक डेटा को रिसर्च के लिए और सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए खोला जा सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने भाषण के अंत में कहा कि सब कुछ बार और बेंच के सहयोग पर निर्भर करता है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा के धन्यवाद भाषण के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।