'न्यायिक अनुशासनहीनता': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्देश का उल्लंघन करने पर मजिस्ट्रेट के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab And Haryana High Court) की एकल पीठ ने एक मामले में हाईकोर्ट के निर्देश का उल्लंघन करने पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है।
कोर्ट ने देखा कि मजिस्ट्रेट की कार्रवाई न केवल कानून के मौलिक सिद्धांतों की समझ की कमी को दर्शाती है, बल्कि न्यायिक अनुशासनहीनता को भी दर्शाती है।
न्यायमूर्ति मनोज बजाज ने विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
न्यायमूर्ति बजाज ने आदेश में कहा,
"इस न्यायालय को यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, यमुना नगर ने तर्कहीन कारण बताते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है, जो न केवल आपराधिक न्यायशास्त्र और कानून के मौलिक सिद्धांतों को समझने की उनकी कमी को दर्शाता है, बल्कि उनकी ओर से न्यायिक अनुशासनहीनता को भी दर्शाता है जो गंभीर कदाचार के बराबर है और उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए।"
विवाद सीजेएम द्वारा एक मामले में जमानत की शर्त के रूप में एक आरोपी द्वारा जमा किए गए 1,10,000 रुपये की राशि वापस करने से इनकार करने से संबंधित है, जबकि उच्च न्यायालय द्वारा उस आशय का निर्देश दिया गया था।
जब मामले की सुनवाई बरी होने के साथ समाप्त हो गई थी, तो आरोपी ने जमा राशि वापस करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था।
हाईकोर्ट ने सीजेएम को इसे वापस करने का निर्देश दिया। हालांकि, सीजेएम ने शिकायतकर्ता द्वारा बरी किए जाने के खिलाफ दायर अपील का हवाला देते हुए रिफंड की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
सीजेएम के रिफंड की अनुमति देने से इनकार करने को चुनौती देते हुए, आरोपी ने फिर से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इस आवेदन को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति बजाज ने सीजेएम के खिलाफ टिप्पणी की।
कोर्ट ने एचसी के निर्देश का पालन करने से इनकार करने के लिए सीजेएम से स्पष्टीकरण मांगा।
सीजेएम ने समझाया कि उन्होंने गलती से इस न्यायालय द्वारा निर्देशित राशि वापस करने से इनकार कर दिया है और इस न्यायालय को हुई असुविधा के लिए खेद व्यक्त किया।
न्यायमूर्ति बजाज ने कहा,
"आक्षेपित आदेश में निहित अभिव्यक्ति और तर्क यह नहीं दिखाते हैं कि इस न्यायालय द्वारा निर्देश की अवज्ञा गलत ह, जैसा कि स्पष्टीकरण में दावा किया गया है, इसलिए यह स्वीकार करने योग्य नहीं है।"
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