केवल स्थगन अनुरोध की अनुमति देने के कारण जज की ईमानदारी पर संदेह नहीं किया जा सकता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने निचली अदालत के जज को कदाचार का दोषी ठहराने के आदेश को रद्द किया

Update: 2022-06-29 08:26 GMT

Madhya Pradesh High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत के एक पूर्व जज के खिलाफ अनुशासनात्मक प्राधिकारी के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्हें कदाचार का दोषी ठहराया गया था। साथ ही अदालत ने उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश भी रद्द कर दिया। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने उन्हें अन्य बातों के साथ "भ्रष्ट या परोक्ष कारणों" से जमानत देने और "बेहद कमजोर आधार" पर स्थगन देने का दोषी ठहराया था।

याचिकाकर्ता/निचली अदालत के पूर्व जज ने दिए गए स्थगनों के संबंध में अनुशासनात्मक प्राधिकारी की ओर से पेश तर्कों से असहमति प्रकट करते हुए चीफ जस्टिस रवि मलीमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने कहा-

स्थगन देने में संबंधित जज न्यायोचित था या नहीं, यह केवल ऑर्डर शीट और मामले को कितनी बार स्थगित किया गया है, देखकर पता नहीं लगाया जा सकता है। खुली अदालत में ऐसी कई तथ्यात्मक स्थितियां होती हैं जो हमेशा जज की ऑर्डर शीट में नहीं आ सकती हैं। कई सबमिशन, कई अनुरोध और कई ऐसी घटनाएं बार और बेंच की चर्चा के बीच छोड़ दी जाती हैं। यह आवश्यक नहीं है कि एक खुली अदालत में एक एडवोकेट के कहे प्रत्येक शब्द को ऑर्डर शीट में दर्ज किया जाए। कोर्ट में बैठा जज वकील के एक-एक शब्द को दर्ज करने वाला स्टेनोग्राफर नहीं है। याचिकाकर्ता का मामला यह था कि अधिकारियों ने उसके खिलाफ विभागीय जांच करने का प्रस्ताव रखा था, ऐसे न्यायिक आदेशों से संबंधित था, जिसे उसने तब पारित किया था, जब वह अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में तैनात था।

जांच अधिकारी ने जज को आरोपों से यह कहते हुए मुक्त कर दिया था कि उन्हें साबित नहीं किया जा सकता है। इसके बाद मामले को अनुशासनिक प्राधिकारी के समक्ष रखा गया, जिसने जांच अधिकारी के निष्कर्ष को उलट दिया। जिसके बाद जज ने अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश और उक्त निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने केवल अनुमान के आधार पर जांच अधिकारी के निष्कर्षों को गलत तरीके से उलट दिया था। उन्होंने कहा कि अनुरोध के बावजूद, उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा के जज के रूप में उनके पूरे करियर में उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी। इसलिए, उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें गलत तरीके से सेवा से हटा दिया गया था।

इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने प्रस्तुत किया कि जांच अधिकारी के निष्कर्षों को उलटने में अनुशासनात्मक प्राधिकारी उचित था। यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता से न्यायिक अधिकारी होने के नाते उच्चतम स्तर की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा बनाए रखने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा। अत: प्रतिवादियों का तर्क था कि उनका आक्षेपित आदेश पारित करना न्यायोचित था।

पार्टियों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर दस्तावेजों की जांच करते हुए, न्यायालय ने माना कि वह अनुशासनात्मक प्राधिकारी के निष्कर्षों के साथ सहमत होने असमर्थ रहा। प्रावधानों के उल्लंघन में याचिकाकर्ता को जमानत देने के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यह उसके भ्रष्ट इरादे के बजाय कानून की उसकी समझ को प्रतिबिंबित कर सकता है।

"यदि अनुशासनिक प्राधिकारी के अनुसार भी, जमानत देना अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन है तो यह कानून को समझने में जज की योग्यता को प्रदर्शित कर सकता है। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकल सकता है कि वह या तो भ्रष्ट है या आदेश बाहरी विचार से प्रभावित होकर पारित किया गया है।"

स्‍थगन के संबंध में कोर्ट ने अनुशासनिक प्राधिकारी की उन टिप्पणियों को स्वीकार नहीं किया कि याचिकाकर्ता ने स्थगन देकर 'प्रतिबद्धता की कमी' का प्रदर्शन किया।

याचिकाकर्ता की एसीआर पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि उसकी सत्यनिष्ठा पर कभी सवाल नहीं उठाया गया। उनकी रिपोर्टों से पता चलता है कि उनका अच्छा रेपुटेशन रहा है और उन्हें एक अच्छे कर्मचारी के रूप में जाना जाता रहा है, जो अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन में तत्पर रहे। इसलिए, कोर्ट ने माना कि जांच अधिकारी के निष्कर्षों को उलटने का अनुशासनिक प्राधिकारी के लिए कोई वैध कारण नहीं मिला।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, कोर्ट ने आक्षेपित आदेशों को रद्द कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता बर्खास्तगी की तारीख से बकाया वेतन का 25% यानी अनिवार्य सेवानिवृत्ति का हकदार होगा। प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के वेतन, उसकी पात्रताओं और सेवानिवृत्ति लाभों को नए सिरे से जारी करने निर्देश दिया था।

केस शीर्षक: केसी राजवानी बनाम मध्य प्रदेश कानून और विधायी मामलों और अन्य की स्थिति

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एमपी) 166

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