संयुक्त खाता धारक, जो चेक का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, उस पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाएगा: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में चेक के अनादर से संबंधित एक मामले में फैसला सुनाया कि संयुक्त खाता धारक, जो विवादित चेक पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, उस पर एनआई एक्ट, 1981 की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।
अलका खांडू आव्हाड बनाम अमर स्यामप्रसाद मिश्रा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए जस्टिस शमीम अख्तर ने कहा कि केवल संयुक्त खाता धारक होने से, जो हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, उस पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, जब तक कि चेक पर उसके हस्ताक्षर न हों।
तथ्य
एक संयुक्त खाता धारक/याचिकाकर्ता ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत एक हाईकोर्ट के समक्ष एक आपराधिक याचिका दायर की थी ताकि उसके पति द्वारा आहरित चेक के अनादर के लिए दर्ज आपराधिक मामलों में उनके खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही को रद्द किया जा सके। उनका अपने पति के साथ ज्वाइंट अकाउंट था।
याचिकाकर्ता के वकील बी मोहन ने तर्क दिया कि वह विषयगत चेक के लिए हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले अलका खांडू आव्हाड बनाम अमर स्यामप्रसाद मिश्रा और अन्य एआईआर 2021 एससी 1616 और श्रीमती अपर्णा ए शाह बनाम मेसर्स शेठ डेवलपर्स प्रा लिमिटेड और अन्य, एआईआर 2013 एससी 3210 पर भरोसा किया और कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की जाए।
शिकायतकर्ता के वकील वीवीएलएन सरमा ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का अपने पति के साथ एक संयुक्त खाता है और विषयगत चेक संयुक्त खाते से जारी किया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को पैसे के लेन-देन और विषयगत चेक सौंपे जाने के बारे में पता था।
एनआई एक्ट की धारा 138
एनआई एक्ट की धारा 138 खाते में अपर्याप्त धनराशि के कारण चेक के अनादरित होने से संबंधित है।
प्रावधान के अनुसार, किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को किसी राशि के भुगतान के लिए बैंक खाते से आदेशित किया गया चेक बैंक द्वारा अवैतनिक रूप से इसलिए वापस कर दिया जाता है, क्योंकि खाते में चेक का सम्मान करने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं है, ऐसे व्यक्ति को अपराध किया माना जाएगा और यह एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय है।
टिप्पणियां
अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत अलका खांडू आव्हाड (सुप्रा) के फैसले पर भरोसा किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,
"एनआई एक्ट की धारा 138 संयुक्त देयता के बारे में नहीं बोलती है। संयुक्त देयता के मामले में भी, व्यक्तिगत व्यक्तियों के मामले में, उस व्यक्ति के अलावा अन्य व्यक्ति, जिसने उसके द्वारा मेंटेन खाते से चेक आदेशित किया है, पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। एक व्यक्ति संयुक्त रूप से ऋण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो सकता है, लेकिन यदि ऐसा व्यक्ति जो संयुक्त रूप से ऋण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो सकता है, उस पर तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जब तक कि बैंक खाता संयुक्त रूप से मेंटेन नहीं जाता है और कि वह चेक का हस्ताक्षरकर्ता हो।"
जस्टिस शमीम अख्तर ने श्रीमती अपर्णा ए शाह (सुप्रा) के फैसले पर भी भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत, यह केवल चेक का आदेशक है, जिसके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है। एक संयुक्त खाताधारक पर तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जब तक कि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा चेक पर हस्ताक्षर नहीं किया गया हो।
उपरोक्त निर्णयों के उद्धरणों के आधार पर, न्यायालय ने मौजूदा मामले में यह निर्धारित किया कि याचिकाकर्ता जो चेक के हस्ताक्षरकर्ता की पत्नी है, वह केवल एक संयुक्त खाता धारक है और वह विषयगत चेक पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
कोर्ट ने आगे कहा कि दंडात्मक प्रावधानों को सख्ती से समझा जाना चाहिए न कि नियमित/आकस्मिक तरीके से।
कोर्ट ने कहा,
"एनआई एक्ट की धारा 138 में इस्तेमाल किए गए शब्द "ऐसे व्यक्ति को अपराध किया माना जाएगा," उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसने चेक आदेशित किया है, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति को नहीं, एनआई एक्ट की धारा 141 के तहत उल्लिखित आकस्मिकताओं को छोड़कर..।"
इस प्रकार याचिका की अनुमति दी गई और याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दिया गया।
केस शीर्षक: कोडम दानलक्ष्मी बनाम तेलंगाना राज्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (तेल) 1
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