जेसिका लाल मर्डर केस- मनु शर्मा की समय से पहले रिहाई की याचिका पर दिल्ली सरकार ने दायर किया जवाब

Update: 2019-12-21 02:30 GMT

दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष हत्या के मामले में सजा काट रहे मनु शर्मा की सजा में छूट की मांग वाली याचिका पर अपना जवाब दायर किया है।

मनु शर्मा वर्तमान में आईपीसी की धारा 302, 201 और 120 बी और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। वह पहले ही 16 साल और 7 महीने की वास्तविक सजा काट चुका है और उसने लगभग 6 साल और 27 दिनों की छूट भी हासिल कर ली है।

जेल रिकॉर्ड के अनुसार, मनु शर्मा ने जीएनसीटी/ दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई 11 पैरोल और महानिदेशक (कारागार) द्वारा दी गई 22 फर्लो या अवकाश का लाभ भी उठाया है।

जवाब में कहा गया है कि याचिकाकर्ता की जल्द रिहाई की मांग वाली अर्जी पर पहले भी 4 बार सजा समीक्षा बोर्ड द्वारा विचार किया जा चुका है। 19 जुलाई 2019 को अंतिम विचार के दौरान, बोर्ड के सभी सदस्यों ने समय से पहले रिहाई का विरोध किया था, सिवाय एक सदस्य के।

इस असंतुष्ट सदस्य, अतिरिक्त जिला/सत्र न्यायाधीश ने जेल में शर्मा के अच्छे आचरण, खुली जेल में पैरवी, अपराध पूर्व निर्धारित न होने के कारण, और पीड़ित के परिवार की तरफ से कोई आपत्ति नहीं होने के मद्देनजर शर्मा की समयपूर्व रिहाई का समर्थन किया था।

बोर्ड ने अपने फैसले में माना था कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया अपराध कोई साधारण नहीं है। उन्होंने सजा के आदेश पर भी भरोसा किया था जिसमें कहा गया था कि उसके अपराध ने समाज को झकझोर दिया था और उसके कार्यों ने सुधार होने की किसी भी संभावना को झूठा साबित किया है।

यह देखते हुए कि एक दोषी की समयपूर्व रिहाई पर निर्णय लेते समय समाज पर उसके प्रभाव को देखा जाना एक महत्वपूर्ण कारक है, बोर्ड ने शर्मा की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनकी समय से पहले रिहाई समाज को एक गलत संकेत या संदेश देगी।

राज्य ने अपने जवाब में यह भी उल्लेख किया है कि समय से पहले रिहाई के हर आवेदन या दलील की ,सजा समीक्ष बोर्ड द्वारा वर्ष 2004 की एसआरबी दिशानिर्देशों और दिल्ली जेल मैनुअल के प्रावधानों के अनुसार सावधानीपूर्वक जांच की जाती है।

इसलिए, यह कहना या सुझाव देना गलत होगा कि बोर्ड ने एक तर्कपूर्ण आदेश पारित नहीं किया था, बोर्ड ने अपने विचार-विमर्श में विचार करके प्रत्येक कारक को वेटेज या महत्व दिया, जो कि बैठक के मिनटों में भी दर्ज किया गया है।

जवाब में यह भी बताया गया कि कि एसआरबी दिशानिर्देशों के अनुसार, सजा की विशिष्ट अवधि पूरी होने पर अपराधी को स्वत रिहाई का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। इस को प्रभावित करने के लिए, एसआरबी की सिफारिश पर एक सक्षम प्राधिकरण के अर्थशास्त्र या एकनामिक्स स्पष्ट आदेश की आवश्यकता होती है।

उपर्युक्त तर्क के समर्थन में, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा शशि शेखर / नीरज बनाम स्टेट आॅफ एनसीटी आॅफ दिल्ली के मामले में निर्धारित कानून का भी हवाला दिया गया है।

अंत में, जवाब से पता चलता है या बताता है कि याचिका को योग्यता की कमी के लिए खारिज कर दिया जाएगा। दिल्ली जेल के नियमों के अनुसार ,जिस अपराधी की समयपूर्व रिहाई के लिए याचिका पहले से ही खारिज हो चुकी हो,उसकी पुनर्विचार याचिका पर 6 महीने की अवधि के समाप्त होने के बाद ही विचार किया जा सकता है,यह अवधि उसके मामले के विचार की तारीख से शुरू होगी। 

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