कर्मचारी का टर्मिनेशन दंडात्मक और कलंकित करने वाला है? यह तय करने के लिए जेएंडके एंड एल हाइकोर्ट ने "कॉर्पोरेट परदे को भेदने का सिद्धांत" लागू किया

Update: 2023-03-20 10:45 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि सिर्फ इसलिए कि सेवा समाप्ति का आदेश सरलतम रूप में दिया गया है, इससे कलंक ना जुड़ा हो, ऐसा नहीं हो सकता, और ऐसे मामलों में यह सुनिश्चित करने के लिए इस प्रकार की सेवा समाप्ति के पीछे वास्तविक मंशा क्या है, (Doctrine of piercing through the veil) लागू होगा।

जस्टिस वसीम सादिक नर्गल ने याचिकाओं के एक समूह पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके तहत याचिकाकर्ताओं ने मुख्य अभियंता परियोजना बीकन सी/ओ 56 एपीओ की ओर से जारी टर्मिनेशन ऑर्डर को आदेश को चुनौती दी थी।

मामला

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता को नर्सिंग सहायक पद पर नियुक्त किया गया था। हालांकि चयन प्रक्रिया के बाद चयनित उम्मीदवारों की ओर से दिए गए दस्तावेजों की प्रामणिकता का निर्धारण करने के लिए नियुक्ति प्राधिकारी ने एक सत्यापन प्रक्रिया शुरू की।

जिसमें यह सामने आया कि याचिकाकर्ता पर उसके अनुभव प्रमाण पत्र जाली होने का आरोप लगाया गया। जिसके बाद, चीफ इंजीनियर बीकन ने 26 सितंबर 2009 को याचिकाकर्ता के खिलाफ टर्मिनेशन नोटिस जारी किया था।

याचिकाकर्ता ने 14 अक्टूबर, 2009 को नोटिस का जवाब प्रस्तुत किया। 23 अक्टूबर, 2009 को सिफारिशों के आधार पर, याचिकाकर्ता को टर्मिनेट करने की नोटिस को वापस ले लिया गया और आगे जांच का निर्देश दिया गया।

आगे की जांच में महाजन अस्पताल ने याचिकाकर्ता के संबंध में सत्यापन प्रमाणपत्र की पुष्टि की। उन्होंने यह सत्यापित किया कि याचिकाकर्ता ने उनके अस्पताल में अपेक्षित अनुभव प्राप्त किया था और प्रमाण पत्र वास्तविक था।

हालांकि, 30 मई 2011 को याचिकाकर्ता संख्या एक के खिलाफ एक और टर्मिनेशन ऑर्डर पारित किया गया। उन्हें एक महीने का नोटिस दिया गया और कहा गया कि 30 जून 2011 को उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी।

टर्मिनेशन के आदेश के ‌खिलाफ याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसने अपने पहले टर्मिनेशन ऑर्डर का जवाब उचित माध्यम से (through proper channel) दिया था और स्पष्ट किया कि उसकी ओर से दिया गया अनुभव प्रमाण पत्र जाली नहीं है, बल्कि सच्चा है।

उसने कहा कि नियुक्ति से पहले उसके पास महाजन अस्पताल सोलापुर महाराष्ट्र में नर्सिंग सहायक के रूप में कार्य करने का अनुभव है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उन्होंने ऐसा कोई घोषणापत्र प्रस्तुत नहीं किया है, जो झूठा हो या किसी भौतिक तथ्य को दबाया गया है।

दलील के विरोध में प्रतिवादियों ने कहा कि अनुभव प्रमाण पत्र की प्रासंगिकता संबंधी याचिकाकर्ता का तर्क झूठा है, और वह अनुभव प्रमाण पत्र की सत्यता संदिग्ध है, क्योंकि संबंधित प्राधिकारी (प्रतिहस्ताक्षर प्राधिकरण) ने इसे जाली बताया है।

मामले पर फैसला करते हुए जस्टिस नरगल ने कहा कि मौजूदा मामले में, हालांकि बर्खास्तगी आदेश स्पष्ट रूप से अहानिकारक शब्दों में लिखा गया है, फिर भी मामले के पूरे रिकॉर्ड का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट है कि यह आदेश लांछनकारी प्रकृति का है।

कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि केवल इसलिए कि आदेश को सरलतम रूप में लिखा गया है, इसे कलंकित करने वाला नहीं हो सकता है।

जस्टिस नरगल ने कहा, 

कि ऐसे मामलों में परदे को भेदने के सिद्धांत (Doctrine of piercing through the veil) का सहारा लिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि इस मामले में भी, टर्मिनेश ऑर्डर को काफी सरल शब्दों में ‌लिखा गया है, हालांकि इसे भेदकर देखते पर यह प्रकट होता है कि आदेश याचिकाकर्ता पर लांछन लगाता है और उस आधार पर उसे रद्द किया जा सकता है।

पंजाब राज्य और एक अन्य बनाम सुख राज बहादुर (1968) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति के चरित्र पर कलंक लगाया जाता है, तो इसे सजा के माध्यम से टर्मिनेशन माना जाना चाहिए, यहां तक कि यदि दावा करने वाला व्यक्ति परिवीक्षाधीन है।

इसलिए, पूर्वोक्त स्थापित कानूनी स्थिति को देखते हुए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि टर्मिनेशन साधारण नहीं थी, बल्कि इससे कलंक जुड़ा हुआ था और इस तरह अदालत का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।

जिसके बाद पीठ ने याचिका की अनुमति दी और याचिकाकर्ता संख्या एक की सीमा तक ही विवादित नोटिस को रद्द कर दिया गया। प्रतिवादियों को आगे निर्देशित किया गया कि वे याचिकाकर्ता को बिना किसी बाधा के नर्सिंग सहायक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति दें।

केस टाइटल: रोकाडे संतोष संदाशिव और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 50

कोरम: जस्टिस वसीम सादिक नरगल

आदेश पढ़ने और डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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