2019 जामिया हिंसा : शरजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और अन्य को आरोप मुक्त करने के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट का रुख किया
दिल्ली पुलिस ने 2019 के जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और आठ अन्य को आरोप मुक्त करने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है।
पुलिस ने शहर के साकेत कोर्ट द्वारा आरोपी व्यक्तियों को आरोपमुक्त करने के आदेश को चुनौती दी है। अपने आदेश में साकेत कोर्ट ने कहा था कि पुलिस "वास्तविक अपराधियों" को पकड़ने में असमर्थ रही और "निश्चित रूप से उन्हें बलि का बकरा बनाने में कामयाब रही।"
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुल वर्मा ने गलत तरीके से चार्जशीट दायर करने के लिए अभियोजन पक्ष की खिंचाई करते हुए कहा था कि पुलिस ने विरोध करने वाली भीड़ में से कुछ लोगों को आरोपी और अन्य को पुलिस गवाह के रूप में पेश करने के लिए "मनमाने ढंग से चुना" है।
अदालत ने कहा था कि यह "चेरी पिकिंग" निष्पक्षता के सिद्धांत के लिए हानिकारक है।
अदालत ने देखा था कि बिना किसी प्रत्यक्ष कृत्य के सिर्फ विरोध प्रदर्शन की जगह पर उपस्थिति रहने से उन्हें आरोपी के रूप में नहीं माना जा सकता। न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने उनके खिलाफ लापरवाही से काम लिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों को लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे की कठोरता से गुजरने देना हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है।
अदालत ने कहा,
“जांच एजेंसियों के लिए असहमति और बगावत के बीच के अंतर समझना आवश्यक है बगावत को निर्विवाद रूप से समाप्त करना होगा। हालांकि, असहमति को स्थान दिया जाना चाहिए, एक मंच देना चाहिए।”
इस प्रकार अदालत ने शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर, मो. अबुजर, उमैर अहमद, मो. शोएब, महमूद अनवर, मो. कासिम, मो. बिलाल नदीम, शहजर रजा खान और चंदा यादव को आरोप मुक्त कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय किए।
मामला दिसंबर, 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा की घटनाओं से जुड़ा है। एफआईआर में कथित रूप से दंगा करने और गैरकानूनी रूप से एकत्र होने का आरोप है, जिसमें आईपीसी की धारा 143, 147, 148, 149, 186, 353, 332, 333, 308, 427, 435, 323, 341, 120बी और धारा 34 के तरह अपराध दर्ज किया गया। हालांकि, इमाम अभी भी 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के संबंध में दर्ज अन्य एफआईआर में हिरासत में है।
इमाम, तनहा और सफूरा जरगर को स्पेशल सेल के मामले में आरोपी बनाया गया है, जिसमें 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश का आरोप लगाया गया है। पुलिस ने 21 अप्रैल, 2020 को मोहम्मद इलियास के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। इसके बाद 11 अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दूसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी, जिन्हें इस मामले में आरोपमुक्त कर दिया गया है। आरोप पर दलीलें जारी रखने के दौरान हाल ही में 1 फरवरी, 2023 को तीसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी दायर की गई थी। अभियोजन पक्ष ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि गवाहों ने कुछ तस्वीरों के आधार पर आरोपी व्यक्तियों की पहचान की थी।
न्यायाधीश ने पाया कि दिल्ली पुलिस नए सबूत पेश करने में विफल रही और इसके बजाय एक और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर करके "आगे की जांच" की आड़ में पुराने तथ्य पेश करने की कोशिश की।
अदालत ने कहा था, "वर्तमान मामले में पुलिस के लिए एक चार्जशीट और एक नहीं बल्कि तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करना सबसे असामान्य रहा है, जिसमें वास्तव में कुछ भी नया नहीं है। यह चार्जशीट दाखिल करना बंद होना चाहिए, अन्यथा यह आड़ महज अभियोजन से परे कुछ दर्शाता है और आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों को रौंदने का प्रयास होगा। ”
कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं है जो पुलिस के इस कथन की पुष्टि कर सके कि आरोपी व्यक्ति किसी भी तरह से अपराध करने में शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि तीसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल होने तक जांच के दौरान कोई पहचान परेड नहीं की गई और तस्वीरें और वीडियो केवल यह प्रदर्शित करते हैं कि आरोपी बैरिकेड्स के पीछे खड़े थे।
अदालत ने कहा, “रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे प्रथम दृष्टया यह कहा जा सके कि आरोपी किसी दंगाई भीड़ का हिस्सा थे। इसमें कोई भी आरोपी कोई हथियार नहीं दिखा रहा था या कोई पत्थर आदि नहीं फेंक रहा था। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया अभियुक्तों के लिए कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने किसी भी कानून के निष्पादन का विरोध किया था। निश्चित रूप से अनुमानों के आधार पर अभियोग शुरू नहीं किया जा सकता और चार्जशीट निश्चित रूप से संभावनाओं के आधार पर दायर नहीं की जा सकती। न्यायाधीश ने कहा कि विरोध करने वाले नागरिकों की स्वतंत्रता में हल्के ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए था और यह असहमति और कुछ नहीं बल्कि "अनुच्छेद 19 में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अमूल्य मौलिक अधिकार का विस्तार" है, जो उसमें निहित प्रतिबंधों के अधीन है, इसलिए यह एक अधिकार है जिसे बरकरार रखने की हमने शपथ ली है।
अदालत ने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में जांच एजेंसियों को टैक्नोलॉजी के उपयोग को शामिल करना चाहिए था या विश्वसनीय खुफिया जानकारी एकत्र करनी चाहिए थी, और तभी उसे "आरोपी व्यक्तियों के आधार पर न्यायिक प्रणाली को प्रेरित करना" शुरू करना चाहिए था। अदालत ने कहा, “अन्यथा, ऐसे लोगों के खिलाफ ऐसे गलत तरीके से चार्जशीट दायर करने से बचना चाहिए जिनकी भूमिका केवल एक प्रोटेस्ट का हिस्सा बनने तक ही सीमित थी।”